Monday, August 11, 2014

What is more Important for you? Relations or Facility?


भारतीय ध्वज को स्पर्श करने का अधिकार किन्हें?

इस झंडे को फहराने वाले लोगों की भाषा भी देखिये...एक प्रबल हिंदू धर्म समर्थक जो कि Worked at .......  Party (.....)
In 2008 लिखते हैं...
नाम (अ ब स ) "Roshani Sahu चुप कर बकवास बाजी की दें है जो आज हमारा सिर नीचे है वरना हरहाथ काटकर नीचे रख दिया जाता जो हाथ तुम्हारे ऊपर उठते!!!!!!!!हिम्मत है तुम्हारे अंदर तो जाकर पुच मेरठ की इस लड़की से फिर आना भाषण देने!!!!!!!!!तुम हिन्दू लड्कीया अगर कमीनी न होती तो मुल्लों को उनके अब्बूओ के पास भेज देता हिन्दू समाज! लेकिन जब अपना ही सिक्का खोटा है तो फिर क्या करे। तुम बहने मत मानो हमरी बाते कौन कह रहा है तुम्हें??तुम्हें मुल्लों के तलवे चाटने है तो चाटो और 10-20 लड़कियो को लेकर जाओ। यूपी मे आकर रहो सारी खुमारी उतर जाएगी तुम्हारी समझ मे आया!!!!!!! हम पुरुष जाते है न मुल्लों के साथ अय्यासी करने????हम फँसते है न उनके चक्करों मे???"
इन महापुरुष के इस बयान पर मेरा यह लेख समर्पित है|

भारत का ध्वज
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भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं|
क्या हमें जानकारी है कि इसमें जो तीन रंग हैं वह किसलिए है?
बीच में जो अशोक चक्र है वह किसे इंगित कर रहा है?
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गांधी जी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस के अपने झंडे की बात की थी। इस झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था।

(१) =>"इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए।"

(२) =>बीच में एक चक्र है।

(३) => "बाद में इसमें अन्य धर्मो के लिए सफेद रंग जोड़ा गया।"

स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की।
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प्रश्न- क्या हम पहली मान्यता को भी ठीक से निभा पा रहे हैं कि यह मात्र प्रतिक बस रहा गया?

प्रश्न -क्या इन रंगों को जिस पहचान के लिए प्रयोग किया जा रहा है? उस पर हम सभी नागरिक आपस में भाई चारे से रह पा रहे हैं?

प्रश्न- सम्राट अशोक की पहचान किस वजह से है? और जिस वजह से पहचान है क्या वैसा हम जी पा रहे हैं?

(अ) क्योंकि उन्होंने अपने राज्याभिषेक के ८वें वर्ष (२६१ ई. पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया था। आन्तरिक अशान्ति से निपटने के बाद २६९ ई. पू. में विधिवत्‌ अभिषेक पश्चात कलिंग युद्ध में एक लाख ५० हजार व्यक्‍ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिया और एक लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। (तेरहवें शिलालेख के अनुसार)

(ब) या फिर इसलिए कि उन्होंने भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा। इससे द्रवित होकर शान्ति, सामाजिक प्रगति तथा धार्मिक प्रचार किया। उनका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उसने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय युग की शुरुआत कर बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया।
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अब यह बताइए हम जिस प्रकार रह रहे हैं उसे क्या कहें "आस्था" या "विश्वास" या फिर "छल/कपट/दंभ/पाखंड"...इत्यादि?
और ऐसा किसलिए हो रहा है?
किस चीज की कमी है?
क्या हम समझदार हैं?
या "समझदार" होने की आवश्यकता है?
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विचार करें..
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विचार करने के उपरांत अब आप ही निर्णय करिये कि क्या महत्वपूर्ण है?
यह सब प्रतीक या मानवीयतापूर्ण आचरण (यह आजकल हमारा जीना जो चल रहा है उस प्रमाण के आधार पर कह रही हूँ)
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अब तिरंगे झंडे को फहराने से पहले कम से इनके अर्थ तक जाने का प्रयास करें| और उस अर्थ को अपने जीने में लाये| तभी आप इस झंडे का मान रख पाएँगे|

और एक बात पर और विचार करें कि एक भाई साहब ने जिस लहजे में मुझसे बातचीत की है क्या वह भारतीय ध्वज को स्पर्श करने का अधिकार भी रखता है?

