Tuesday, April 17, 2018

कठुआ जैसी घटनाओं के कारण

असिफा जैसी प्यारी व मासूम बच्ची के साथ कठुआ में जो कुछ भी हुआ उस घटना से पूरी दुनिया दुखी और स्तब्ध है। ऐसी घटनाओं को झेलने वाले माता-पिता और उनके बाकी परिवार वालों के दुख को तो हम कभी कम नहीं कर पाएंगे। पर आगे ऐसी घटनाएँ न हो इसलिए घटना क्या हुई इस पर चर्चा करने के बजाय इसके पीछे इसके कारण पर जाया जाए।
इस घटना के पीछे हिन्दू -मुस्लिम समुदाय में एक गहरी नफरत की भावना साफ साफ दिखाई देती है। और सबसे कमजोर टार्गेट हमेशा से महिलाएं व बच्चे ही होते हैं उन्हें ही सदियों से निशाना बनाया जाता रहा है।
बांग्लादेश में जहाँ हिन्दू समुदाय पर निशाना होता है वही जहाँ हिन्दू समुदाय की बहुलता होती है वहाँ अन्य कमजोर समुदाय पर हमले व इसी प्रकार की घटना देखने को मिल रही है।
सीरिया में हो रही घटनाओं से भी हम सब परिचित ही हैं। यहाँ भी समुदायवाद, नफरत, अपनापन-परायापन और अहंकार ही घटना के मुख्य कारण हैं।

अभी हाल ही मैंने एक अखबार में छत्तीसगढ़ की एक घटना पढ़ी थी। जिसमें एक बच्ची को उसके परिवार वालों ने एक दूसरे घर जो उनका ही था वहाँ पशुओं को चारा देने भेजा था। जहाँ उसे अकेले देखकर उनका पड़ोसी जिसके दो बच्चे भी हैं उसकी नियत खराब हो गई और उसने उससे जबर्दस्ती की कोशिश की जब वह कामयाब नहीं हो पाया तो उसने उस बच्ची को मार दिया बाद में उसे धान के पेरे में ही जला दिया।
इस घटना के पीछे शराब थी और घटिया मानसिकता थी। इस व्यक्ति ने उस बच्ची के साथ जबर्दस्ती शराब के नशे में ही करने की कोशिश की थी।
न जाने ऐसी कितनी ही घटनाएँ हैं जिनमें कभी हम महिलाओं का, कभी बच्चों का, कभी गरीबों और प्रकृति का शोषण तो कर ही रहे हैं। कुल मिलाकर बलशाली के द्वारा कमजोर वर्गों का शोषण।
कुछ घटनाओं में तो सीधे सीधे सरकार ही जिम्मेदार होती है। जिनके लिए पैसे से बड़ा कुछ होता ही नहीं! इसके लिए वे कुछ भी कर सकती है।
जैसे उदाहरण के लिए शराब को ही ले लीजिये।
छत्तीसगढ़ में अब सीधे सीधे सरकार ही इसे बेचती है। पहले मयखानों को हेय की दृष्टि से देखा जाता था और यह ऐसे स्थानों पर होते थे जहाँ से बस्तियों से दूर होती थी। पर अब हर जगह खुले आम, हर मुख्य सड़क पर इसकी दुकानें खुल गई हैं। सबसे ज्यादा शर्म तब आती है जब एक स्कूल के बगल में ही शराब की दुकान होती है।
चाहे बच्चे हो या फिर गाँव के सीधे साधे लोग इसके गिरफ्त में आ रहे हैं। शराब के सेवन से इंसान हैवान हो रहा है, परिवार में कलह बढ़ रहे हैं और परिवार बर्बाद हो रहे हैं। पर सरकार को इन सबसे क्या लेना देना? सड़क और नाली बना दिया -विकास हो गया!
अगला महिलाओं और बच्चियों के ऊपर अत्याचार होने का कारण है "पॉर्न वेबसाइट"। आज हमारे व दूसरे देशों में जो भी घटनाएँ हो रही हैं वह मानसिकता दूषित होने की वजह से है और इसमें सबसे बड़ा हाथ विदेशी वेबसाइट का है। जिन्होंने जैसे कसम खा रखी है कैसे परिवार में सम्बन्धों  को तहस -नहस किया जा सके। ये लोग भी सिर्फ पैसे/ सुविधा के कारण ही भोगवादी संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं।
अगर कभी सरकार इसे रोकने की कोशिश भी करती है जैसे एक बार बीजेपी की सरकार ने इस साइट को बैन करने की कोशिश की थी पर अभिजात्य वर्ग ने इसकी इतनी आलोचना की थी कि सरकार को वापस अपने हाथ खींचने पड़े थे।
तो यहाँ भारत को हेय दृष्टि या नफरत से देखने की बजाय सभी देशों को अपनी अपनी कचरा सामग्री (पॉर्न वेबसाइट) पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसी साइटें से न केवल भारत देश की वरन उनके स्वयं के देश की महिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता बिगड़ी है। सभी को मिलकर इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  
अगला मानसिकता को दूषित बनाने का काम अखबार और मीडिया वर्ग का है। अखबारों में ऐसी खबरों को कभी कभी ऐसे लिखा जाता था कि वह मसालेदार खबर लगे। बजाय इन सब घटनाओं के पीछे जो मूल कारण है इसे बताने की बजाय वह पूरा कवरेज सिर्फ घटनाओं को ही देते हैं।
आखरी के पन्नों में हीरो-हीरोइन के ऐसे ऐसे तस्वीर छापेंगे कि लोगों की मानसिकता दूषित हो। भले ही इनका मकसद अखबार को रोचक बनाना हो ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके अखबारों को पढ़ें, पर अनजाने ही वे एक बहुत बड़ा अपराध कर रहे होते हैं। पहले अखबारों का प्रयोजन लोगों को सही के प्रति जागरूक बनाने का होता था। पर अब...?
आज की फिल्में और सीरियल्स भी एक बहुत बड़ा रोल अदा कर रही है इन सब घटनाओं के होने में। मुझे तो आज तक यह समझ नहीं आया की यह adult मूवी क्या है? एक उम्र के बाद लोगों को वयस्क मतलब समझदार मान लिया जाता है और उनके लिए इस प्रकार की फिल्मों का निर्माण होता है। तो आजकल की घटनाओं को देखा जाए तो यही वयस्क लोग ऐसी घटनाओं को कारगर करने में शामिल होते हैं? इसका मतलब है कि समझदारी का उम्र से कोई लेना देना नहीं है। जो चीज गलत है वह सभी के लिए, सभी उम्र के लोगों के लिए गलत है और ऐसी चीजों के ऊपर फिल्मों का निर्माण ही गलत है। यह सब सिर्फ मानसिकता दूषित करने का काम करती है। 

