Thursday, May 4, 2023

प्रचार तंत्र की भूमिका

जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण हेतु सूचनाओं के प्रसारण में प्रचार तंत्र बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।

आज हम किसी भी व्यक्ति को अपराध या गलती के नाम पर पीड़ा देते हैं, जेल में बंद कर देते हैं, तरह तरह की सजा देते हैं जबकि अपराध एक मानसिकता है। और मानसिकता में परिवर्तन ही सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है। (शरीर को कष्ट देने से मानसिकता में परिवर्तन नहीं हो सकता।)

ऐसे परिवर्तन के लिए प्रचार तंत्र के समक्ष यह प्रस्ताव है कि निरंतर जो भी कार्यक्रम आये जैसे किसी विषय पर डिबेट (जब सार्थकता के अर्थ में बातचीत होगी उसे "संवाद"कहा जायेगा) या कोई समस्या हो उस पर संवाद वह "जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान (मध्यस्थ दर्शन)" के प्रकाश में ही आये (समस्या, उसका कारण और उसका निदान पर संवाद)।

जब यह बहुत बड़े स्तर पर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाएगा तो बहुत ही बड़ी संख्या में मानव स्वतः ही मानव चेतना के प्रति जिज्ञासु होंगे। बहुत से अपराध स्वतः ही बंद हो सकते हैं।

देश भर में प्रयोग तो हो ही रहे हैं वे सभी प्रभावशाली ढंग से रखे जाए व यदि किसी व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन हुआ और वह उसे लोगों के सामने साझा करना चाहता है तो ऐसे लोगों को भी उनकी शेयरिंग के लिए आमंत्रित किया जाए उनका अभिनदंन किया जाए तो समाज में हो रहे बदलाव को और भी गति मिल सकती है। ऐसा मेरा मानना है।

और सबसे सुंदर बात होगी कि हम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करेंगे।

ज्ञान के प्रकाश में या ज्ञान पर चल रहे उदाहरणों से स्वयं में देखेंगे कि हममें क्या कमी है और उसे कैसे पूरा करें।

अभी तो हमें अपराध के नाम पर वही नजर आता है जो मीडिया में दिखाया जाता है उससे भी ज्यादा खतरनाक स्थिति है हमारे सामने।

और अभी तो हमको यही समझ नहीं आता कि सही क्या गलत क्या?

हो सकता है इस प्रयोग से अपराध में स्व नियंत्रण आ जाये? आपके क्या विचार हैं?

जैसे उदाहरण के लिए मैंने एक पोस्ट पर यह एक लाइन का कॉमेंट किया इतने लोगों की स्वीकृति देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई!


तो "शिक्षा" पर लोगों में अच्छी स्वीकृति बन चुकी है या इस पर सोचने तो लगे हैं! यह प्रचार तंत्र का ही कमाल है और सफलता है! इसे प्रचार तंत्र का सदुपयोग ही कहा जायेगा। 

आज भले ही समीक्षा हो रही है पर लोग शिक्षा पर तो बात कर रहे हैं यह भी एक बड़ी उपलब्धि है।

Tuesday, April 11, 2023

आरिफ़ और उसका दोस्त सारस

एक महीने बाद आज आरिफ़ भाई जी और उसके दोस्त सारस का कानपुर चिड़ियाघर में आपस में मिलना हुआ। दोनों ही भावुक और खुश थे। सारस को एक बंद बाड़े में रखा गया है उसे दूर से ही देखने की परमिशन है।



सारस जो की आरिफ़ भाई जी को उनके खेत में घायल अवस्था में मिला था तो उन्होने वही किया जो एक मानव का फर्ज था। उसने उसकी मरहम पट्टी की, खूब सेवा की, खूब प्यार किया, एक बच्चे की तरह रखा। साथ में खाना, घूमना यह सब चलता रहा। सारस जब उसे मन करता उड़कर जंगल अपने परिवार से मिलकर आता पर बाकी समय उसे आरिफ़ के साथ ही रहना पसंद था।  





