Sunday, October 5, 2014

चाँद

चाँद ....गहन अंधकार में...
चाँद ...धीमी धीमी रोशनी में भीगा हुआ...
चाँद... पूरी तरह से प्रकाशित
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हर समय वह पूर्ण था|
दूसरा जो रूप था वह दिखने तो अपूर्ण था पर हर स्थिति उसकी खूबसूरत थी..और जब वह पूरी तरह से प्रकाशित हुआ तो वह अपने सौंदर्य की चरम सीमा में था...
पर वह हर समय पूर्ण ही था|
अपूर्णता देखने वाले की दृष्टि में थी पर वह यथार्थ में "पूर्णता" को प्राप्त था|


तन्हा आदमी....

पहले स्वयं ही औरों के प्रति कृतघ्नता/ शिकायत का भाव रखते हुए अपनी पहचान के लिए ऐसी व्यवस्था करता है कि वह तन्हा रह जाये ...फिर स्वयं ही शिकायत करता है कि कोई उसे "सहयोग" नहीं करता|
कैसे कोई करेगा?
आपने तो कोई कृतज्ञता ही व्यक्त नहीं की|
आपने तो कोई सहयोग ही नहीं किया|
जितना सहयोग मिला उसके लिए कभी आभार व्यक्त नहीं किया|
औरों को हमेशा पराया ही समझा| जिसे अपना समझा उस पर अपना अनुशासन चलाया|अपने इशारों पर चलाना चाहा| उसे एक यन्त्र समझा..उसकी भावनाओं की कभी कद्र ही नहीं की| कब तक ऐसे चलता रहेगा|
तन्हा आदमी....