सादर प्रणाम...

समझदार

एक धरती तो संभल नहीं रही हमसे क्योंकि हम समझदार नहीं है, प्रमाण- यह धरती बीमार है
तो दूसरी, तीसरी, चौथी..... आदि कितनी भी धरती पर जाए क्या फर्क पड़ने वाला है?
वही के वहीँ रहेंगे|
यदि "समझदार" रहते तो
यह धरती स्वर्ग होती, मानव देवता होते |
धर्म सफल होता एवं नित्य मंगल होता ||
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क्या आप/हम चाहते हैं कि
"भूमि स्वर्ग हो जाये, मानव देवता हो जाये?
धर्म सफल हो जाये एवं नित्य मंगल हो जाये?
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तो इसके लिए क्या करना होगा?
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हम सभी को "समझदार" बनना होगा| सभी को कहा है एक व्यक्ति के समझदार होने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला|
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समझदार कैसे बने?
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"सही समझ" को समझा जाये|
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सही समझ क्या है?
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स्वयं को समझा जाये, अस्तित्व को समझा जाये, मानवीयता पूर्ण आचरण को समझा जाये|
उसे समझ कर जीया जाये| लोगों को भी समझाया जाये| उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना जाये|

समझना=>जीना=>समझाना
सीखना=> करना=> सिखाना
इसके अलावा और मानव का कोई कार्यक्रम नहीं है|
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सभी मानव को कैसे समझाया जाये?
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मानव चूँकि "संस्कारानुशंगी" है| मानव "संस्कार/सही समझ" से ही अपने आचरण/स्वभाव में होना रहना पाया जाता है अत: मानव को संस्कार बनाने हेतु "शिक्षा के मानवीयकरण" की आवश्यकता है|शिक्षा से मानव "संस्कारी" बनता है|
(सही) शिक्षा की शुरुआत घर से होती है फिर बाहरी वातावरण तत्पश्चात विद्यालय|
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क्या अभी की शिक्षा मानवीयकरण नहीं है?
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आप स्वयं में जांचे कि अगर वर्तमान शिक्षा "मानवीयकरण" होती तो क्या यह जो घटना वर्तमान में चल रही है वह देखने को मिलती?
वर्तमान शिक्षा में मानव को छोड़ कर बाकी सभी अवस्था (पदार्थ, प्राण (पेड़-पौधे), जीव अवस्था) पर ध्यान दिया जाता है| जबकि ये सब अपने अपने आचरण में है|
मानव ही अपने आचरण/स्वभाव में नहीं अत: मानव पर काम करने की आवश्यकता है|
मेरी जिंदगी जीने वाला मैं स्वयं हूँ और " मैं" ही स्वयं को नहीं जानता तो
कैसे मैं स्वयं में तालमेल पूर्वक रह पाउँगा?
कैसे मैं बाकी धरती की सभी अवस्थाओं के साथ न्याय कर पाउँगा?
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निष्कर्ष?
अत: "सही" (जो है उसका अध्ययन) को समझा जाये, (स्वयं का ज्ञान, अस्तित्व का ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण)
उसके अनुसार जिया जाये|
बाहर व्यवस्था के लिए स्रोत बन जाये| यही मेरा "स्वराज्य"/ "वैभव है"
जब इस धरती के सभी लोग इस प्रकार जीने लगे तो यही मानव परंपरा है|
तत्पश्चात ही यह धरती अपनी सम्पूर्ण वैभव में होगी और हम सार्वभौम व्यवस्था में अपनी पूरकता सिद्ध कर पाएँगे|
फिर हमें और अन्य धरती की आवश्यकता नहीं रहेगी हम निरन्तर सुख/समाधान/समृद्धि पूर्वक जी रहे होंगे| बढ़िया से :)
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इसे माने नहीं स्वयं में जाँचे|