उनके प्रेम को देखकर एक राजनीतिज्ञ जी मिलने आते हैं वैसे ही सत्ता में बैठे पक्ष की आँखें पूरी तरह चौकन्नी हो जाती है।
बस यहीं से शुरू होती है एक और कहानी –दुखों की कहानी, अमानवीयता की कहानी, कानून के आड़ में घिनौनी राजनीतिक चाल की कहानी।
दोनों को एक दूसरे से जुदा कर दिया जाता है पहले सारस को एक पक्षी विहार में रखा जाता है जहाँ से वह उड़ कर किसी गाँव में पहुँच जाता है वहाँ से फिर वन विभाग उसे पकड़ कर कानपुर चिड़ियाघर में क्वारंटाइन कर देती है। एक आजाद पंछी को कैद कर लिया जाता है।
अब यहाँ से मेरे मन में राजनीतिज्ञों के अहंकार और ईर्ष्या पर प्रश्न के साथ चिड़ियाघर की औचित्यता पर भी प्रश्न उठता है कि इसका प्रयोजन क्या?
क्या हम इंसानों के मनोरंजन के लिए इन वन्य प्राणियों को पिंजरे में रखा जाना प्रयोजन है?
अगर ऐसा है तो यह इंसानियत के विपरीत है।
या बीमार पशु पक्षी की देखभाल के लिए चिड़ियाघर है?
अगर बीमार पशु की देखभाल के लिए है तो उसे इलाज के पश्चात परिस्थिति अनुसार वापस उसके रहवास में छोड़ देना चाहिए!
या सेंचुरी में रखना चाहिए!
सुरक्षा के नाम पर किसी को पिजड़े में कैद करना और सोचना कि वह खुशहाल है यह आपके समझदारी पर प्रश्न चिन्ह है।
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दूसरा प्रश्न है हम बच्चों के सामने क्या उदाहरण रखना चाहते हैं?
• पहला दृश्य यह कि एक आदमी ने बहुत प्यार से एक जीव/ पंछी का पोषण कर रहा है, आजाद रखा है और दोनों खुश हैं।
• दूसरा दृश्य जीव जानवर स्वच्छंद अपने प्राकृतिक आवास में घूम फिर रहे हैं।
• तीसरा दृश्य बहुत से जीव जानवरों को छोटे छोटे पिंजरे में रखा गया है। जहाँ न वे अच्छे से घूम पाते हैं न उड़ पाते हैं?
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कौन से दृश्य से बच्चों के मन में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा?
• पहला दृश्य से बच्चों के सामने एक मानव कैसे चारों अवस्था के साथ सुंदर से तालमेल के साथ रह पा रहा है या रह सकता है यह सीखने को मिलता है।
(आज जब एक घायल पंछी को इलाज कर नया जीवन दान के बदले यह प्रताड़ना मिल रही है तो कौन आगे घायल जीव जन्तु की रक्षा के लिए आगे आएगा?)
• दूसरा दृश्य - बच्चों के मन में जीव जंतुओं के प्राकृतिक आवास मे उनके रहन सहन के प्राकृतिक तरीकों को देख कर उसे प्राकृतिक आवास की व्यवस्था को कैसे बनाए रखें जिसमें वे सुरक्षित रहें इस पर ध्यान जाता है।
• तीसरा दृश्य- इससे बच्चों के मन मे यह जाएगा कि प्रकृति की हर एक अवस्था को पिंजरे मे मनोरंजन के लिए रखा जा सकता है। बस दाना पानी का इंतजाम कर लो। आजादी की खुशी क्या होती है बच्चे तो यह कभी समझ ही नहीं पाएंगे।
बच्चों के लिए शिक्षा का उदाहरण इन्हीं समाजों से आएगा न कि पिंजरों से? इसलिए आप सभी बड़े राजनेताओं से विनम्र विनती है कि ऐसे सुंदर शिक्षा प्रद वातावरण को थोड़ी बहुत और सुधार कर और भी बढ़ावा दिया जाए। इन्हें कुचला न जाए।
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अगला प्रश्न यदि कोई जीव जन्तु की प्रजाति खत्म होने की अवस्था मे आ गई है तो इसके जिम्मेदार कौन?
क्या उन्हें पिंजरे में बंद कर रखने से वे सुरक्षित हैं? क्या यह समाधान है?
क्यों उनके प्राकृतिक आवास उजाड़े जा रहे हैं? क्यों जंगलों को अपने लालच के लिए काटे जा रहे हैं? क्यों?
पहले आप/हम अपनी मानसिकता पर काम करें। प्रकृति की व्यवस्था को समझें, प्रकृति के नियम समझें उसके अनुसार कार्य करें।
आरिफ़ ने कुछ भी गुनाह नहीं किया। उसने प्रकृति के नियमों के अनुसार ही उस सारस की मदद की। उसे आजाद रखा। आरिफ़ एक मानव हैं इसलिए उसने मानवीयता दिखाई यही प्रकृति का नियम है। जिसके लिए उन्हें बहुत बड़ा पुरस्कार मिलना ही चाहिए।
और उसके लिए वह बड़ा पुरस्कार होगा....
“उसका दोस्त सारस!”

Sunday, April 9, 2023

जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना

➡️पहचानने और निर्वाह करने की ताकत....
➡️गठन शील परमाणु का लक्ष्य, ताकत व परिणाम...
➡️गठन पूर्ण परमाणु का लक्ष्य, ताकत का अंतिम परिणाम इस धरती में शेष....
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🌺पहचानने और निर्वाह करने की ताकत देखिये...

● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती व ग्रह गोल.....

● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती और रस रसायन...

● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती, रस-रसायन और सांस लेती कोशिकाएं (काई से लेकर पेड़ पौधे व जीव और मानव शरीर)।

कैसे सुंदर व्यवस्था को पहचान कर निर्वाह कर रहे हैं। एक एक कोशिकाओं में छोटी सी छोटी इकाई व्यवस्थित, हर जगह व्यवस्था।

● यह गठन शील परमाणु के स्वयं में व्यवस्था की ताकत का परिणाम है।
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🌺 जीवन परमाणु की ताकत जीव अवस्था में निरंतर मानने, पहचानने और निर्वाह करने की क्रिया के रूप में दिखाई देती है।
इससे सिद्ध होता है कि इकाइयाँ जिस वस्तु को पहचानती है उसके साथ निर्वाह करती ही है।

● अभी मानव स्वयं को शरीर मानकर उसके अनुरूप ही पहचानना और निर्वाह करता है। सारा कार्य व्यवहार शरीर और शरीर से जुड़ी पहचान को समर्पित।

● जब स्वयं को जानना हो जाये तो मानना, पहचानना और निर्वाह करना स्वयं के लक्ष्य को समर्पित होगी।
स्वयं का लक्ष्य (सुख, शांति, संतोष आंनद)…
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🌺 अब जीवन परमाणु की “स्वयं में व्यवस्था” ही “सार्वभौम व्यवस्था” का आधार बनेगी। यही काम इस धरती पर शेष रह गया है।

● स्वयं में व्यवस्था अर्थात "जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना"...

● जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करने की ताकत अर्थात गठनपूर्ण परमाणु का प्रयोजन अभी पूरा नहीं हुआ है।
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● जीवों में जीवन शरीर से संचालित है।

जबकि मानव में शरीर जीवन से संचालित होने की आवश्यकता है।

🌺 जीवन (गठनपूर्ण परमाणु) में मन, वृत्ति, चित्त और बुद्धि आत्मा से संचालित होने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में “शरीर मन को समर्पित, मन वृत्ति को समर्पित, वृत्ति चित्त को समर्पित, चित्त बुद्धि को समर्पित व बुद्धि आत्मा को समर्पित” या मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि का आत्मानुगामी होना, या आत्म प्रतिष्ठा (आत्मा संकेतानुसार बुद्धि, चित्त, वृत्ति एवं मन के क्रियाकलाप।)

● और यह काम होगा समझदारी से...

● समझदारी आती है -
स्वयं की व्यवस्था का ज्ञान से ( जीवन ज्ञान),
अस्तित्व की व्यवस्था के ज्ञान से (अस्तित्व ज्ञान) व
मानव की इस सार्वभौम व्यवस्था में 3 नियमों {प्राकृतिक, सामाजिक व बौद्धिक} सहित स्वयं के प्रयोजन के ज्ञान से (मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान)...
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🌺 हमको सिस्टम ( सार्वभौम व्यवस्था) के हिसाब से फिट होना है न कि सिस्टम (सार्वभौम व्यवस्था) को हमारे हिसाब से।

● अस्तित्व में सिस्टम (सार्वभौम व्यवस्था) है पाँच आयाम और उसमें भागीदारी...

● जैसे अभी हम एक ही व्यक्ति कई जगह जैसे घर में , खेत मे, बाजार में, मॉल में, ऑफिस में, सोशल मीडिया में, समाज में, इंटरनेट की दुनिया में जैसा कार्य व्यवहार करना होता है वैसा ही करते हैं।

पर अभी तृप्ति नहीं मिली क्योंकि यह सह अस्तित्व के डिजाइन के विपरीत है।
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● व्यवस्था ही पहचान आती है। इकाइयों की पहचान व्यवस्था में भागीदारी ही है।

● जैसे शरीर एक व्यवस्था है उसमें व्यवस्था दिखती है और सारे अंग अव्यवयों की उस व्यवस्था को बनाये रखने में भागीदारी दिखती है।

● अत: ऐसे ही सह अस्तित्व के नियमों, प्रयोजनों/ सार्थकता को जानना, मानना, पहचानना... उसके अनुरूप सार्वभौम व्यवस्था (सिस्टम) को पहचानने तदनुरूप उसमें भागीदारी करना आज की आवश्यकता है।
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🌺 सार्वभौम व्यवस्था 5 आयाम (1.शिक्षा-संस्कार, 2.न्याय-सुरक्षा, 3.स्वास्थ्य-संयम, 4.उत्पादन-कार्य, 5.विनिमय-कोष) में भागीदारी...

और यह व्यवस्था समझदारी (3 ज्ञान) से सुत्रित होगी। फलस्वरूप सह-अस्तित्व में “अखंड समाज/ दस सोपानीय व्यवस्था” के रूप में प्रकाशित होगी।

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(मध्यस्थ दर्शन की रोशनी में व्यक्त विचार, प्रस्तुति: रोशनी (विद्यार्थी की हैसियत से))


Tuesday, February 7, 2023

Great Surprise for me!!! At 25th Jeevan Vidya Rashatriya Sammelan Nagpur (5 Feb 2023)

