जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण हेतु सूचनाओं के प्रसारण में प्रचार तंत्र बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
आज हम किसी भी व्यक्ति को अपराध या गलती के नाम पर पीड़ा देते हैं, जेल में बंद कर देते हैं, तरह तरह की सजा देते हैं जबकि अपराध एक मानसिकता है। और मानसिकता में परिवर्तन ही सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है। (शरीर को कष्ट देने से मानसिकता में परिवर्तन नहीं हो सकता।)
ऐसे परिवर्तन के लिए प्रचार तंत्र के समक्ष यह प्रस्ताव है कि निरंतर जो भी कार्यक्रम आये जैसे किसी विषय पर डिबेट (जब सार्थकता के अर्थ में बातचीत होगी उसे "संवाद"कहा जायेगा) या कोई समस्या हो उस पर संवाद वह "जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान (मध्यस्थ दर्शन)" के प्रकाश में ही आये (समस्या, उसका कारण और उसका निदान पर संवाद)।
जब यह बहुत बड़े स्तर पर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाएगा तो बहुत ही बड़ी संख्या में मानव स्वतः ही मानव चेतना के प्रति जिज्ञासु होंगे। बहुत से अपराध स्वतः ही बंद हो सकते हैं।
देश भर में प्रयोग तो हो ही रहे हैं वे सभी प्रभावशाली ढंग से रखे जाए व यदि किसी व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन हुआ और वह उसे लोगों के सामने साझा करना चाहता है तो ऐसे लोगों को भी उनकी शेयरिंग के लिए आमंत्रित किया जाए उनका अभिनदंन किया जाए तो समाज में हो रहे बदलाव को और भी गति मिल सकती है। ऐसा मेरा मानना है।
और सबसे सुंदर बात होगी कि हम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करेंगे।
ज्ञान के प्रकाश में या ज्ञान पर चल रहे उदाहरणों से स्वयं में देखेंगे कि हममें क्या कमी है और उसे कैसे पूरा करें।
अभी तो हमें अपराध के नाम पर वही नजर आता है जो मीडिया में दिखाया जाता है उससे भी ज्यादा खतरनाक स्थिति है हमारे सामने।
और अभी तो हमको यही समझ नहीं आता कि सही क्या गलत क्या?
हो सकता है इस प्रयोग से अपराध में स्व नियंत्रण आ जाये? आपके क्या विचार हैं?
जैसे उदाहरण के लिए मैंने एक पोस्ट पर यह एक लाइन का कॉमेंट किया इतने लोगों की स्वीकृति देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई!
तो "शिक्षा" पर लोगों में अच्छी स्वीकृति बन चुकी है या इस पर सोचने तो लगे हैं! यह प्रचार तंत्र का ही कमाल है और सफलता है! इसे प्रचार तंत्र का सदुपयोग ही कहा जायेगा।
आज भले ही समीक्षा हो रही है पर लोग शिक्षा पर तो बात कर रहे हैं यह भी एक बड़ी उपलब्धि है।