Tuesday, September 29, 2009

"NEWS CHANNEL AS A TAPERECORD"

All news channel except D.D. news are act like Taperecord.
Is it?
These are very good for nursery students.
एक ही समाचार आप करीब आधे घंटे तक सुन सकते हैं।
इतने गरीब है ये News Channel वाले कि इन्हें News ही नहीं मिलता बेचारे दिन रात मेहनत करके खोज लाते हैं एक -दो समाचार और पुरा दिन गुजार देते हैं।
अब सुनिए लाते हैं भी तो क्या?
जिससे हमें कोई वास्ता ही नहीं रहता। कौन किसके साथ भागा? किसको मारा? शाहरुख़ ने क्या कहा? किस सीरियल में क्या हो रहा है? आदि आदि...
आप कभी भी उनसे बढ़िया और रोचक समाचार नहीं सुन पाएंगे।
अगर रोचक है भी तो आधे घंटे तक सुनाकर बोरे कर देंगे।
तो ओ समाचार चैनल वालों .....
आपसे सनम्र निवेदन है कि मिडिया रूपी हथियार का सही इस्तेमाल कर लोगों में जागरूकता बढ़ावें।

Monday, September 21, 2009

पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिए

कितना सही वाक्य है ना यह?
अब शायद ही कोई त्यौहार बचा हो जिसमें पीना अच्छा नहीं मानते।
मेरे ख्याल से राखी का त्यौहार ही बचा रह गया है। बाकी तो बस अब मवालियों का रह गया।
यकीं नहीं आता है न आपको? तो गणेश भगवान् या दुर्गा माता जी के विसर्जन में देखिएगा, शराब के नशे में धुत्त होके गुलाल पोत के फिल्मी गाने वह भी बेहुदे डिस्को गाने में थिरकते जाते हैं।
हिन्दुओं के त्यौहारों का यह हाल देखकर बहुत दुःख होता है। जब कोई मुसलमान व अन्य धर्म के लोग उस समय हमारे पास होते हैं तो मारे शर्म के हमारा सर झुक जाता है।
अपने ईश्वर की क्या दुर्गति कर दी इंसान ने!
कितना सही कहा है किसी ने -
"देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान ....
कितना बदल गया इंसान "

Tuesday, September 15, 2009

नक्सली जिन्दगी

फ़िर वही ख़बर राजनांदगांव के मदनवाड़ा में नक्सली (खासकर महिला नक्सलियों ने ) २९थ को एक अफसर सहित सभी पुलिस की हत्या की। इसे शहादत कहा जाए कि बेवकूफी, यह समझ में नही आता? हमारे पुलिस अफसर इतने बेवकूफ हैं यह अभी समझ में आया।
क्या इनको यह भी नही मालूम कि इसके पहले भी कुछ जवानों को चारा बनाकर हमारे कई जवानों को इन्होने मारा था।
एक बच्चे का सामान्य ज्ञान भी इनसे ज्यादा होगा। चतुराई में भी इनसे कई कदम आगे होंगे।
अरे सिर्फ़ भोले भाले लोगों को डरा धमाका कर अपना पोलिसि़त झाड़ने से क्या मतलब? अपनी ही सुरक्षा ख़ुद नही कर पाते तो दूसरी की खाक करोगे?
अब चालिए चलते है दूसरी तरफ इन नक्सलियों को देखते है, जब से पैदा हुई हूँ आज तक समझ में नही आया की इनका मकसद क्या हैं? क्या केवल आतंक फैलाना ही हैं?
अपनों को ही मारते हो? कोई तुमसे खुश हैं? आप सभी की जिन्दगी इतनी सस्ती है? किसके लिए गवां रहे हो समझ से परे है भाइयों।
आपस में एक दूसरे को मारने से क्या हासिल हो रहा है? क्या यह समझ में नही आता की आप सब मोहरे हैं खेल तो कोई और खेल रहा है? जो खुश हो रहा होगा चलो जनसँख्या नियंत्रण का यह भी अच्छा उपाय है।
रेल की पटरी, बिजली टावर नष्ट करना है? तो करो। आपका ही पैसा है मुफ्त में आया है दुबारा तुम्हारा ही पैसा लगा के बनवा दिया जाएगा।
कोई फर्क नही पड़ने वाला बंधू इस तरह से कोई दूसरा रास्ता चुनो कुछ करने के लिए।
जीवन इतनी सस्ती नही की ऐसे गवाओं
कुछ ऐसा करो की ख़ुद पर फक्र हो!