Sunday, December 30, 2012

Save Soni Sori



Soni Sori, a 35-year-old Adivasi school teacher in Chhattisgarh, has been languishing in  Raipur Jail since October 2011, she has written letters from jail asking the Nation to help her.
Why is she being tortured?
Soni has been tortured by the Chhattisgarh police - she complained that she was stripped naked and given electric shocks. A medical exam found small stones in her vagina and rectum.
The torture was under the supervision of Ankit Garg, Superintendent of Police. In a terrible twist of events he was given the President's Award on Republic Day.



Soni lives in Dantewada, a Naxalite stronghold. Last year, Soni fought with the Naxalites when they tried to stop her form hoisting the national flag on Independence Day.  Naxalites shot her father in the leg saying he was a police informer.  Yet the police first arrested her husband, and now Soni, for being Naxalite supporters! 
Why do the police want her in jail?
Because she has constantly fought for her people’s rights - for minimum wages. She has taken on powerful companies that want the Adivasis’ land, and the Chhattisgarh government that supports these companies. She has taken on the police for their illegal activities.
Now, fed up of being in jail, far from her three young children, Sori has gone on hunger strike. In a letter to her lawyer she writes:  “We Adivasis are only fated to suffer atrocities and die. We Adivasis are a business for the government.’’

A very sensitive letter of Soni to his Godfather...
पूजनीय मेरे पिता मेरे गुरु 

चरण स्पर्श 
आप सब कैसे हैं| दीदीजी कैसी हैं| हरिप्रिया की याद् हम बहुत करते हैं| उसकी चंचलतापन अब भी ऐसी होगा जैसे पहले करती थी हमे एक बार आप सब परिवार से मिलना है| गुरूजी आप सामाजिक कार्यकर्ताओ, वकीलों, बुद्धिजीवियों के बारे में हमे लोग बहुत कुछ कहते हैं सुनाते हैं हम तो यही जवाब देते हैं| कि अच्छा करे या बूरा जो भी करेंगे सभी पीड़ित लोगों के भलाई के लिये करेंगे| गुरूजी मैंने अपनी जन्मभूमि पर सब कुछ खो चुकी हूँ| आज मेरे पास कुछ भी नहीं सिवाय आपकी दी हुई शिक्षा को छोडकर आपने तो कहा था कि बेटा सच को कोई नहीं हरा सकता| इसी विश्वास के साथ जिन्दा हूँ| यदि मेरी मौत भी होती है तो मेरी सच्चाई की जंग को हारने मत दीजियेगा| मेरे पिता ये कैसा कानून है ऐसा कानून किसने बनाया पुलिस आफिसर, पुलिसकर्मी हमें इतना अत्याचार किया अनेक तरह कि गन्दी गाली दिया पूरी जख्म देकर न्यायालय को सौपा न्यायालय ने हमारी दर्द अत्याचार को बगैर देखे सुने जेल भेज दिया| मेरी गुनाह क्या है मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया जो कि अपने ही शरीर की कुर्बानी देनी पड़ी आपको तो बहुत कुछ नहीं पता होगा, आपकी शिष्या के साथ क्या-क्या हुआ कैसे-कैसे हरकते किये है| जो सबूत न्यायालय में पेश किये है उस सबूत से महसूस किये होंगे की कितनी बेदर्दी के साथ किया गया होगा| खास हम दिल्ली से ना आते आपने हमे रोका क्यों नहीं| दिल्ली के न्यायालय में चिल्लाई, गिडगिडाई, रोई फिर भी मेरी अन्दर की पीड़ा लाचारता को क्यों नहीं समझा गया| जब मुझे लाया जा रहा था मेरी आत्मा तो गवाह दे चुकी थी कि तुम्हें मार दिया जायेगा या अंदरूनी रूप से मौत देगे वही हुआ ! आज आपकी शिष्या जिन्दा लाश बनकर रह रही है| इस वक्त भी उन गुंडों के बीच रहकर संघर्ष करना पड़ रहा है| कब तक इन लोगों का सामना करू आप तो अच्छी तरह से वाकिफ हो यहाँ की परिस्थिति जुल्म से अब और सहने की क्षमता मुझमे नही है| मैं मानती हूँ सुप्रीम कोर्ट न्यायालय के आदेश से मेरी इलाज हुई जिससे मेरी जान बच गई| आप सब लोग ने हमारे लिये बहुत कुछ किया फिर भी मैं सुरक्षित नहीं हूँ| ना ही महसूस कर सकती हूँ| आप लोग समझने की कोशिश कीजियेगा| एक तो अपनी अंदरूनी पीड़ा से गुजर रही हूँ| दूसरी तरफ यहा की रणनीति से परेशान हूँ| जो पुलिसकर्मी दिल्ली न्यायालय ने दिया आदेश का पालन नहीं किया, ना ही डरा है| इन पर मैं कैसे विश्वास कर सकती हूँ| साकेत न्यायालय में तो अपनी बहन बनकर जायेगी इसपर एक भी खरोच नहीं आएगा| ये वादा न्यायालय में पुलिस अफसर ने किया था फिर निभाया क्यों नहीं ये तो न्यायालय के नजर में एक अपराधी है| इसके लिये कोई सजा नहीं आखिर क्यों| गुरूजी मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हूँ| कलकता का डाक्टर कहा था जबतक दर्द कम ना हो दवा लेते रहना एक महीने का दवा दिये थे दवा खत्म हो चुका है| एक बार जानकारी दी थी पर दवा नहीं मिला अब जानकारी भी देना उचित नहीं समझती धीरे-धीरे दर्द बढते जा रहा है| कभी-कभी ऐसा लगता है| इनका दिया हुआ जख्म है फिर मैं इन्ही लोगों से मदद ले रही हूँ | इसका मतलब इन लोगों के सामने झुक रही हूँ| ये सब सोचने के