यूँ तो मुझे जीवन विद्या के काम में सबसे ज्यादा खुशी मिलती है क्योंकि साथ साथ समझने की वस्तु मिलती रहती है। Mind Boost Work! अत: जब शरीर इस काम के लिए सहयोग देता है उसका मैं भरपूर फायदा उठाती हूँ।मैंने अन्य भाइयों के सहयोग से ही कई वाङ्ग्मय से कई शब्दों के संदर्भों के संकलन का कार्य किया। और उसे भाइयों ने भी सहर्ष यथोचित सम्मान देकर मध्यस्थ दर्शन के वेबसाइट्स में रखा यह एक बहुत बड़ा सम्मान था। समय समय पर राष्ट्रीय सम्मेलन में भाई बहन मुझसे संदर्भों के संकलन की डिमांड करते थे और मैं उन्हें उपलब्ध करा देती थी क्योंकि यह मेरा कर्तव्य और ज़िम्मेदारी थी। 25वां राष्ट्रीय सम्मेलन में भी यही हुआ और मैंने वही दोहराया। बस दिमाग में एक ही बात गूँज रही थी कि जो भी आपके पास है उसे लोगों को सहजता से सुलभ हो जाए, केन्द्रीयकरण नहीं करना है, सामान्यीकरण करना है। जिस चीज पर एक बार मेहनत हो चुकी उस पर दोबारा मेहनत नहीं उसके आगे मेहनत की आवश्यकता है। अब लोगों के पास हर चीज उपलब्ध है उनको सिर्फ समझने की आवश्यकता है व उसके अनुसार जीने की आवश्यकता है। और यदि कुछ करना है तो वे मात्र शोध में ध्यान देवें। तो जैसे ही मुझे सम्मेलन के अंतिम दिन बसंत भैया जी ने बताया मुझे सम्मानित किया जा रहा है मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था! मुझे सम्मान करने का मतलब है कि उनका (बड़े भाइयों का) ही सम्मान क्योंकि मैंने तो कुछ भी किया नहीं था जो कुछ उपलब्ध था उससे ही सामग्री इकट्ठी की थी। खैर थोड़ी बहुत मेहनत की थी और उसके लिए मुझे सम्मान के लिए चुना गया यह मेरे अंदर जोश, खुशी को भर देने जैसा था। और सच में मुझे बहुत ही खुशी हुई जब मेरी छोटी बहन पूनम ने उस सम्मान को ग्रहण किया और मेरे संदेश को वहाँ पढ़कर सुनाया। मैंने तो सोचा ही नहीं था कि बहन जी को पढ़ने का समय मिलेगा भी नहीं...जैसा कि वहाँ वक्त की कमी दिख रही थी। पर फिर भी संदेश भिजवा दिया था। संदेश को पढ़ने को प्रेषित करने के लिए भी पूनम बहन जी का बहुत बहुत धन्यवाद और कृतज्ञता, मेरे परिवारजनों के प्रति भी कृतज्ञता क्योंकि मुझपर कोई किसी प्रकार का दबाव नहीं इसी वजह से तल्लीनता के साथ इस कार्य को मैं कर पायी। आशा है पिताजी जो अब जीवन रूप में हैं या जहाँ कहीं भी हो किसी नए शरीर में उन्हें भी बहुत खुशी हो रही होगी। :) -- सम्मेलन में सभी छोटे- बड़े भाइयों, बहनों और बच्चों को भी उनके उपलब्धियों पर ढेरों ढेरों बधाइयाँ....


-- सम्मेलन में मेरा संदेश- "सर्वप्रथम आप सभी को इतनी सुंदर आयोजन के लिए खूब खूब धन्यवाद और ढेरों बधाइयाँ.... बसंत भैया जी से मुझे सूचना प्राप्त हुई कि मुझे मेरे सहयोग के लिए सम्मानित किया जा रहा है इसके लिए परम श्रद्धेय बाबा जी व आप सभी के प्रति आभार व कृतज्ञता.... और यह मुझे अच्छे से ज्ञात है कि यह सब सहयोग मैं आप लोगों को कर पायी इसकी वजह यथार्थता के स्त्रोत का सहजता से सर्वसुलभ होना और आप सभी का सहयोग। आप सभी बड़े छोटे भाई बहनों के आचरण मे ही मुझे सहजता और हर चीज हर वस्तु को आसानी से सुलभ करवा देना दिखाई दिया वही मैंने भी अपने आचरण मे लाने की कोशिश की...इससे ज्यादा मैंने और कुछ नहीं किया .... पुन: आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद और आभार" -- इस सम्मान को पाने के बाद भी मेरे पैर बिलकुल जमीन पर ही है क्योंकि हमें स्वयं पर कार्य करना है वह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। :) सम्मेलन के सभी वीडियो इस लिंक पर उपलब्ध है। https://youtube.com/playlist?list=PLg-z0QA7ySJXQKBzpBpbw5kyJ4It0AchQ

Monday, May 30, 2022

विकास?

विकास (अपनी मान्यताओंनुसार) के नाम पर अपने फायदे के लिए गाँव उजाड़े गए.....

अपने फायदे के लिए जंगलों को उजाड़े गए व उजाड़े जा रहै हैं....

अपने फ़ायदे के लिए शहर बनाया ताकि उसके कारखानों में ग्रामीण लोगों को काम पर लगाया जाए, 

शिक्षा ऐसी रखी गई ताकि सब उन कंपनियों के गुलाम बने....

अब परिणाम देखो किसी को भी ठीक से सभाल नहीं पा रहे हैं।

शहर में एक आदमी बहुत अमीर और खेत बेचकर शहर आकर उनकी नौकरी करने वाला मिडिल क्लास या गरीब!

एक के पास लाखों करोड़ों की नौकरी, एक के पास वह पढ़ाई करके भी बेरोजगारी!

क्या यही समाज की स्थापना करनी थी? क्या यही सबका सपना था?

