Thursday, October 17, 2013

संवेदनशीलता



जी संवेदनशीलता ऐसा शब्द है जिसके बगैर आप किसी मानव को मानव ना कहकर हैवान कहेंगें...यदि यह संवेदनशीलता समझ के अनुसार चलने लगती है तो कहलाता है "संज्ञानशीलता"|
मैंने यह विषय इसलिए चुना क्योंकि  मैंने यह कई बार एहसास किया कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमें कहीं बेहद दूर लेकर जा रही है...
मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी "मनुष्य शाकाहारी या मांसाहारी?"
इस पोस्ट को मैंने इसी ब्लॉग पर भी शेअर किया था..
http://life-chetna.blogspot.in/2010/01/blog-post_23.html

तो इस पोस्ट को एक मेरी फेसबुक मित्र ने चर्चा का विषय बनाया और उसमें आमंत्रित किया| यह सब एकदम से अचानक हो गया मैं इस डीबेट के लिए तैयार नहीं थी फिर भी शामिल हुई..

तो एक लंबी और मानसिक तनाव देती एक चर्चा से पहली यह बात निकल कर आई कि मनुष्य "सर्वाहारी" (Omnivorous) है और उसमें (मनुष्य में ) ऐसे सारे एंजाइम होते हैं जो मांस का पाचन कर सकते हैं...जब मैंने यह पूछा कि जैसे हम फलों का सेवन ऐसे ही बगैर पकाए कच्चा या फिर जूस निकाल कर कर सकते हैं वैसे क्या आप एक गाय, बकरी आदि का कर सकते हैं? तो कहा गया कि एक मानव को एक मांसाहारी की तरह नहीं रहना चाहिए वह एक सर्वाहारी है और हमें वह जो भी खाता है उसका सम्मान करना चाहिए...

और एक प्रश्न मुझसे पूछा गया कि एक जीव की हत्या से आपको दुःख होता है पेड़-पौधे में भी तो जीवन होता है उसे काटने में आपको दुःख क्यों नहीं होता?
अब देखते हैं "सर्वाहारी" मुझे जितनी सूचना प्राप्त है सर्वाहारी "Omnivorous" अर्थात जो सब कुछ खा सकता है..सब कुछ खा लेना मतलब तो और भी ज्यादा घिनौना हो गया...मैंने एक सर्वाहारी के अंतर्गत एक उदाहरण पढ़ा था "कॉकरोच" ...तो क्या हम अब कॉकरोच के तुल्य हो गए हैं? इतना भी मत गिराओ भाई मानव को...मांसाहारी तो फिर भी ठीक- ठाक है|

अच्छा तो एक दूसरा प्रश्न था पेड़ पौधे को जब हम काटते हैं तो वह पीड़ित नहीं होता उसे दर्द नहीं होता...जैसे एक जीव को होता है उसमें भी तो जान होता है...तो यह प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण है और इसका उत्तर भी है पर समय आने पर इस बातचीत होगी...इस प्रश्न को कृपया भूलें नहीं।

एक और कमेन्ट था..anything that your body can digest and gives you energy is food . any food that suits your taste can be and should be consumed to satisfy your hunger and drives arising due to it. Any food consumed in excess is harmful even "milk" or even "rice". God has given you brain, chose your own food instead of debating here. Best practices are to learn from others mistake. Never consume food that has an history of harming human race (people similar to you). Its not about being VEG or NONVEG its about chosing the best amongst what you have been bestowed by the almighty.

