जब भी मैं कल्पना की दौड़ लगाती हूँ
मुझे वस्तुएं लहराती ,तैरती लगती हैं ।
कल्पना और यथार्थ का संगम,
बहुत प्यारा लगता है।
विहंग तरते हुए तो कभी उड़ते से,
लगते हैं।
बादलों को जब भी देखती हूँ,
निराकार,आकार को जन्म देता
कभी हंसते, कभी मुस्कराते हुए फूल
कभी नई फूटती कोंपले।
अचानक एक बिजली की चमक,
एक गड़गड़ाहट ,
मेरी कल्पनाओं की लहर का दृश्य
एक तेज लहर में धूमिल हो जाता है
और मैं यथार्थ मे
अपने को प।ती हूँ।
1 comment:
kalpan karna bhi jarori hai
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