Sunday, October 11, 2009

मानव जाति नष्ट हो जाए तो दुःख नाहिं......






देखिये इन तस्वीरों को क्या लगता है आपको? ये मानव है या कुछ और ?
अपने आप को मानव कहने में भी शर्म आती है।
कैसे ये इतने निर्ममता से इन प्यारे जीवों की हत्या करते हैं?
क्या इनके हाथ नहीं कांपते?
अरे इन निरीह, मूक जीवों की आंखों में देखो ये बोल नहीं सकते तो क्या?
ये अपनी आंखों से बात करते हैं जो तुम अपने शब्दों से नहीं समझा सकते।
प्रकृति को नुकसान पहुँचाना तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है, सारी सृष्टि में तो बस ये ही राज कर सकते हैं बाकि सब तो इनके गुलाम है।
बना दी रेलगाड़ियाँ, अब इन प्राणियों को क्या मालूम की पटरी पार करते वक्त दायें बाएँ देखो।
कट भी जाए या जख्मी हो जाए तो पुरे ट्रेन में एक भी मुसाफिर नहीं मिलेगा जो इनका प्राथमिक ईलाज कराये।
मानव मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं पहले तो बहुत अच्छे, दूसरे प्रकार के तो मूक दर्शक और तीसरे ऊधमी बहुत बुरे।
तीसरे प्रकार के मानव तो ख़ुद तो परमाणु बम में बैठे ही हैं और सारी सृष्टि को भी बिठा के रखा है।
अब आपको क्या लगता है ? सारे देश हाथ में परमाणु बम रख कर चुपचाप बैठेंगें?
बन्दर के हाथ तलवार दे दी जाए तो क्या होगा? ये आप ख़ुद ही सोच सकते हैं।
तो ऐसे में हम सबको ये चिंता सता रही है की मानव जाति का क्या होगा?
पर मैं कहती हूँ कि इतनी प्यारी प्रकृति को नष्ट करने वाला यह "मानव जाति नष्ट हो जाए तो दुःख नाहिं "

Friday, October 9, 2009

और वे मुस्कुरा रहे थे ....

सबेरे अख़बार देखा,
आज फ़िर वही ख़बर .....
फ़िर से १८ जवान शहीद हो गए।
मन बहुत दुखी है आज, इतने जीवन नष्ट होते देख ।
और नीचे ही ३ मंत्रियों की तस्वीरें थी जिसमें वे मुस्कुरा रहे थे .........

Monday, October 5, 2009

"एक रुपये किलो में चावल ले लो ......."

माननीय मुख्यमंत्री जी आपकी जनता आपसे एक सवाल पूछना चाहती है की १ रुपये में चावल देकर आप किसका भला कर रहे हैं?

गरीबों की , किसानों की ,हम मध्यमवर्गीय लोगों की या फ़िर उच्च वर्गों की ?

आपके १ रुपये का चावल का अधिकांश भाग कहाँ जाता है ? यह बात किसी से छुपी नही है।

अब बात रह गयी किसानों और मध्यमवर्गीय परिवारों की जो इन गरीब मजदूरों के ऊपर निर्भर है उनका क्या होगा ?

उन किसानों के खेतों में मेहनत-मजदूरी करके ये मज़दूर दो रोटी कमाते थे।

पर अब आप सब राजनीतिज्ञों की मेहरबानी से वे मेहनत करने से कतराते हैं। ढूँढने पर बड़ी मुश्किल से कुछ मजदूर मिलतें हैं।

आप उनको कब तक एक रूपये किलो में चावल देते रहेंगे जनाब ? आख़िर एक दिन तो आपको सत्ता से जाना पड़ेगा तब इन गरीब मजदूरों का क्या होगा?

जब उन मजदूरों की जगह मशीने ले लेंगी तब तो ये कहीं के भी नही रह जायेंगे। आख़िर मध्यम वर्ग कब तक देखते रहेंगे कोई न कोई समाधान तो ढूँढ ही लेंगे।

और ये एक रूपये में चावल प्राप्त करके १ रुपये कमाने लायक भी नहीं रह जायेंगे।

सिर्फ़ वोट के खातिर तो उनको बरबाद न करें।