God has given you brain--- ठीक है भगवान ने आपको दिमाग दिया है (भगवान कौन है कैसा है? कभी देखा है?) चलिए ठीक है...अब आपको एक विकसित दिमाग मिल ही गया है तो दूसरों की गलती देख कर सीखने के लिए? कि समझ पूर्वक चलें ताकि गलती हो ही ना...ध्यान से सोचने की बात है..जब आपसे कोई यह कहे कि मैं हर दिन एक सेब या केला सबेरे सबेरे खाता हूँ तो आप खुश होंगे और उसकी प्रशंसा भी करेंगें कि वाह भाई तुमने तो अपनी सेहत का अच्छा ध्यान रखना सीख लिया...पर कोई आपसे यह कहे कि मैं रोज सबेरे एक गाय/ बकरे/मुर्गी या कुत्ता/बिल्ली/छिपकली (जैसा चीन में होता है) का रोज एक गिलास खून (जूस) पीता हूँ तो आप क्या कहेंगें? यह तो पागल है या फिर हैवान कहेंगें ना?

जब मैंने ऐसा ही प्रश्न किया तो उत्तर मिला..."don't compare sabji with jeew ka khoon... there are medicines and drugs that you intake made from raw blood cells of animals.. there is a lot to learn.. first understand that an omnivorous is actually a herbivorous who can eat and digest non veg too!"
एक गिलास सब्जी या फल की रस के बजाय मैं अगर एक गिलास जीवों का खून पीने को कहूँ तो वे गुस्सा हो जाते हैं..इसका मतलब है कि फलों का रस पीना हमारे लिए "सहज" है अत: स्वीकार्य है और जो सहज नहीं है वह हमें स्वीकार नहीं..यही पीड़ा का कारण है...

अब ये कहते हैं कि दवाइयों में इनके खून का प्रयोग होता है..ये तो और भी भयंकर बात है...और हमने कई बार बताया भी नहीं जाता कि आपको जो दवाइयाँ दी जा रही है वह "शाकाहारी" या "मांसाहारी" है| मुझे इस प्रकार के प्रयोगों की आवश्यकता भी नहीं लगती| हमने जिस चीज के लिए जीवों की हत्या की उसके साथ कई प्रकार के अमानवीय प्रयोग कर रहे हैं वह बेहद दुखद है| कॉस्मेटिक के लिए इन बेजुबानों पर प्रयोग किये जाते हैं...तो जो चीज चाहिए वह पौधों से भी मिल जाता है..जैसे "ओमेगा ३ " के लिए एक मछली शायद "साल्मोन" को मारा जाता है जबकि यह ओमेगा ३ "अलसी" के बीज में मिल जाता है...

ये दुहाई देंगें कि मानव जाति की सुरक्षा के लिए ऐसा करना हमारी मजबूरी है...पर यह मजबूरी नहीं यह पूरी तरह से लाभ दृष्टि है..और इस दृष्टि के चलते ये कब "मानव " को मार कर दवाइयाँ बनाने लगे कह नहीं सकते...इनमें दया नाम की कोई चीज नहीं दिखती..

जब मैंने कहा इस जीव की आँखों में झांको फिर तुम कभी उसे मार नहीं सकते...तो ये Higher study बच्चे का कमेन्ट देखिये..."gulab ka fool kabhi apne gamle se tod kar bhagwaan ko chadhaya hai? mujhe to bahut dukh hota hai.. haan par bazaar se khareed ke kayee baar chadhaya hogaa.. mujhe bazaar me khade bakre ki aankh me to kuchh nazar nahi aataa shayad main kahaniyaa achhe nahi bana pata isliye :P "

अब इस मानव की दृष्टि देखिये  सबसे पहले तो उसने सामने वाले की भावना को समझने का प्रयास ही नहीं किया...और इन्हें बाज़ार में खड़े बकरे में केवल अपना भोजन नज़र आता है..उसने कभी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि यह बेजुबान जीव में अगर कुछ हरकत हो रही है तो वह क्यों? आखिर उसमें ऐसा क्या चीज है..हम सबके पास कोई ना कोई पालतू पशु होंगे या फिर रोज आपके घर के पास एक गाय खड़ी होती है...इस इंतज़ार में कि उसे कोई एक रोटी दे दे..उसकी आँखों में मुझे तो एक चमक नज़र आती है...पाबला भैय्या (ब्लॉगर) का मैक देखो कितनी बदमाशी करता है.. भैय्या कितने बार उसकी पोस्ट शेअर करते हैं  आखिर कुछ तो है ना उस जीव में कि हम उससे प्रेम करते हैं और यदि आप उसे भाव को नहीं समझ सकते तो यह "मानवीय गुण है अमानवीय" इसे जांचने की जरुरु़त है|

