Saturday, March 15, 2014

मेरा/ हर मानव का मूल लक्ष्य क्या है?

इस पर बराबर ध्यान बना रहे तभी हम अनावश्यक और आवश्यक वस्तुओं की समीक्षा और मूल्यांकन कर पायेंगें| 
नहीं तो हमारी स्थिति एक मकड़ी की तरह रहेगी जो एक दिन अपने ही बनाये जाले में फंस कर........जाती है|

जीवन नित्य उत्सव है...

पर कब?
हर क्षण लाखों कोशिकाएँ (प्राण अवस्था) नष्ट (पदार्थ अवस्था में रूपांतरित) हो जाती है निश्चित ही उनकी हर स्थिति उत्सवित होने वाली रहती है क्योंकि वह अनुशंगीयता (परिणाम व बीज) , स्वभाव (संगठन- विघटन, सारक-मारक)के अनुसार अपने धर्म का निर्वाह कर पा रही है|
पर वर्तमान में हमारी (हम ज्ञान अवस्था की) भ्रमित स्थिति है इसलिए हमारे लिए कोई खास दिन ही उत्सव का होता है पर जैसे ही हम "समझ" क्या है? इसे समझने/ जानने का प्रयास करते हैं तब हर क्षण हमारे लिए उत्सव का होता है (शंका मुक्त/ भ्रम मुक्त/ पीड़ा मुक्त/शिकायत मुक्त वाली स्थितियाँ और ३वस्तु का सम्पूर्ण ज्ञान(स्वयं, अस्तिव, मानवीयता पूर्ण आचरण) होने के कारण) ...यदि ऐसा नहीं है तो हमने स्वयं को "समझदार" होने का भ्रम पाल रखा है|
इसे स्वयं में जाँचने की आवश्यकता है...
यदि यह स्थिति मुझमें नहीं है इसका मतलब मुझमें लगातार सही पठन/ सही श्रवण/ सही देखना/सही समझने की आवश्यकता बनी हुई है|
आवश्यकता है कि नहीं? इसे स्वयं में जाँचा जाये|