अभी भी वक्त है जो जहाँ है उनको वहीं ऐसा वातावरण दिया जाए जिससे उनका सम्पूर्ण विकास हो।

किसी को मत उजाड़ो, आज की तारीख में ये शहर, महानगर किसी को नहीं सभाल सकते जबकि गाँव अब भी सारे शहर के लोगों के पेट भरता है।

गाँव में किसी परिवार में सबके लिए काम होता था/है।कोई बेरोजगार नहीं होता।

आदिवासियों का घर उनका जंगल है। उनका रोजगार का वह साधन है उसे संसाधनों के लिए मत उजाड़ो।

हमारे कॉन्क्रीट के शहरों में उनके लिए कुछ भी नहीं सिवाय शोषण के।

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उद्योगों की भी आवश्यकता है लेकिन वह आवश्यकता के हिसाब से उत्पादन होना चाहिए यह नहीं कि अपने उत्पादन को खरीदने के लिए विज्ञापनों के माध्यम से बाध्य किया जाए। 

इसके क्या क्या दुष्परिणाम है यह हम सबको विदित है। 

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महानगरों की उपलब्धि प्रधानतः महत्वाकांक्षा संबंधी है गाँवों की उपलब्धि प्रधानतः सामान्याकांक्षा है पर अभी का वातावरण जागृति के लिए नहीं है अतः इनका दुरुपयोग ज्यादा है सदुपयोग कम। अभी ये तीन उन्माद(भोगोन्माद, कामोन्माद और लाभोन्माद) को समर्पित है।   

अब न तो शहरों को मिटाया जा सकता है ना गाँवों को तो अब सार्थकता कैसे हो?

बस जागृति का वातावारण तैयार हो, धीमा धीमा प्रयास चल ही रहा है लोगों की मानसिकता में परिवर्तन होते ही स्वमेय ही सभी सामान्यकांक्षा (रोटी, कपड़ा, मकान) महत्वाकांक्षा (दूरसंचार, दूरश्रवण, दूरगमन) सम्बंधी वस्तुएं उसके लिए समर्पित हो जाएंगी। चीजें खुद ब खुद संवर जाएगी।

और यह शहरों व गांवों की सुंदरता होगी। और प्रकृति में इसका असर दिखेगा। प्राकृतिक संसाधनों का आवर्तनशीलता का ध्यान रखते हुए सदुपयोग होगा।

और यही वातावरण वास्तविक विकास (जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण) के लिए योगदान होगा।

Sunday, March 22, 2020

कृतज्ञता

आज 22/03/2020 को शाम 5 बजे से हम भारत के नागरिक प्रधान मंत्री के आह्वान पर स्वास्थ्य कर्मचारी जो अब कोरोना जैसी भयंकर महामारी का सामना करने जा रहे हैं, के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने हेतु ताली, थाली, घंटी या शंख का प्रयोग कम से कम 5 मिनिट तक करने को कहा गया था।
व्हाट्सएप पर महिलाओं ने एक धुन शेअर किया था और उसे प्रयोग करने को कहा गया... इस धुन में शंख और मंदिर की  घण्टियों की आवाज थी।
बस हम सभी परिवार वालों ने उसे शाम 5 बजे से बजाना शुरू किया, मेरी माता जी ने एक थाल और पिताजी ने शंख बजाना शुरु किया और मैंने ताली।
इन सब ध्वनि और आगे जो भी वातावरण हम सभी सामना करने जा रहे हैं और प्रकृति माँ के प्रति कृतज्ञता का भाव आते ही आँखों से आँसू बहने लगे। सबसे अपने आंसुओं को छुपाते हुए हमने ताली बजाना जारी रखा हुआ था और विचार भीतर में चलने लगे....
मन ही मन प्रकृति माँ से हम मानव जाति के द्वारा किए गए कार्य -व्यवहार से क्षमा माँग रहे थे पर साथ ही माफ नहीं करने को भी कह रहे थे। मानव जाति कैसे और कब सबक ले इन सबसे? कैसे हमें समझ में आ जाए कि हमें प्रकृति के साथ कैसे रहना है तब तक हमें प्रकृति तो ऐसे ही सबक सिखाएगी। और प्रकृति तो नियम अनुसार ही चलती है किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं।
और दूसरी ओर इटली में हो रही घटना और यही अगर भारत में देखने को मिले? सोचकर ही रूह कांप उठी।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि प्रकृति माँ से क्या माँगे, क्या विचार व्यक्त करें।
घर के सामने दो बड़े आमों के पेड़ और कोयल की कूक... दोनों हाथ आपस में जुड़े कृतज्ञता के अलावा कोई भाव नहीं आ रहे थे।
आशा है कि आने वाले मुश्किल घड़ी का हम सब समझदारी और बहादुरी से सामना करें।
आप सभी को मेरा सादर प्रणाम.....
जिन्होंने भी मानवीयता का दामन कठिन स्थिति-परिस्थिति में नहीं छोड़ा उन सभी भाई बहनों के प्रति दिल से कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव....
यही मानवीय दृष्टि आपको उच्च स्तर का बनाती है। विपरीत परिस्थितियों में ही स्वयं की स्थिति का आकलन हो पाता है।

Thursday, March 5, 2020

आवर्तनशील खेती और इसकी आवश्यकता

वर्तमान में हम मानव जाति यह अब समझ ही चुके हैं कि धरती की व्यवस्था हमारी गलतियों की वजह से दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। इससे मानव जाति के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती आ गई है कि कैसे स्थिति को नियंत्रण में लाया जाए ताकि यह धरती की व्यवस्था बनी रहे। इसमें मानव जाति की ही सुरक्षा है।
वनों की अंधाधुंध कटाई हमारी गलतियों में एक सबसे बड़ी गलती है। असंतुलित मौसम चक्र इसका उदाहरण है। 

