Wednesday, June 30, 2010
Sunday, June 6, 2010
क्या हम दोबारा एक हो सकते हैं?
यह प्रश्न हमारे एक पाकिस्तानी मित्र नदीम जी के हैं। Chatting room में इनसे मित्रता हुई और हम कुछ गंभीर मुद्दों पर भी चर्चा करते हैं। चर्चा से मुझे यह महसूस हुआ कि किसी भी देश की जनता अलग नहीं रहना चाहती। सभी एक साथ मिलजुल कर रहना चाहती हैं।
हम आज के हालात और अकबर कालीन युगों की चर्चा कर रहे थे उस समय हम हिन्दू मुस्लिम कितने प्रेम से रहते थे । अकबर, बीरबल के किस्से तो आज भी मशहूर हैं और सुर सम्राट तानसेन जी को आप कैसे भूल सकते हैं? और किस तरह अंग्रेजों ने कूटनीति से हमें लड़वाकर अलग करवा दिया और हमारे आदर्श नेता चाहे भारत के, चाहे पाकिस्तान के हों सत्ता के लालच में बंटवारे को स्वीकार कर लिया। अब अंग्रेजों का स्थान अमेरिका ने ले लिया है। हम कितने भोले हैं जो उनकी बात में आसानी से आ जाते हैं।
आज भी ये नेता कुर्सी और सत्ता की लालच में संवेदनशील मुद्दों का समय समय पर प्रयोग कर लोगों को भड़काते रहते हैं।
देश की संपत्ति पर ज़रा गौर फरमाइए :- स्थापत्य कला में मुग़ल शासन और भी मुस्लिम शासन का कितना बड़ा हाथ है जामा मस्जिद, ताजमहल, लाल किला, कुतुबमीनार यह सब धरोहरें इनकी देन हैं। स्थापत्य कला ही नहीं वरन साहित्य, संगीत और कला क्षेत्र में भी इनका योगदान सराहनीय है। उर्दू भाषा जो हिंदी और अरबी से बनी मिश्रित भाषा है इस मिठास के बगैर आप रहने की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं?
आप नीरज जी की ब्लॉग ही देख लीजिये कितने मुस्लिम शायरों के जिक्र हैं उनकी नज्में आज उनके ब्लॉग की शोभा हैं।
अगर इन नेताओं के प्रयास सच्चे होते तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान कभी भी अलग नहीं होते।
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की छोड़िये!.... सारे देश के लोग एक होते।
आखिर हमारे पूर्वज तो एक ही हैं ना तो हम सब भाई भाई ही तो हैं।
हमें सत्ता पर ऐसे लोगों को बिठाना चाहिए जो मानव धर्म का सम्मान करते हों और बुराई पर अच्छाई से विजय हासिल करें।
ताकि हम फिर से एक हों सके और मिलकर इस धरती के लिए कार्य करें।