मीडिया में बहुत बड़े बड़े वेबसाइट हैं जैसे यू ट्यूब, फेसबूक आदि। इन सबमें जो advertise होते हैं या आपको ऐसे वीडियो देखने को recommend  करते हैं जो मानसिकता को दूषित करने के लिए पर्याप्त है। 
जिनको नहीं देखना वह या तो उसे ignore कर देता हैं या फिर शिकायत करता है। पर जिनके मन में कौतूहल होता है वह उसे देखता है कुछ विचारों में अंजाम देते हैं और कुछ उसे हकीकत में अंजाम देते हैं। यही सब परिणाम हमको नजर आ रहा है। अब नारी में माँ, बहनों के बजाय सिर्फ भोग्या नजर आती है। बढ़ती घटनाएँ बता रही हैं कि दूषित और घटिया मानसिकता दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

महिलाएं भी कम जिम्मेदार नहीं है अपने ऊपर घट रही घटनाओं के ऊपर। उनके आधुनिकता के नाम पर कपड़े...!!! सबसे पहले तो यह समझने की आवश्यकता है कि कपड़े का प्रयोजन क्या है? क्या शरीर को दिखाना? या शरीर का संरक्षण? कपड़ों से सम्मान की चाहत ने कभी कभी महिलाएं स्वयं को ही भोग्या के रूप में पेश कर देती हैं। विज्ञापनों और फिल्मों में काम कर रही महिलाएं ऐसी महिलाओं की आदर्श होती हैं। इन मासूमों को यह समझ नहीं आता कि एक बड़ी मार्केटिंग इन सबके पीछे लगी होती है और कैसे वह इन सब महिलाओं के रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में लिए चला रही होती है। जिसके पीछे इन कंपनियों का सिर्फ एक ही उद्देश्य है पैसा/ सुविधा...  अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए वे कुछ भी तरीका अपना लेते हैं चाहे समाज का कुछ भी हो। तो जब तक समाज पूरी तरह से सभ्य नहीं बन जाता, जब तक महिलाओं को भी समान दृष्टि से देखा नहीं जाता तब तक स्वयं की सुरक्षा और सम्मान स्वयं करें और परिवार व समाज के अन्य लोगों को जागरूक करें ताकि वे नर नारी में समानता को देख सकें व एक दूसरे का सम्मान कर एक दूसरे के पूरक / सहयोगी बनने में सहायक हो। 

इन सब घटनाओं (शोषण मानसिकता) का अगला सबसे बड़ा कारण है शिक्षा में अधूरापन...
जहाँ शिक्षा का उद्देश्य होना था कि -
कैसे लोगों में अपनापन- परायापन दूर हो व हम सब "मानवजाति एक" की मानसिकता हो।
कैसे मानव स्वयं को पहचान कर, स्वयं की व्यवस्था को समझकर सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी के योग्य बन सके।
कैसे व क्यों अस्तित्व में सभी इकाइयाँ हैं उनका प्रयोजन क्या है? उनके साथ मैं कैसे निर्वाह करूँ ताकि सबके साथ मैं तालमेल से मैं जी सकूँ?
कैसे मैं सम्बन्धों में जी सकूँ?, सम्बन्धों का प्रयोजन क्या यह जान सकूँ। कैसे सम्बन्धों से निरंतर सुख को प्राप्त करूँ?
पर वर्तमान शिक्षा "स्वयं/ मैं" को जिसे स्वयं ही अपनी जिंदगी जीना है को छोड़ कर बाकी सभी पर ध्यान दिया और दे रहा है। आधी अधूरी या गलत जानकारी के साथ प्रस्तुत शिक्षा कैसा समाज, कैसी पीढ़ी और कैसी व्यवस्था निर्मित करेगी...यह सब परिणाम हम सबके सामने है।
आज घटनाएँ उनके साथ हो रही है कल हमारे साथ होगी। इसलिए अभी से संभल जाइए। उन लोगों पर ध्यान दीजिये या उनका साथ दीजिये जो "शिक्षा के मानवीयकरण" पर पूरे ईमानदारी के साथ लगे हुए हैं ताकि कल का भविष्य सुंदर हो और हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर गर्व कर सकें।