Friday, September 29, 2017

संवेदना

बाहर के बड़े गेट पर खट खट की आवाज आई। देखा तो एक लाल रंग की बछिया थी पता नहीं किसके घर की थी पर रोज एक रोटी व पसिया के लिए आती थी। कभी उसे मिलता था कभी दूसरे के नसीब में होता था। मैंने माँ को आवाज दी “लो आ गई आपकी बछिया उसे रोटी दे दीजिये।"
अरे आज नहीं है कुछ, दूसरे को दे दिया है।
ठीक है, लगता है गेट पर ही बैठ गई है।...ये फूँक फूँक की आवाज क्या आ रही है?
एक वैद्य जी के पास जाना था सो मैंने और नहीं देखा जल्दी जल्दी तैयार होकर चले गए। वापसी में मेरा ध्यान उस बछिया पर गया।
भाई ने कहा उसकी तबीयत ठीक नहीं शायद, सबेरे उठ नहीं पा रही थी। आज गाड़ी बाहर ही रखनी पड़ेगी।
तब मैंने उसे ध्यान से देखा शायद उसे डिसेंट्री हुई थी उसके पास गोबर का बहुत पतला घोल पड़ा हुआ था।
मैंने थोड़ी देर बाद और देखा वह उठने की कोशिश करती फिर बैठ जाती थी। भाई ने गोसेवक को फोन कर बताया और उन्हें बुलाया। उन्होने कहा तीन बज जाएंगे।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने उसे पानी पिलाने की कोशिश की पर उसने एक बूँद भी नहीं लिया। लोग आते जाते देख रहे थे। कुछ रुक के पूछते क्या हुआ? पूछने वालों में सभी समुदाय के थे। पर किसी ने भी मदद करने की कोशिश नहीं की। बछिया की तबीयत धीरे धीरे बिगड़ती चली जा रही थी।
इसकी जगह अगर कोई मनुष्य होता तो वह दर्द में चिल्लाता, कहराता रोता। पर यह मूक पशु चुपचाप तकलीफ को सहन कर रही थी।
कोई आवाज नहीं बस आँखों से आँसू बह रहे थे और मुँह से गोबर जैसा पतला घोल निकाल रहा था। मैंने उसके ऊपर पानी के छींटे मारे। उसे दिलासा दिया कि मैं उसके साथ हूँ और वह ठीक हो जाएगी।
अभी तक गोसेवक वालों का पता नहीं था। मैंने भाई जी को बताया कि अभी तक गोसेवक नहीं आए हैं, कहा शायद उनको समय लग जाएगा।
अब बछिया भी हिम्मत हार चुकी थी और वह बस एक घंटे के अंदर ही उसने अपने प्राण त्याग दिये।
यह लिखने तक कोई नहीं आया। पता चला कि पापा जी पार्षद के पास हैं और वह किसी गाड़ी का इंतजाम कर गाय के शव को ले जाएंगे।
कुत्ते उस शव के पास आकार भौंक रहे हैं। एक साँड दो बार आकार उस बछिया को देखकर जा चुका। लोग आकार अफसोस जाहीर कर रहे हैं।
बहुत अजीब लग रहा है। बहुत कोशिश की आँसू न बहे पर रोक नहीं पा रही हूँ। मुझे दुख इस बात का ज्यादा हो रहा है कि हम मनुष्यों की गलती की वजह इन बेजुबानों को भुगतनी पड़ती है।
उसे देखकर ये साफ जाहीर हो रहा था कि उसने कुछ अजीब चीज खाया था। या तो वह प्लास्टिक होगा या फिर अभी दुर्गा पूजा के समय बचने वाली खिचड़ी को फेंका गया होगा तो उसे ज्यादा खाकर उसकी तबीयत बिगड़ गई होगी।
अभी दुर्गा पूजा का समय है ना जाने कितने जीने की आशा का कत्ल होगा। उनकी बलि चढ़ेगी।

हम कब मानव होंगें?

यह बछिया को देखने से पता लग रहा था कि उसका बहुत ख्याल रखा जाता होगा। पर जिस किसी की भी गाय थी उसे उसके गले में कोई पट्टा या कॉलर नहीं डाला था। अगर उस पर कोई मोबाइल नंबर या घर का पता होता तो हम उन्हें तुरंत फोन कर सकते थे। तो शायद वे समय रहते उसका कोई इलाज कर सकते थे।

जो भी भाई –बहन इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं उनसे निवेदन है कि लोगों में इस बात की जागरूकता अवश्य फलाए कि पहला बचे भोजन कभी भी प्लास्टिक में बांध के ना फेंके। दूसरा ऐसे खाद्य पदार्थ (बहुत ज्यादा तेल मसाले) वाले जानवरों को नुकसान पहुँचाते हैं अत: उसे मिट्टी के अंदर डाल कर दबा दिया जाए वह ज्यादा अच्छा है। ज्यादा चावल भी इनको हजम नहीं होते अत: बहुत सारा बचा हुआ चावल गाय के सामने नहीं परोसे। तीसरे टूटे काँच या जहरीले पदार्थ कभी भी ऐसी जगह ना फेंके जहाँ लोग पशु के खाने का भोजन भी डालते हैं।
चौथी महत्वपूर्ण बात जिनकी गाय है वे अपनी गाय का विशेष ख्याल रखें। उनके गले में अपना पता व मोबाइल नंबर वाला कोई पट्टा या कॉलर डाल दीजिये ताकि आवश्यकता पड़ने पर लोग आपसे संपर्क कर सकें।
पाँचवी बात यदि कोई गौसेवक का चोला ओढ़े हुए है तो कृपया समय रहते जिस जगह बुलाया जा रहा है वहाँ पहुँचने की कोशिश करें। ताकि लोग आपको सच्चे गोसेवक के रूप में याद कर सकें।

सभी राज्यों की सरकारों, केंद्र सरकारों से भी निवेदन है कि पशुओं के लिए खास जगह बनाई जाए जहाँ वे बैठ सके, चारा खा सके। अभी ना तो गाँवों में ना ही शहरों में कोई ऐसी जगह है जहाँ वे आराम से चर सके। सब जगह सिर्फ सड़के और घर!  कुछ जगह प्लांटेशन करके उनके लिए छोड़ दिया जाए। कुछ तो व्यवस्था हो सकती है। उस पर विचार किया जाए। गौशाला के नाम पर जो भी किया जा रहा है वह सफल होने की गुंजाईश कम ही दिख रही है क्योंकि गौ सेवा के लिए सेवा भावना चाहिए। यहाँ तो सिर्फ गौ सेवा के लिए आए दान को हजम करने की तैयारी ज्यादा दिखती है। हाल ही में धमधा में हुई घटना सुनी है।

खैर....

अभी तक कोई गाड़ी नहीं आई है पार्षद ने कहा- त्योहार का समय है कोई लेबर नहीं मिलता, कोशिश करती हूँ। जिससे संपर्क किया कहता है कोशिश करता हूँ। अभी तक कोई व्यवस्था नहीं हुई।
 
माँ दुर्गा के पूजा का वक्त हो चला है...
सभी भक्त मंदिर की ओर निकल पड़े हैं.....