इसके समाधान में कई विकल्प हो सकते हैं, एक विकल्प आवर्तनशील खेती के रूप में परम श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी (प्रणेता: मध्यस्थ दर्शन, सह अस्तित्ववाद) ने बताया था। इस खेती की सहायता से हम धरती के संतुलन को बनाए रखने में पूरक हो सकते हैं। 

आवर्तनशील खेती में मुख्यत: तीन भाग होते हैं। 

  • पहले भाग में घर में खाने वाले फसल जैसे गेहूँ, दाल, चावल, अनाज आदि लगाया जाता है। 
  • दूसरे भाग में फल, सब्जी, मसाले व गाय का चारा (नैपियर, जिंजवा, बरसीम घास ) लगाया जाता है।
  • तीसरे भाग में जलाऊ लकड़ी, इमारती लकड़ी जैसे बाँस, साल, सागौन आदि लगाया जाता है। सुखी पत्तियाँ खाद बनाने के काम आती है। यह वृक्ष पर्यावरण संतुलन में एक बड़ा योगदान करती है। इसी भाग में ढलान की तरफ एक तलाब होता है जिससे पानी का स्रोत हमेशा बना रहता है। 
तीसरे भाग में ही हम गौशाला रख सकते हैं जिससे दूध का उत्पादन होता है तथा गोबर से एक अच्छी उपजाऊ जमीन तैयार करने में मदद मिलती है। इसी भाग में गाय के लिए चारा (बरसीम घास) भी लगाया जाता है। 
इस खेती का प्रयोजन है, पहला आवश्यकता से अधिक का उत्पादन अर्थात पहले स्वयं की आवश्यकता के लिए तो उत्पादन हो ही जो अधिक हो उसे संबंधियों को वितरित कर दिया जाए। 
(हर परिवार में आवश्यकताएं समझ आने पर आवश्यकता से अधिक उत्पादन सहज है जिससे समृद्धि का भाव आता है।)
दूसरी आवश्यकता शेष अवस्थाओं (पदार्थ, प्राण व जीव)  में संतुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है।

इस प्रकार की खेती में किसी भी प्रकार का रासायनिक खाद व रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता।

वर्तमान में कई किसान भाई इस विधि को अपनाए हुए हैं जिनमें से एक नाम बांदा जिले के श्री प्रेमचंद भैया जी हैं जिनके कई विडियो यू ट्यूब में उपलब्ध है। आप देख सकते हैं।  

आशा है कि अन्य किसान भाई भी आवर्तनशील खेती से जुड़ी जानकारियाँ भाई बहनों से शेअर करेंगे जिससे जिज्ञासु भाई बहनों को मदद मिलेगी।
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आवर्तन/ आवर्तनशील/आवर्तनशीलता/आवर्तनशील विधि/ आवर्तित शब्द के अर्थ को अधिक स्पष्टता से समझने के लिए इनके परिभाषाओं को भी एक बार देख लेते हैं:-

➡️आवर्तन 
- दोहराने वाली क्रिया ।   
- क्रिया  (श्रम, गति परिणाम) परम्परा।  
- यथास्थिति, उपयोगिता पूरकता सहज परम्परा। 
- पदार्थावस्था-परिणामानुषंगी। 
   प्राणावस्था-बीजानुषंगी। 
   जीवावस्था-वंशानुषंगी। 
   ज्ञानावस्था-संस्कारानुषंगीय परम्परा में आवर्तनशील हैं। 
- ऋण धनात्मक गुण स्वभाव प्रकाशन सीमा गतिपथ।

➡️ आवर्तनशील 
- पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से पदार्थावस्था आवर्तनशील।

➡️ आवर्तनशीलता   
-   जागृत मानव विकसित चेतना विधि से ही पदार्थ, प्राण और जीवावस्था के साथ उपयोगिता पूरकता सहज प्रमाण।
- अन्य तीनों अवस्थाएं अपने - अपने यथास्थिति में उपयोगी अग्रिम अवस्था के लिए पूरक होना ही आवर्तनशीलता है।

➡️ आवर्तनशील विधि   
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान, जागृत मानव परम्परा सहज कार्य व्यवहार फल परिणाम ज्ञान सम्मत होना आवर्तनशीलता।
- मानवीयतापूर्ण आचरण संगत कार्य व्यवहार। 

➡️ आवर्तित 
- धरती सूर्य के सभी ओर आवर्तित है।
- परमाणु में मध्यांश के सभी ओर परिवेशों में कार्यरत सभी अंश आवर्तित रहते हैं। इसी के साथ प्रत्येक अंश अपने घूर्णन गति में रहते हैं इसे भी आवर्तन संज्ञा है और धरती भी अपने घूर्णन गति सहित आवर्तनशील है।

* संदर्भ:परिभाषा संहिता, संस्करण : 2016, पृष्ठ नंबर:38-39
* अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
* प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी  

श्रद्धेय ए. नागराज जी ने "आवर्तनशील अर्थशास्त्र" पर एक पुस्तक भी लिखा हुआ है जिज्ञासु गण उसका अध्ययन कर सकते हैं। 
धन्यवाद  
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समस्त सूचना अनिल भैया जी, पूनम बहन जी, बसंत भैया जी  (ग्राम हिंगनाडीह, अभ्युदय क्रमांक 3) व अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं पर आधारित है।

प्रतिकात्मक चित्र संयोजन: गूगल की मदद से, आभार
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आपके विचारों व सुझावों का स्वागत है।

Saturday, May 25, 2019

जीत या हार?