इस चर्चा ने मुझे यह सोचने पर और मजबूर कर दिया कि हम बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं? जितनी ज्यादा डीग्री उतने ही असभ्य होते जा रहे हैं? संस्कार तो किसी में नहीं दिखता..अगर अच्छी प्रवृत्ति भी है भी तो वह उनके खुद के पिछले शरीर यात्रा और परिवार से मिली शिक्षा के कारण ही है ऐसा मेरा "मानना" है "जाँचना" अभी शेष है..वर्तमान शिक्षा प्रणाली से तो यह असम्भव है...

मुझे याद आता है ९वी कक्षा में हमें एक मेढक दिया गया था डिसेक्शन के लिए...उसे हमारे ही सामने क्लोरोफार्म से बेहोश किया गया..फिर सबके ट्रे में एक एक मेढक...बेहद दुखद क्षण था..मैंने तो यह अपने इच्छा विरुद्ध कार्य किया था..मेरी एक सहेली थी अंजू उसके ट्रे के मेढक को होश आ गया वह अपना मुँह खोलने बंद करने लगा उसे देख अंजू घबरा गई उसने कहा" मैम इसे होश आ गया..." इस टीचर ने जो कहा वह मुझे आज तक याद है.."उसका हार्ट काट कर फेंक दो"

"उसका हार्ट काट कर फेंक दो"? यह वाक्य जैसे तीर सा चुभा..क्या यही हमारी जिम्मेदारी है हम कितने गैर जिम्मेदार हो गए हैं? यह शिक्षक मुझे आज तक याद है क्योंकि उसने एक गैर जिम्मेदाराना बयान व्यक्त किया था..

और मुझे इसकी अनावश्यकता का अहसास तभी हो गया था..हमें इसकी आवश्यकता ही नहीं..छोटी सी कक्षा से बच्चों से डिसेक्शन करवाना उसे अमानवीयता और असंवेदनशील बनाने की ओर पहला कदम है...हर बच्चा डॉक्टर नहीं बन सकता..और जो बच्चे मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें प्राकृतिक या फिर किसी दुर्घटना में शिकार हुए मृत जानवर का शरीर उपलब्ध करवाया जा सकता है|  

कुल बात वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसा मानव तैयार कर रही है यह बेहद चिंतनीय विषय है इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है..
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“The simplest acts of kindness are by far more powerful then a thousand heads bowing in prayer.”
― Mahatma Gandhi

(चित्र गूगल से... आभार...)

3 comments:

Roshani Sahu said...

अगर मनुष्य मांसाहारी होता तो मुझे जरा सा भी पीड़ा नहीं होना चाहिए जब एक मनुष्य एक जीव की गर्दन पर चाकू चलाता.

Roshani Sahu said...

आज मुझे बेहद पीड़ा हुई जब ५-६ जीवों को मैंने एक गाड़ी में कुछ मनुष्यों द्वारा ले जाते हुए देखा. रोज फेसबुक पर ऐसे ना जाने कितने चित्र देखे पर यथार्थ में देखना और जब हमें पता है कि उसे किस उद्देश्य से ले जाया जा रहा है..कितने बेबस थे हम कि कुछ ना कर सके...क्यों हुई ये पीड़ा? किसी शेर या हिंसक पशु को तो नहीं होती होगी ऐसी पीड़ा...

Roshani Sahu said...

यह पोस्ट आज उन निरीह जीवों के लिए जिन्हें आज (१३ अक्टूबर)को मैंने कुछ भ्रमित मानवों द्वारा ले जाते हुए देखा...