Saturday, March 9, 2019

मानवीयता मध्यस्थ का ही एक रूप

आज के माहौल को देख कर विचार उठ रहा था कि हमें आवेश तो दिखाई देता है पर शांति, अमन चाहने वाले क्यों नहीं दिखाई देते? अखबारों या टीवी चैनल में देखिये सबसे पहले नकारात्मक या आवेशित खबरें ही दिखाई देती हैं? शांति वाली खबरें हम खुद ही नहीं देखते!
फिर याद आया श्रद्धेय बाबा श्री ए. नागराज जी की बातें जो मैंने रिकॉर्डिंग में सुना था कि वर्तमान शिक्षा में आवेश पैदा करके या चीजों को चीर-फाड़ कर तोड़ -फोड़ कर, परमाणु को आवेशित कर ही अध्ययन किया जाता है। मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया कुछ होता है अभी तक ज्ञात नहीं था। 
इसलिए हमारा जो अब तक का पूराना अभ्यास रहा है इसी वजह से हम आवेश को ही पहचानते हैं मध्यस्थ को नहीं जबकि मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया के कारण ही यह सारा अस्तित्व और सौंदर्य दिखाई पड़ता है।
इस अभ्यासानुसार हम चाहे इकाई - जड़ हो या चैतन्य पहले आवेशित करते हैं फिर उसके स्वभाव का अध्ययन करते है जैसा कि हम अभी देख ही रहे हैं!!! जबकि आवेश हमारा स्वभाव गति है ही नहीं! 
और जिस वस्तु व क्रिया के कारण वह इकाइयाँ व व्यवस्था बनी रहती है और जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस पर ध्यान नही दिया जाता।
मध्यस्थ क्रिया या मध्यस्थ वस्तु का ही अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है। कैसे कोई इकाई अपने में बने रहती है। कैसे कोई परंपरा (पदार्थ, प्राण, जीव व ज्ञान) बने हुए हैं या कैसे बने रहेंगे? इसका ही अध्ययन होने की आवश्यकता है।
मध्यस्थ दर्शन से हमने पाया कि मध्यस्थ स्थिति (जागृति) को प्राप्त करना ही लक्ष्य है। सारे आवेश मध्यस्थ स्थिति में आने पर ही नियंत्रित होते है।
सम और विषम गुण बाकी तीन अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव) के लिए महत्वपूर्ण है उपयोगी व पूरकता को प्रमाणित करता है पर भ्रमित मानव में विषम गुण (युद्ध, क्रोध, ईर्ष्या, शिकायत, अहंकार आदि) जो आवेश रूप में व्यक्त होता है कभी भी उपयोगिता और पूरकता (संतुलन) को व्यवस्था में प्रमाणित नहीं कर पाता। इसलिए खुद भी पीड़ित, दुखी रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करता रहता है। 
जबकि अनुभव-संपन्न मानव का कार्य-कलाप भी सम-विषम ही होता है, पर वह मध्यस्थ क्रिया (आत्मा) द्वारा नियंत्रित होता है।
अत: मानवीयता मध्यस्थ गुण का ही एक रूप है इसलिए इतिहास मानवीयता का ही होगा व अध्ययन भी इसी का होने की आवश्यकता है। इसके अध्ययन से ही हमारी आने वाली पीढ़ी अपना पूरा ध्यान, कैसे इस मध्यस्थ स्थिति को प्राप्त किया जाए इस पर लगाएगी। व पूर्णता (जागृति) को प्राप्त करेगी।
कल्पना कीजिये कितना सुंदर समय होगा वह! :)

(मध्यस्थ दर्शन से प्रेरित विचार)
मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से

Monday, March 4, 2019

एक आवेशित व्यक्ति का प्रभाव

हमारी एक सहयोगी ने दुखी हो बताया कि उनका 4 वर्षीय नाती टी वी देख देखकर कहने लगा हैं -"चलो हम लोग भी बंदूक चलाएँगे।"
और साथ ही कह रही थी कि कई मुस्लिम समुदाय के लोगों ने स्वयं को भय से घर में बंद कर लिया है और कह रहे थे हम सब यह घर छोड़ कर चले जाएँगे।
देखिये एक नासमझ व्यक्ति ने 44 सैनिकों पर हमला किया। परिणामस्वरूप सारे देश में आक्रोश की लहर फैल गई।
क्या उसने एक मिनिट जरा सा भी यह सोचा कि उसके एक इस गलत कार्य से कितने मुस्लिम समुदाय के भाई-बहन भय में आ जाएंगे?
उस एक गलती का परिणाम... आज दोनों देशों में युद्ध की स्थिति आ गई!!!!
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एक जागृत मानव, भ्रमित मानव के सारे आवेश को अपने में समा लेता है जैसे यह धरती सूर्य के आवेश को अपने में समा लेती है...पर भ्रमित मानव भ्रमित मानव के आवेश को हजम नहीं कर पाता और वह और दोगुने आवेश के रूप में व्यक्त होता है... और इसका परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होता।
हमें बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है...उदाहरण हमारे सामने ही है।
सीरिया के आवेश को कुचलने के लिए रूस ने जो तरीका अपनाया पूरा सीरिया बर्बाद होगया। एक एक दिन में कई कई बच्चों की लाशें कफन में लपेटे दिखाई देती थी।
अफगानिस्तान जिसे अमेरिका ने हथियार देकर रूस के खिलाफ तैयार किया (सूचनानुसार) जब वे अमेरिका के लिए खतरा हो गया तो उसे दबाने की भरसक कोशिश की गई। (जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है स्वयं उसमें गिर जाता है)
इतनी लंबी लड़ाई लड़ने के बाद और जंग में अपने सैनिकों के बेवजह मृत्यु से परेशान अमेरिका ने अंत में अपने सैनिकों को वापस बुलाया और कहा इसमें सभी देश इसमें सहयोग करें व अपने सैनिकों को भेजें। (सूचनानुसार)
जहाँ तक मैंने समझा कि अधिकतर जंग धर्म/ आस्था/ जेहाद के नाम पर लड़े जा रहे हैं। और कहीं धन (प्रतीक) के लालच में याने हमने जिसे "माना हुआ" या जो हमारी "मान्यता" है उसके लिए हम अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। हथियारों का व्यापार कैसे बढ़े इसका भी प्रयास दिखता है।
इसमें इनकी कोई गलती नहीं है -जिसने जिसको महत्वपूर्ण माना हुआ है उसने इसके लिए अपना सब कुछ लगा दिया।
और जब सही का प्रस्ताव उनके सामने आएगा तो वे सही के लिए अपना तन मन धन लगाएंगे।
ऐसे वातावरण तैयार करने की ज़िम्मेदारी उनकी सबसे पहली है जिसे सर्वप्रथम सही की सूचना प्राप्त हो गई है। अपनी (जीवन की) ताकत को पहचाने और उसे सही समझकर सही के लिए लगा दिया जाए (एक प्रस्ताव)।
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एक बार समझदारी का वातावरण (स्वयं को सुरक्षित रखते हुए) तैयार हो जाए फिर सारे आवेश, पीड़ा, दुख, भय, आतंक, क्रोध उसमें विलय हो जाएंगे।
एक महत्वपूर्ण बात कैसी भी विपरीत परिस्थिति सामने आए "आशा" न छोड़ें।