ऐसा लग रहा है कि हम जनता जीत के भी हार गए हैं (ये मेरा अपना मानना है, अभी जागृतिक्रम में हूँ व समझने का प्रयास कर रही हूँ )। अगर यह जीत का आधार अच्छे कार्य होते तो उनको भी स्वयं में विश्वास होता। पर यहाँ जीत के लिए जाति, धर्म, संप्रदाय, देश सुरक्षा का प्रयोग करना पड़ा...और सबसे ज्यादा "भय कारक" (fear factor) दिखा। और हर बार यह प्रयोग काम नहीं करेगा।

कोई भी अच्छा राजनेता कोशिश करता है कि जनता उसे उसके अच्छे कार्यों पर उसे वोट करें न कि गलत आधारों पर... पर जैसे ही उसे सत्ता का लालच दिखता है तो वह उसे हथियाने के लिए कोई भी तरीका अपनाता है। 
उदाहरण- हाल ही के विधानसभा के चुनाव में एक बेहतर कार्य करने वाली पार्टी (आपके मानने/ मान्यता के अनुसार ) बूरी तरह से हारी।
इतना अच्छा कार्य ( उनकी मान्यतानुसार) करने के बावजूद उस हार से लगभग सभी टूट चुके थे तो इस बार विकास के बजाय चुनाव के मुद्दे का आधार कुछ और ही हो गया। क्यों? क्योंकि उन्होंने यह मान लिया कि हम जनता को अच्छे काम से ज्यादा कोई मतलब नहीं होता। हम सिर्फ तात्कालिक वातावरण से प्रभावित होकर वोट देते हैं।

आगे उम्मीद है कि हम जनता मूलभूत आवश्यकताओं (शिक्षा -चेतना विकास हेतु, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, उत्पादन जैसे विषयों ) पर जो वास्तव में बेहतर व गंभीरता से कार्य कर रहे हैं उन्हें आगे काम करने का अवसर देंगी। 

जैसे हम (जनता) वैसी हमारी सरकार :)
आप सभी को बहुत बहुत बधाइयाँ :)
आशा है कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार आवश्यक मुद्दों पर बेहतर कार्य करेंगी, साथ ही यह भी निवेदन है कि अन्य पार्टी जो भी अच्छे कार्य कर रहे हैं उसे सहयोग दिया जाए, यदि कोई योग्य व्यक्ति अच्छा कार्य करे तो उससे महत्वपूर्ण पद दिया जाए।

हर हाल में "मानवीयतापूर्ण आचरण" के लक्ष्य को केंद्र में रखने व कैसे हमारा देश अन्य देशों के लिए "मानवीयतापूर्ण आचरण" का एक अच्छा उदाहरण/ स्रोत बने इस पर गंभीरता से सभी को मिल जुल कर कार्य व सहयोग करने की आवश्यकता है।  

सादर प्रणाम 


(अस्तित्व में न जीत है न हार है...सब साथ साथ हैं, harmony में हैं, बस एक मानव अवस्था को छोड़कर... जिस क्षण से मानवीयता की जीत होगी उस पल से सही मायने में वास्तविक जीत शुरू होगी)

Thursday, May 16, 2019

खुश होने के लिए या खुश होकर काम करें?

वर्तमान में बच्चों में पढ़ाई के दबाव से आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंता का विषय है।
जीवन में कई बार उतार चढ़ाव आते रहते हैं और आत्महत्या से यदि को कोई समाधान निकलता तो हर कोई करता।
दिन भर विचार इसी पर चल रहा था कि एक बच्चा दबाव में आत्महत्या कर लेता वही एक दूसरा बच्चा या व्यक्ति कितना भी दबाव हो उसे वह दबाव ही नहीं लगता। क्यों?
क्योंकि वह हर काम खुश होकर करता है और खुशी में हजारों काम बगैर पलक झपकाए उत्साह के साथ कर सकते हैं।
यहाँ जिन बच्चों ने आत्महत्या के कदम उठाए उनको सुनने पर यह ज्ञात हुआ कि वे जो भी कर रहे थे माता- पिता के दबाव से कर रहे थे। वे उसे अपनी खुशी से नहीं कर रहे थे।
https://www.facebook.com/bhupendrakhidia/videos/680309032405055/
ऐसा नहीं है कि माता-पिता को अपने बच्चों से प्रेम नहीं वे उनका भला नहीं चाहते हैं पर कहीं तो कुछ गैप है उसे समझने की आवश्यकता है।
समाधान ये हो सकता है कि या तो आप जो उसके भले के लिए सोचते हैं उसे संवाद के माध्यम से उसके सामने रखने का प्रयास करें। उसे हर आयाम से बताया जाए कि उसके लिए मेरा (माता-पिता) यह सोचना क्यों सही है? कैसे सही है? उसे अनेक उदाहरण दिये जाए।
फिर यदि वह आपकी बात से स्वीकृत होकर उसे स्वीकारता है तब ठीक है फिर उसे बराबर मार्गदर्शन देते रहिए। पर हर समय इस बात का ध्यान रखा जाये कि उस पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बने। दबाव मतलब शासन और शासन किसी को स्वीकार नहीं।
हाँ अगर आपके (माता-पिता) ऊपर यदि आपके बच्चे की 100% स्वीकृति है तो वह आपके हर बात को सहर्ष स्वीकार कर लेगा क्योंकि उसे पता है कि आप जो भी कदम उठा रहे हैं उसके भले के लिए है।
दूसरा समाधान ये हो सकता है कि बच्चा जिस भी विषय में interest रखता हो उस पर आप खोज करिए कि कैसे वह विषय उसके व्यक्तित्व के विकास में उसे मदद कर सकता है। और उसके सामने वह विषय कैसे उसके लिए उपयोगी हो सकता है इसका पूरा structure सामने रख दे। यह उसके लिए बेहद मदद गार होगा।
बच्चों को हम ऐसे यूं ही नहीं छोड़ सकते कि उसे जो पसंद वही करे और हम चुप चाप शांति से बैठ जायें! ...बेशक वह वही करे पर हमें अच्छे से खोजबीन करना होगा कि उसकी पसंद को और कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ताकि वह उसकी जिंदगी जीने में काम आए।
यदि आप confuse हो तो counselling भी कर सकते हैं।
किसी अच्छे counselor का पता कर उनसे संपर्क किया जा सकता है।इससे आपको बहुत मदद मिलेगी....

