Saturday, January 23, 2010

मनुष्य शाकाहारी या माँसाहारी....?

बहुत समय से मन में यह जिज्ञासा उठती थी.........
मानव का ह्रदय क्यों चित्कार उठता है जीव हत्या देखकर?
क्या माँसाहारी पशुओं में दया, करुणा और प्रेम की भावना होती है?
इन प्रश्नों के कुछ जवाब मुझे प्राप्त हुए।
आप भी जानें मानव, शाकाहारी पशुओं और माँसाहारी पशुओं में अंतर....












*पंजे-
माँसाहारी-इनके पंजे शिकारियों की तरह होते हैं नुकीले धारधार।
शाकाहारी और मनुष्य- इनके पंजे इस प्रकार नहीं होते।

*स्वेद ग्रंथि-
माँसाहारी-इनमें स्वेद ग्रंथि /त्वचा में रोम छिद्र नहीं होते तो ये जीभ के माध्यम से शरीर का तापमान नियंत्रित करते हैं।
शाकाहारी और मनुष्य-इनके शरीर में रोम छिद्र /स्वेद ग्रंथियां उपस्थित होती हैं और ये पसीने के माध्यम से अपने शरीर का तापमान नियंत्रित रखते हैं।

*दाँत-
माँसाहारी- इनमें चिड़फाड़ के लिए नुकीले दाँत होते हैं पर चपटे मोलर दाँत जी चबाने/पिसने के काम आते हैं नहीं होते।
शाकाहारी और मनुष्य- दोनों में तेज नुकीले दाँत नहीं होते जबकि इनमें मोलर दाँत होते हैं।

*आहारनालतंत्र-
माँसाहारी- इनमें Intestinal tract शरीर की लम्बाई के ३ गुनी होती है ताकि पचा हुआ मांस शरीर से जल्द निकल सके।
शाकाहारी और मनुष्य- इनमें Intestinal tract शरीर की लम्बाई के १०-१२ गुनी लम्बी होती है।

*पाचक रस
माँसाहारी- इनमें बहुत ही तेज पाचक रस (HCl- हैड्रोक्लोरिक अम्ल ) होता है जो मांस को पचाने में सहायक है।
शाकाहारी और मनुष्य- इनमें पाचक रस (अम्ल) माँन्साहारियों से २० गुना कमजोर होती है।

*लार ग्रंथि -
माँसाहारी- इनमें भोजन के पाचन के प्रथम चरण के लिए अथवा भोजन को लपटने के लिए आवश्यक लार ग्रंथियों की आवश्यकता नहीं है।
शाकाहारी और मनुष्य- इनमें अनाज व फल के पाचन के प्रथम चरण हेतु मुख में पूर्ण विकसित लार ग्रंथि उपस्थित होते हैं।

*लार-
मांसाहारियों - में अनाज के पाचन के प्रथम चरण में आवश्यक एंजाइम टाइलिन (ptyalin) लार में अनुपस्थित होती है। इनका लार अम्लीय प्रकृति की होती है।
शाकाहारी और मनुष्य- में एंजाइम टाइलिन (ptyalin) लार में उपस्थित होती है व इनका लार क्षारीय प्रकृति की होती है।

यह चार्ट A.D. Andrews, Fit Food for Men, (Chicago: American Hygiene Society, 1970) पर आधारित है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया यह site जरूर देखें:-
http://www.celestialhealing.net/physicalveg3.htm
इसके अलावा एक और बात मैंने गौर की है वह है इनके पानी पीने के तरीके....
क्या आपने कभी यह गौर किया है ?
मांसाहारी पशु अपने जीभ से चांट कर पानी /द्रव पीते हैं जबकि शाकाहारी और मनुष्य मुँह से पानी पीते हैं।
इन कुछ उदहारण को देखकर बताइए कि मनुष्य शाकाहारी है या मांसाहारी ?
अपनी अंतरात्मा से पूछिए जवाब जरूर मिलेगा........
यदि एक भी मनुष्य इस लेख को पढ़कर अपने को बदल सके तो यह मनुष्यता की जीत होगी ........

