बर्बाद कर रखा है देश को इन सत्ता प्रेमियों ने!
सत्ता के लालच से बंधी पट्टियों वाले नेताओं को यह नहीं दिखाई देता कि उनके द्वारा उठाये गए कदम देश को वापस परतंत्र बनाने की ओर चले हैं।
जब राजीव दीक्षित जी बताते हैं कि किस तरह से अमीर देश हम पर दबाव डलवाकर पेटेंट कानून में परिवर्तन कर उत्पादों के निर्माण का एकाधिकार अपने पास ले लिए है और हमारे घरेलु उद्योगों को और देश की संपत्ति को इससे भारी नुकसान पहुँच रहा है। यह सब सुनते ही जैसे खून खौलने लगता है।
हमारे एक बहुत ही परम सम्मानीय मंत्री जी हैं जिनका क्रिकेट प्रेम तो जग जाहिर है भले ही सारे अनाज खुले आसमान के नीचे बारिश में सड़ जाये और देश की जनता बारिश में भिंगते भूखे और महंगाई से मर जाये पर क्रिकेट प्रेम तो प्रथम स्थान पर ही रहेगा।
इन सम्मानीय नेताओं को ना तो महंगाई से मतलब है और ना ही जनता से। अब क्रिकेट के बारे में बात निकल ही गई है तो थोड़ा उस पर भी चर्चा कर लेते हैं इस खेल को मिडिया वालों ने इतना ज्यादा प्रोमोट किया है किइस खेल ने आम आदमी के निजी जिन्दगी में भी दखल दिया है इसकी शिकार मैं स्वयं हूँ। इस नशे में चूर इन्सान को बहुत देर में समझ आता है कि उसकी बगिया कब उजड़ गई।
हाल ही में नक्सलवादियों द्वारा हमारे जवानों का खून बहाया जाना तथा आदरणीय नेताओं द्वारा उनकी सुरक्षा का कोई ठोस उपाय ना किया जाना यह बेहद गंभीर और संवेदनशील समस्या है आज भी जवानों को जंगलों में सिर्फ किस्मत के सहारे भेज दिया जाता है। शहीद जवानों के परिवार का दुःख हम तब ही समझ पायेंगे जब हम उन्हें अपने परिवार का सदस्य समझें। हर जवान के भी सपने होते हैं किसी की शादी होने वाली रहती है तो कोई पिता बनने वाला होता है तो कोई माँ का इकलौता लाल होता है जो उसकी इंतजार में पलकें बिछाएं रहती हैं, और जो बहनों के रक्षक होते हैं। इन रक्षकों के हमारे नेता ही भक्षक बन जाते हैं।
चाहे किसी भी देश के नेता हों इस मामले में सब एक जैसे ही हैं। अमेरिका ने अपने सैनिकों को इराक, इरान और अफगानिस्तान भेजता है , कहने को वह कहता है कि वह तालिबान को उग्रवादियों को ख़त्म करना चाहता है पर मूल में क्या है ? तालिबान आखिर बनाया किसने है? और अमेरिका अरब देशों से चाहता क्या है? उसे सिर्फ वहां के तेल भंडार से ही मतलब है इसके लिए वह अपने सैनिकों को मरने के लिए भेजेगा। पर वह यह नहीं जानता कि जो वह कदम उठा रहा है उसे हो कितनी भारी पड़ेगी।
जब मैने एक अमेरिकन आर्मी ऑफिसर से प्रश्न किया कि क्यों ये रक्षा मंत्री प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति से बातचीत कर समस्या के मूल तथ्यों को जान कर हल करने कि कोशिश क्यों नहीं करती? नाम ना छापने की शर्त में उन्होंने एक व्यंग्य किया ये बहुत ही भोले किस्म के प्राणी है और जब इन पर कोई खतरा होता है तो ये हमें आगे मरने के लिए रख देते हैं।
चाहे किसी भी देश के नेता हों इस मामले में सब एक जैसे ही हैं। अमेरिका ने अपने सैनिकों को इराक, इरान और अफगानिस्तान भेजता है , कहने को वह कहता है कि वह तालिबान को उग्रवादियों को ख़त्म करना चाहता है पर मूल में क्या है ? तालिबान आखिर बनाया किसने है? और अमेरिका अरब देशों से चाहता क्या है? उसे सिर्फ वहां के तेल भंडार से ही मतलब है इसके लिए वह अपने सैनिकों को मरने के लिए भेजेगा। पर वह यह नहीं जानता कि जो वह कदम उठा रहा है उसे हो कितनी भारी पड़ेगी।
जब मैने एक अमेरिकन आर्मी ऑफिसर से प्रश्न किया कि क्यों ये रक्षा मंत्री प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति से बातचीत कर समस्या के मूल तथ्यों को जान कर हल करने कि कोशिश क्यों नहीं करती? नाम ना छापने की शर्त में उन्होंने एक व्यंग्य किया ये बहुत ही भोले किस्म के प्राणी है और जब इन पर कोई खतरा होता है तो ये हमें आगे मरने के लिए रख देते हैं।
अंतत: सत्ता प्रेम का घिनौना रूप बड़ते ही जा रहा है यह लालच में उसे ना तो मानव धर्म समझ आता है ना ही प्रकृति धर्म। पर हर बुरी चीज का एक दिन अंत भी होता है आशा है कि एक चमकता सूरज जल्द ही आसमान में चमकने लगेगा।