देखिये इन तस्वीरों को क्या लगता है आपको? ये मानव है या कुछ और ?
अपने आप को मानव कहने में भी शर्म आती है।
कैसे ये इतने निर्ममता से इन प्यारे जीवों की हत्या करते हैं?
क्या इनके हाथ नहीं कांपते?
अरे इन निरीह, मूक जीवों की आंखों में देखो ये बोल नहीं सकते तो क्या?
ये अपनी आंखों से बात करते हैं जो तुम अपने शब्दों से नहीं समझा सकते।
प्रकृति को नुकसान पहुँचाना तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है, सारी सृष्टि में तो बस ये ही राज कर सकते हैं बाकि सब तो इनके गुलाम है।
बना दी रेलगाड़ियाँ, अब इन प्राणियों को क्या मालूम की पटरी पार करते वक्त दायें बाएँ देखो।
कट भी जाए या जख्मी हो जाए तो पुरे ट्रेन में एक भी मुसाफिर नहीं मिलेगा जो इनका प्राथमिक ईलाज कराये।
मानव मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं पहले तो बहुत अच्छे, दूसरे प्रकार के तो मूक दर्शक और तीसरे ऊधमी बहुत बुरे।
तीसरे प्रकार के मानव तो ख़ुद तो परमाणु बम में बैठे ही हैं और सारी सृष्टि को भी बिठा के रखा है।
अब आपको क्या लगता है ? सारे देश हाथ में परमाणु बम रख कर चुपचाप बैठेंगें?
बन्दर के हाथ तलवार दे दी जाए तो क्या होगा? ये आप ख़ुद ही सोच सकते हैं।
तो ऐसे में हम सबको ये चिंता सता रही है की मानव जाति का क्या होगा?
पर मैं कहती हूँ कि इतनी प्यारी प्रकृति को नष्ट करने वाला यह "मानव जाति नष्ट हो जाए तो दुःख नाहिं "
11 comments:
आप लोगों को यह चित्र स्पष्ट नहीं हो रहा है इसके लिए माफ़ करें यहाँ पर रक्त का रंग नीला दिख रहा है यह बहुत ही दर्दनाक दृश्य है.
यह चित्र मैंने "solid Waste Management" से लिया है। हम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे गूगल पर search करते वक्त मिला.जिसे हम देख कर dang रह गए
Hello Roshani..I can understand what are you talking about...I can imagine what your heart was going through when you wrote this...This Nature is our Mother and we are misusing it...One day we will bear her anger...really beautifully written one...TC dear..Carry on writing...
मानव जाति नहीं मैडम, अमानुष नष्ट होने की दुआ करे तो बेहतर होगा.
आपने लिखा की मानव मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं पहले तो बहुत अच्छे, दूसरे प्रकार के तो मूक दर्शक और तीसरे ऊधमी बहुत बुरे,
तो फिर नाहक पहले और दुसरे तरह के मानव को तीसरे की खामी क्यों झेलनी चाहिए.
वैसे लेख में कुल मिला कर व्यथा बहुत ही अच्छी तरह प्रस्तुत की गई है तथा चित्र आपकी बैटन का जबरदस्त समर्थन भी कर रहे हैं..............................
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
हर्मन जी और चन्द्र मोहन गुप्त जी आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया . चन्द्र मोहन जी आपसे यह पूछना चाहती हूँ की क्या आपने कभी पशुओं में ३ catogaries देखी हैं? वे कभी भी प्रकृति को नष्ट नहीं करते.मनुष्यों में कल्पनाशीलता व कर्म स्वत्रंता होने की वजह से यह हाल हुआ है.और आप से एक बात और कहना चाहती हूँ की अब मनुष्य पशु बन नहीं सकता और उसकी जरूरतें बढती जा रही है वह अपनी जरुरत को समृधि से जोड़ता है इस कारण यह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता.आप देख तो रहें है की अब तो चाँद को भी नहीं छोडा जा रहा है.अब इन मनुष्यों ने तो space को भी नहीं छोडा.इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?इस जाति के नष्ट हो जाने से धरती माता को कोई कष्ट नहीं होगा प्रकृति के संतुलन में भी कोई फर्क नहीं आएगा?
यदि कोई N.G.O. इस लेख को पढें (छत्तीसगढ़ के) तो कृपया संपर्क करें .जब मै अपने पति के साथ हमारे गाँव जा रहीथी तब हमारे train के नीचे ३ भैंसे आ गई थी इसके पहले भी एक घटना में ४ जोड़ी बैल train के नीचे आ गयी थी. इनमे से तो कुछ घायल हो गयी थी और कुछ तो मृत. मन बहुत दुखी था कुछ न कर सकने के कारण भी.यदि कोई N.G.O. इस field में कार्य करतें है तो कृपया संपर्क में रहें.
धन्यवाद
aapka swagat hai............Basant Sahu
beautifully
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
इतनी प्यारी प्रकृति को नष्ट करने वाला यह "मानव जाति नष्ट हो जाए तो दुःख नाहिं ".nice
बसंत जी ,संजय जी और सुमन जी आप सभी का बहुत शुक्रिया.
... atyant samvedansheel prastuti !!!!
श्याम कोरी 'उदय' जी सहृदय धन्यवाद.
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