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एक महत्वपूर्ण टिपण्णी Creative Manch से -

प्रिय रोशनी जी आपने बहुत सुन्दरता से अपनी पोस्ट तैयार की ! आशा है इस पोस्ट का अपेक्षित प्रभाव पाठकों पर पड़ेगा ! एक बात और भी है जो हम बताना चाहेंगे ! अकसर मांसाहारी लोग स्वाद का गुणगान करते हैं ! जबकि यह बात बेमानी है ! हम जिस तरह शाकाहारी चीजें जैसे- मटर, गोभी, भिन्डी, मूली, प्याज, इत्यादि कच्चा खा सकते हैं, उसी तरह मांस नहीं खा सकते ! क्योंकि मांस का अपना कोई स्वाद नहीं होता ! सारा कमाल सिर्फ मसालों का होता है जो मांस पकाने में प्रयुक्त किया जाता है !

Creative Manch आपका सहृदय आभार....

Saturday, January 2, 2010

"गौ माता "





कितने सुन्दर लग रहे हैं ना ये जूते/सैंडिल!
यह बेहद आरामदायक और सुन्दर हैं....
आप सोच रहे होंगे आखिर मै, क्या कहना चाह रही हूँ?
इससे जुडी कुछ घटनाएं "पत्रकारों द्वारा नेताओं पर जूते से हमले"की घटना याद आ जाती है किन्तु मै ऐसा नहीं, कुछ और कहना चाहती हूँ....
कुछ दिन पहले की ही बात है, हम धमतरी जा रहे थे। रास्ते में एक गाँव पड़ा "सारखी" जहाँ मैंने एक ऐसा दृश्य देखा जिसने मुझे विचलित कर दिया।
एक गाय जो खेत पर मृत पड़ी थी उसे ४-५ कुत्ते नोच- नोंच कर खा रहे थे।
पता नहीं किसकी गाय थी? जिसने इस बेरहमी के साथ उसे ऐसा छोड़ दिया था।
हम हिन्दू गाय को माता कह कर पूजते हैं।
क्या माता की मृत्यु होने पर इस तरह हम खुले जगह पर कुत्ते के खाने के लिए छोड़ दें।
हम मानते हैं कि हमारे शरीर में जीवन (आत्मा) होती है जो प्रयोगों द्वारा भी सिद्ध हुआ है उसी प्रकार पशुओं में भी जीवन (आत्मा) होती है।
जब यह जीवन अपने शरीर का यह हाल देखती होगी या कहें जिनके लिए उसने इतना कुछ किया उनके द्वारा अपना यह हाल देखकर वह दुखी नहीं होती होगी?
यदि हम गौ माता के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो लानत है हम हिन्दुओं पर।
फिर तो यह कहना होगा कि हिन्दू सबसे बड़े झूठे हैं जो गाय को माता कहते हैं।
इस दृश्य का दूसरा पहलु जो मैने हाल ही में महसूस किया।
हम कल ही जूते खरीदने गए मैंने पहले ही सोच रखा था कि चमड़े के जूते या सैंडिल नहीं लेना है। बहुत से चप्पल और जूते मैंने कोशिश कि पर एक भी आरामदायक नहीं मिले फिर मैंने दुकानदार से कहा भैय्या मेरे पैर में तकलीफ रहती है कृपया आरामदायक जूता दिखाइए। उसने मेरे सामने ३ जोड़े सैंडिल रखे जिसे मैंने पहनकर देखा बहुत ही आरामदायक थे।
"ये चमड़े के जूते थे" मेरी गाय माता के खाल से तैयार किये गए जूते थे।
ह्रदय प्रेम और श्रद्धा से भर गया उस माँ के लिए जो मरकर भी बच्चों को कष्ट में नहीं देख सकती और उनके राहों में कालीन बनकर बिछ जाती है.......

माँ तुम्हें प्रणाम....