लिये हमे मजबूर करते हैं| छत्तीसगढ़ की पुलिस तो हमे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा जब हमको कलकता ले गये तो नक्सलवाद का नाम देकर इलाज करवाया जिससे अनगिनत गार्ड लगाया गया फिर भी कलकता की डाक्टरों की टीम अच्छी थी, एक ऐसी मानवता था जो कि अपनापन लगा| छत्तीसगढ़ पुलिस प्रशासन के लिये ऐसा कोई कानून नहीं है| जिससे एक अच्छी मानवता ला सके| यदि आगामी में हमे कुछ हो भी जाता है तो इसके जिम्मेदार छत्तीसगढ़ सरकार, पुलिस प्रशासन है| क्योंकि जब से पुलिस वाले ने हमपर ऐसी प्रताड़ना किया जिससे अंदरूनी रूप से घायल हो चुके हैं| और सुरक्षित नही है मेरे तीनों बच्चे बहुत परेशान हैं इन बच्चो के लिये चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही हूँ| हमे कुछ हो गया तो इनका सहारा कौन बनेगा आप लोग को ही तय करना है| अब हमसे भी ज्यादा लिंगा को परेशान कर रहे हैं| भूख से पीड़ित रखना अनेक तरह का गन्दी गाली देना बहुत परेशान कर रहे हैं| अंकित गर्ग एस.पी. तो ये भी कहा था लिंगाराम को मरना बहुत जरुरी है| हम मार तो नहीं पाये पर जेल में मरेगा जरुर हमने व्यवस्था कर लिया है| अपने आप को बहुत बड़ा तोप समझता है चार गांव का सी.डी. कैसट बनाकर कौन सा पद हासिल करेगा हम पुलिसवालों से टक्कर लेने की सोच रखता है अब उसको सब समझ में आ जायेगा| देखता हूँ अब स्वामी अग्निवेश कैसे बचाता है| इस बार उसे भी नहीं छोडेगे वो तो एक नक्सली है| इसलिए नक्सली का साथ देता है| गुरूजी लिंगा कह रहा था थाने में रखकर डेढ़ साल पहले जो परेशानी दिये थे अब भी वैसी कर रहे हैं| हमेशा ये कहते हैं तुमको तो मरना ही होगा| इसका मतलब ये लोग मुझे मार देंगे फिर मौत होने के बाद कोई भी वजह बताएंगे| न्यायालय भी सच मानकर इस केस का सुनवाई कर देगी| आधा पेट खाना देना पेपर ना पढ़ने देना टी.वी समाचार ना देखने देना हमेशा गंदी गाली देना ये सब क्या है बुआ| कब तक सहन करू मेरी कोई गलती भी नहीं है| बेवजह जेल में रखा गया ये सब सोचते हुए मैंने सोच लिया है क्यों न हड़ताल में बैठ जाऊ| लिंगा को बचा लों गुरूजी लिंगा को कुछ हो गया तो पुलिस प्रशासन का बहुत बड़ी जीत है| मैं जानती हूँ क्योंकि जब मुझे थाने में रखकर अनगिनत बाते कहा गया है जो पूरी बाते आप लोग को बताना चाहती हूँ और सुप्रीम कोर्ट में भी| यदि मैं दिल्ली में अरेस्ट ना होती तो इन लोग लिंगा और हमें मार देते हमारी किस्मत च्छी थी कि हम वहा से अरेस्ट हुए| खत बड़ी मुश्किल से लिखती हूँ करंट सार्ट से मेरी हाथ भी कापता है आँखों में तकलीफ है| बहुत ही कमजोरी आई है| खून की मात्रा 10 ग्राम था प्रताड़ना के बाद 7.8 पॉइंट हो गया है| रायपुर आने के बाद खून की मात्रा को बढाने के लिये टेबलेट दे रहे हैं| गुरूजी एस्सार नोट कांड में अंकित गर्ग एस.पी.हमे मोहरा बनाने की पूरी ताकत लगाया पर कामयाब नहीं हो सका आपकी दी हुई सच्चाई शिक्षा की ताकत जो मेरे साथ है| दुःख सिर्फ इस बात की है कि मेरी शरीर को घायल करने में सफल हो गया है| जीवित रही तो भाजपा सरकार, एस्सार से मुझपर किये गये अत्याचार का जवाब मांगने की पूरी कोशिश है| ये बहुत बड़ा साजिश था है| क्योंकि अंकित गर्ग ये भी कहा है ये प्लान हमारा बनाया हुआ था मदर सोद गोड जो तुम, लिंगा और कुछ लोग फंस गये अब मेरा प्लान कामयाब होते दिख रहा है| गुरूजी आपसे मेरी एक निवेदन है| आप हमे एक बार एस्सार कंपनी मालिक से मिलवाने की कोशिश कीजियेगा मेरे अन्दर कुछ प्रश्न है| जिसका जवाब उनके द्वारा सुनना जानना चाहती हूँ एस्सार नोट कांड केस ने तो मेरी इज्जत जीवन को ही दाव पर लगा दिया| जो भूल नहीं सकती| गुरूजी गुनाह की होती तो यहा रहने में कोई दिक्कत नहीं| मैंने कोई गुनाह ही नहीं किया फिर क्यों रखा जा रहा है| कुछ तो बताईये ऊपर से मुझपर इतना अत्याचार किया गया| जो लोग मेरे साथ किये वो मजे में घूम रहे हैं| जब दंतेवाड़ा न्यायालय जाती हूँ तो ऐसा लगता है उनकी बंदूक छीनकर उन्हें मौत दूँ| फिर अपने आपको समझाती हूँ वो जो किये हैं मैं वो नहीं करुँगी| अंतिम विश्वास सुप्रीम कोर्ट न्यायालय है जो कुछ भी करेगा, न्यायालय करेगा| मुझे अपनी लड़ाई अपनी शिक्षा कलम की ताकत से लड़ना होगा| गुरूजी मैं कितनी खुशनसीब हूँ| अपने आप में गर्व होती है| कि हर पल मेरे गुरु का साथ मिलता है| गुरूजी 26 जनवरी में मेरे कार्यरत संस्था आश्रम में तिरंगा झंडा ही फहराने की कोशिश करियेगा इसकी शिकयत यहाँ पर करने से भी कोई फायदा नहीं| क्योंकि तिरंगा झंडा के लिये थाने में बहुत बड़ा मजाक उड़ाया गया है| इस झंडे की मोल को ये गुन्डे क्या समझेंगे| आपने हर बार हमारी अच्छाइयों पर साथ दिया इस बार भी दीजियेगा यदि आश्रम में तिरंगा झंडा के जगह और कोई झंडा फहराया गया तो मैं अपनी इच्छा मृत्यु की गुहार करूंगी लाऊंगी राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट न्यायालय से| क्योंकि ऐसी बुजदिल कायर देशवासियों के साथ क्या जीना है| गुरूजी हम आपका याद बहुत करते हैं| इन्ही यादो के साथ सोचती रहती हूँ| हम अपने गुरु से कब मिलेंगे| 