मुख्य बात यह है कि हमारी संतान कोई भी काम खुश होकर करें। हमारी संतान ही नहीं हमें भी इस बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
आवश्यकता है कि नहीं जाँच लीजिये :)







चित्र साभार:https://www.ndtv.com/delhi-news/india-which-has-long-focused-on-student-success-now-offers-happiness-classes-1887803?fbclid=IwAR18KNZ4AJ_hjUx1GXGrTuYpUpjMwwVhcIuao779fHX2f9scCQtT9OLTV_8
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आपके सुझावों का स्वागत है।

Saturday, March 9, 2019

मानवीयता मध्यस्थ का ही एक रूप

आज के माहौल को देख कर विचार उठ रहा था कि हमें आवेश तो दिखाई देता है पर शांति, अमन चाहने वाले क्यों नहीं दिखाई देते? अखबारों या टीवी चैनल में देखिये सबसे पहले नकारात्मक या आवेशित खबरें ही दिखाई देती हैं? शांति वाली खबरें हम खुद ही नहीं देखते!
फिर याद आया श्रद्धेय बाबा श्री ए. नागराज जी की बातें जो मैंने रिकॉर्डिंग में सुना था कि वर्तमान शिक्षा में आवेश पैदा करके या चीजों को चीर-फाड़ कर तोड़ -फोड़ कर, परमाणु को आवेशित कर ही अध्ययन किया जाता है। मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया कुछ होता है अभी तक ज्ञात नहीं था। 
इसलिए हमारा जो अब तक का पूराना अभ्यास रहा है इसी वजह से हम आवेश को ही पहचानते हैं मध्यस्थ को नहीं जबकि मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया के कारण ही यह सारा अस्तित्व और सौंदर्य दिखाई पड़ता है।
इस अभ्यासानुसार हम चाहे इकाई - जड़ हो या चैतन्य पहले आवेशित करते हैं फिर उसके स्वभाव का अध्ययन करते है जैसा कि हम अभी देख ही रहे हैं!!! जबकि आवेश हमारा स्वभाव गति है ही नहीं! 
और जिस वस्तु व क्रिया के कारण वह इकाइयाँ व व्यवस्था बनी रहती है और जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस पर ध्यान नही दिया जाता।
मध्यस्थ क्रिया या मध्यस्थ वस्तु का ही अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है। कैसे कोई इकाई अपने में बने रहती है। कैसे कोई परंपरा (पदार्थ, प्राण, जीव व ज्ञान) बने हुए हैं या कैसे बने रहेंगे? इसका ही अध्ययन होने की आवश्यकता है।
मध्यस्थ दर्शन से हमने पाया कि मध्यस्थ स्थिति (जागृति) को प्राप्त करना ही लक्ष्य है। सारे आवेश मध्यस्थ स्थिति में आने पर ही नियंत्रित होते है।
सम और विषम गुण बाकी तीन अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव) के लिए महत्वपूर्ण है उपयोगी व पूरकता को प्रमाणित करता है पर भ्रमित मानव में विषम गुण (युद्ध, क्रोध, ईर्ष्या, शिकायत, अहंकार आदि) जो आवेश रूप में व्यक्त होता है कभी भी उपयोगिता और पूरकता (संतुलन) को व्यवस्था में प्रमाणित नहीं कर पाता। इसलिए खुद भी पीड़ित, दुखी रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करता रहता है। 
जबकि अनुभव-संपन्न मानव का कार्य-कलाप भी सम-विषम ही होता है, पर वह मध्यस्थ क्रिया (आत्मा) द्वारा नियंत्रित होता है।
अत: मानवीयता मध्यस्थ गुण का ही एक रूप है इसलिए इतिहास मानवीयता का ही होगा व अध्ययन भी इसी का होने की आवश्यकता है। इसके अध्ययन से ही हमारी आने वाली पीढ़ी अपना पूरा ध्यान, कैसे इस मध्यस्थ स्थिति को प्राप्त किया जाए इस पर लगाएगी। व पूर्णता (जागृति) को प्राप्त करेगी।
कल्पना कीजिये कितना सुंदर समय होगा वह! :)

(मध्यस्थ दर्शन से प्रेरित विचार)
मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से