हरे भरे वृक्षों को काटना.... क्या यही विकास है ?
वृक्षों को नष्ट कर, खनिजों को धरती से निकाल प्रकृति को बीमार करना..... क्या यह विकास है?
धुएँ फैलाते, पर्यावरण को नष्ट करते कारखाने...क्या यही विकास है?
उपजाऊ धरती की जगह कांक्रीट की बिल्डिंगें और सड़कें...क्या यही विकास है?
और
फ़िल्मी हीरो हिरोइन के स्टेज शो...क्या यही विकास है?
अफ़सोस की बात है कि कुछ ऐसे लोग जिनके माध्यम से लोगों में जागरूकता बढ़नी चाहिए, उनके लिए यही विकास है....?
"विकास के लिए विनाश को सहन ही करना पड़ेगा..."
उक्त विचार व्यक्त किये गए हैं मशहूर हिंदी अखबार के "नवभारत" में. आप इसे सम्पादकीय में पढ़ सकते हैं ...तारीख - २०/१०/२०१२
भूमि अधिग्रहण के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुए इन महोदय ने उन तमाम नेताओं और उद्योगपतियों की ही बातों में हाँ में हाँ मिलकर उनके कार्यों का समर्थन किया है. अब किसानों के बारे में सोचता ही कौन है? उन उपजाऊ जमीन और हरे भरे जंगलों के बारे में सोचता कौन है? इनका ध्यान सिर्फ उन जमीनों के अंदर छुपे बेशकीमती खनिज पदार्थ पर है जो कि इस धरती के संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है... . उपजाऊ जमीन में अनाजों को उगाने की जगह उद्योग इनको ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं.
आज ये जितने भी विकास की बातें कहते हैं उदाहरण के तौर पर एक नजर डालते हैं चमचमाती सड़कों पर... कभी आपने ध्यान दिया है पक्की सड़कें कहाँ बनती है है उसकी दिशा और लक्ष्य किसलिए होता है?
सिर्फ और सिर्फ खनिजों के शोषण हेतु... आम आदमियों से उनको कोई मतलब नहीं इनका उद्देश्य सिर्फ रूपया...रूपया..सिर्फ रूपया है.
यदि विकास का मतलब धरती को बीमार करना और मानव जाति को विलासिता की ओर धकेलना है तो नहीं चाहिए यह विकास!!!!
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