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"गलतियों को गलती से रोकना,  युद्ध को युद्ध से रोकना "यह एक स्वयं ही एक बड़ा अपराध है.
मैं ठीक से नहीं जानती कि यह सोनी सोरी कौन है? जितनीं भी जानकारी मुझे मिली वह फेसबूक से मिली और मेरी अंतरात्मा उसे सही ठहराती है ....सबसे पहली बात तो यह हम सबसे पहले मानव हैं और मानवता हममें एक सबसे बड़ा गुण. मानवीयता पूर्ण आचरण ही हमें मानव पद में सुशोभित करती है अन्यथा हम एक पशु व राक्षस मानव से ही नज़र आते हैं. सोनी सोरी और उन जैसे कई लोगों पर बेवजह अत्याचार एक चिंतनीय विषय है. 
अंकित गर्ग जिसने सोनी सोरी पर अत्याचार किया और वे जो नकाब में हैं उनमें अंकित गर्ग का ही चेहरा दिखता है.
सोनी सोरी एक बहादुर लड़की है वह हमारे जैसे चुप चाप बैठने वाली नहीं थी वह हमारी अनमोल सम्पदा को यूँ ही लूटते नहीं देख सकी...इसकी ही सजा उसे मिल रही है. 
मैंने अभी तक ऐसी सरकार आजाद भारत में नहीं देखी जिसने हमें और धरती माँ को ना लूटा हो...जितने भी आये सभी हमें खोखला बनने की  ही तैयारी में नज़र आते हैं.  और उनको इतनी भी समझ नहीं कि जिस डाली में बैठते हैं उसे काटा नहीं जाता.    उस पेड़ को पानी दीजिए, खाद दीजिए वह स्वयं ही आपको फल देगी.  मैं हमारी देश विदेश के सरकारों और लोगों से अपील करती हूँ कि स्वयं की धरती और लोगों की रक्षा करने वाले सोनी- सोरी जैसे बहादुरों के लिए सामने आये और उनको रिहा करने के साथ ही इस धरती माँ पर हो रहे अत्याचार / लूट को बंद करने एक जूट होवें.    
धन्यवाद.
रोशनी  

