(एक संक्षिप्त चर्चा बच्चों पर, आप भी सादर आमंत्रित हैं)
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आपने बच्चों को देखा होगा दिन भर खुश रहते हैं खेलते रहते हैं...वह ऐसा ही रहना चाहते हैं और हमें भी वैसा ही देखना चाहते हैं|
बच्चों को जब भी आप कुछ भी कहें सकारात्मक ही कहें, नकारात्मकता उनमें नहीं भरना है| बस सही की ही सूचना देवें| चाहे वह किसी भी माध्यम से हो (कविता, चित्र या फिर कहानियाँ)
अगर वे कुछ गलत करते हैं या फिर ऐसी चीजों की डिमांड करते हैं जैसे चॉकलेट, आइसक्रीम यहाँ पर उनकी इच्छा जरुर पूरी करें पर साथ में यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है और सही आहार क्या इस पर ज्यादा फोकस करें| साथ यह बात भी पूछी जाये कि क्या वे इससे "हमेशा/ निरन्तर खुश" रह सकते हैं?
और निरन्तर खुश वे कैसे रह सकते हैं यह भी बताएँ| जैसे सहयोग करने से, आज्ञापालन करने से, संबंधों को पहचानने व निर्वाह करने से , सही संबोधन से, सही आहार, विहार, व्यवहार से, प्रकृति व जीवों के साथ न्याय पूर्ण कार्य व्यवहार करके आदि आदि...
मानव संबंध और प्रकृति संबंध में से ज्यादा फोकस मानव संबंध पर करें...कोई भी भाषा (हिंदी, अंग्रेजी), गणित आदि के माध्यम से संबंध (७ संबंध) पर ही उनका ज्यादा ध्यान जाये यह प्रयत्न करें|
जैसा आप अपने साथ व्यवहार चाहते हैं प्रेम भरा, ठीक उनसे भी वैसा ही व्यवहार करें|
प्रेम से ही चीजों को समझाएं|
डाँटना नहीं है|
डाँटने से उनमें भय समा जाता है या फिर ऐसा भाव चला जाता है कि इस तरह से सामने वाले पर काबू किया जा सकता है| अब यह बात उनके जीने में आने लगती है| आगे आप कल्पना करने में सक्षम हैं और मेरा मानना है कि आप अपने बच्चे को भयभीत या क्रूर नहीं देखना चाहेंगे|
जीवन नित्य उत्सव है यह बात आपको शायद ठीक नहीं लगे ऐसा इसलिए क्योंकि हम मान्यताओं से चालित है मान्यताएं अच्छी या बुरी दोनों ही हो सकती है और इसी वजह से हमें सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलु लगते हैं|
सही समझ की रोशनी में हम उसे पहचान सकते हैं|पर बच्चों के मामले में यह ध्यान रखें कि आप जो भी बात कहें उससे यह सन्देश जाना चाहिए कि हर क्षण हर पल उत्सव ही उत्सव है|
वह कैसे यह आपके विवेक पर निर्भर करता है|
यह ज्यादा बेहतर होगा कि सही की सूचना पहले हममें ही आ जाये और खास बात जीने में आये क्योंकि बच्चे हमारा जीना देखते हैं|
आगे इस पर हम और चर्चा करेंगें ...