मानव का आचरण निश्चित क्यों नहीं?
जैसा कि हम पहले भी आचरण पर एक कोण से नज़र डाल चुके अब इसे दूसरे कोण से भी देखने का प्रयास करते हैं....
जरा अपनी नज़रें अपने चारो ओर दौड़ाईये और चारों अवस्था पर एक बार फिर से देखें.
सबसे पहले पदार्थ अवस्था...
आचरण निश्चित...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह पहचानना और निर्वाह करना l इन दो से ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और वे व्यवस्था में भागीदारी करते हैंl
दूसरी अवस्था प्राण अवस्था (समस्त प्रकार की कोशिकाएँ, पेड़-पौधे)
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें भी जो क्रिया का प्रकार है वह है पहचानना और निर्वाह करना l इनमें भी इन दो क्रिया के प्रकार से आचरण निश्चित हो जाता है..और व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं...
तीसरी अवस्था, जीव अवस्था...
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह है - मानना, पहचानना और निर्वाह करना..
इतने में ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और ये व्यवस्था में भागीदारी करते हैं....
अब आती है बारी हमारी..अर्थात मानव जाति की,
आचरण अनिश्चित .....क्यों?
क्यों हमारा आचरण निश्चित नहीं है?
क्योंकि हम मानना, पहचानना और निर्वाह कर रहे हैं मतलब हम जीवों जैसे जीने का प्रयास कर रहे हैं बस फर्क इतना है कि गाय सीधे घास खाती है और हम उसे पकाकर प्लेट में डाल कर खा रहे हैंl
खैर सवाल यह है कि हमारा आचरण निश्चित होगा कैसे?
तो
जवाब यह है कि जब हम जानने के अनुसार मानेगें, मानने के अनुसार पह्चानेंगें और पहचानने के अनुसार निर्वाह करेंगें.....
अर्थात जब हममें यह क्रिया होने लगेगी ...जानना, मानना, पहचानना, और निर्वाह करना...
इसके उपरांत ही हम सारे मानव जाति का आचरण निश्चित होगा चाहे वह किसी भी धरती के हों और व्यवस्था में सकारत्मक भूमिका निभायेंगेंl
(सूचनानुसार)
.............................. .............................. ..............................
एक गणित की कक्षा में एक सवाल हल करने को दिया गया.
गलत हल (मानना) करने पर सभी के उत्तर गलत आये
पर जैसे ही उन्हें सवाल हल करने का सूत्र मिल गया
तो सारे जवाब सही आये और उत्तर सबका एक ही आया...
कहने का तात्पर्य जैसे ही मानव जाति को वह समझ रूपी सूत्र मिल जाये तो उसका आचरण निश्चित हो जायेगा l
जैसा कि हम पहले भी आचरण पर एक कोण से नज़र डाल चुके अब इसे दूसरे कोण से भी देखने का प्रयास करते हैं....
जरा अपनी नज़रें अपने चारो ओर दौड़ाईये और चारों अवस्था पर एक बार फिर से देखें.
सबसे पहले पदार्थ अवस्था...
आचरण निश्चित...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह पहचानना और निर्वाह करना l इन दो से ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और वे व्यवस्था में भागीदारी करते हैंl
दूसरी अवस्था प्राण अवस्था (समस्त प्रकार की कोशिकाएँ, पेड़-पौधे)
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें भी जो क्रिया का प्रकार है वह है पहचानना और निर्वाह करना l इनमें भी इन दो क्रिया के प्रकार से आचरण निश्चित हो जाता है..और व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं...
तीसरी अवस्था, जीव अवस्था...
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह है - मानना, पहचानना और निर्वाह करना..
इतने में ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और ये व्यवस्था में भागीदारी करते हैं....
अब आती है बारी हमारी..अर्थात मानव जाति की,
आचरण अनिश्चित .....क्यों?
क्यों हमारा आचरण निश्चित नहीं है?
क्योंकि हम मानना, पहचानना और निर्वाह कर रहे हैं मतलब हम जीवों जैसे जीने का प्रयास कर रहे हैं बस फर्क इतना है कि गाय सीधे घास खाती है और हम उसे पकाकर प्लेट में डाल कर खा रहे हैंl
खैर सवाल यह है कि हमारा आचरण निश्चित होगा कैसे?
तो
जवाब यह है कि जब हम जानने के अनुसार मानेगें, मानने के अनुसार पह्चानेंगें और पहचानने के अनुसार निर्वाह करेंगें.....
अर्थात जब हममें यह क्रिया होने लगेगी ...जानना, मानना, पहचानना, और निर्वाह करना...
इसके उपरांत ही हम सारे मानव जाति का आचरण निश्चित होगा चाहे वह किसी भी धरती के हों और व्यवस्था में सकारत्मक भूमिका निभायेंगेंl
(सूचनानुसार)
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एक गणित की कक्षा में एक सवाल हल करने को दिया गया.
गलत हल (मानना) करने पर सभी के उत्तर गलत आये
पर जैसे ही उन्हें सवाल हल करने का सूत्र मिल गया
तो सारे जवाब सही आये और उत्तर सबका एक ही आया...
कहने का तात्पर्य जैसे ही मानव जाति को वह समझ रूपी सूत्र मिल जाये तो उसका आचरण निश्चित हो जायेगा l
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