Friday, November 2, 2012

क्या यही विकास है?


हरे भरे वृक्षों को काटना.... क्या यही विकास है ?

















वृक्षों को नष्ट कर, खनिजों को धरती से निकाल प्रकृति को बीमार करना..... क्या यह विकास है? 













धुएँ फैलाते, पर्यावरण को नष्ट करते कारखाने...क्या यही विकास है?  











उपजाऊ धरती की जगह कांक्रीट की बिल्डिंगें और सड़कें...क्या यही विकास है?  
और 

फ़िल्मी हीरो हिरोइन के स्टेज शो...क्या यही विकास है? 












अफ़सोस की बात है कि कुछ ऐसे लोग जिनके माध्यम से लोगों में जागरूकता बढ़नी चाहिए, उनके लिए यही विकास है....? 
"विकास के लिए विनाश को सहन ही करना पड़ेगा..."
उक्त विचार व्यक्त किये गए हैं  मशहूर हिंदी अखबार के "नवभारत" में. आप इसे सम्पादकीय में पढ़ सकते हैं ...तारीख -  २०/१०/२०१२

भूमि अधिग्रहण के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुए इन महोदय ने उन तमाम नेताओं और उद्योगपतियों की ही बातों में हाँ में हाँ मिलकर उनके कार्यों का समर्थन किया है. अब किसानों के बारे में सोचता ही कौन है? उन उपजाऊ जमीन और हरे भरे जंगलों के बारे में सोचता कौन है? इनका ध्यान सिर्फ उन जमीनों के अंदर छुपे बेशकीमती खनिज पदार्थ पर है जो कि इस धरती के संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है... . उपजाऊ जमीन में अनाजों को उगाने की  जगह उद्योग इनको ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं.
आज ये जितने भी विकास की बातें कहते हैं उदाहरण के तौर पर एक नजर डालते हैं चमचमाती सड़कों पर... कभी आपने ध्यान दिया है पक्की सड़कें कहाँ बनती है है उसकी दिशा और लक्ष्य किसलिए होता है?
सिर्फ और सिर्फ खनिजों के शोषण हेतु... आम आदमियों से उनको कोई मतलब नहीं इनका उद्देश्य सिर्फ रूपया...रूपया..सिर्फ रूपया है.   

यदि विकास का मतलब धरती को बीमार करना और मानव जाति को विलासिता की ओर धकेलना है तो नहीं चाहिए यह विकास!!!!