Monday, August 11, 2014

समझदार

एक धरती तो संभल नहीं रही हमसे क्योंकि हम समझदार नहीं है, प्रमाण- यह धरती बीमार है
तो दूसरी, तीसरी, चौथी..... आदि कितनी भी धरती पर जाए क्या फर्क पड़ने वाला है?
वही के वहीँ रहेंगे|
यदि "समझदार" रहते तो
यह धरती स्वर्ग होती, मानव देवता होते |
धर्म सफल होता एवं नित्य मंगल होता ||
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क्या आप/हम चाहते हैं कि
"भूमि स्वर्ग हो जाये, मानव देवता हो जाये?
धर्म सफल हो जाये एवं नित्य मंगल हो जाये?
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तो इसके लिए क्या करना होगा?
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हम सभी को "समझदार" बनना होगा| सभी को कहा है एक व्यक्ति के समझदार होने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला|
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समझदार कैसे बने?
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"सही समझ" को समझा जाये|
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सही समझ क्या है?
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स्वयं को समझा जाये, अस्तित्व को समझा जाये, मानवीयता पूर्ण आचरण को समझा जाये|
उसे समझ कर जीया जाये| लोगों को भी समझाया जाये| उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना जाये|

समझना=>जीना=>समझाना
सीखना=> करना=> सिखाना
इसके अलावा और मानव का कोई कार्यक्रम नहीं है|
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सभी मानव को कैसे समझाया जाये?
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मानव चूँकि "संस्कारानुशंगी" है| मानव "संस्कार/सही समझ" से ही अपने आचरण/स्वभाव में होना रहना पाया जाता है अत: मानव को संस्कार बनाने हेतु "शिक्षा के मानवीयकरण" की आवश्यकता है|शिक्षा से मानव "संस्कारी" बनता है|
(सही) शिक्षा की शुरुआत घर से होती है फिर बाहरी वातावरण तत्पश्चात विद्यालय|
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क्या अभी की शिक्षा मानवीयकरण नहीं है?
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आप स्वयं में जांचे कि अगर वर्तमान शिक्षा "मानवीयकरण" होती तो क्या यह जो घटना वर्तमान में चल रही है वह देखने को मिलती?
वर्तमान शिक्षा में मानव को छोड़ कर बाकी सभी अवस्था (पदार्थ, प्राण (पेड़-पौधे), जीव अवस्था) पर ध्यान दिया जाता है| जबकि ये सब अपने अपने आचरण में है|
मानव ही अपने आचरण/स्वभाव में नहीं अत: मानव पर काम करने की आवश्यकता है|
मेरी जिंदगी जीने वाला मैं स्वयं हूँ और " मैं" ही स्वयं को नहीं जानता तो
कैसे मैं स्वयं में तालमेल पूर्वक रह पाउँगा?
कैसे मैं बाकी धरती की सभी अवस्थाओं के साथ न्याय कर पाउँगा?
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निष्कर्ष?
अत: "सही" (जो है उसका अध्ययन) को समझा जाये, (स्वयं का ज्ञान, अस्तित्व का ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण)
उसके अनुसार जिया जाये|
बाहर व्यवस्था के लिए स्रोत बन जाये| यही मेरा "स्वराज्य"/ "वैभव है"
जब इस धरती के सभी लोग इस प्रकार जीने लगे तो यही मानव परंपरा है|
तत्पश्चात ही यह धरती अपनी सम्पूर्ण वैभव में होगी और हम सार्वभौम व्यवस्था में अपनी पूरकता सिद्ध कर पाएँगे|
फिर हमें और अन्य धरती की आवश्यकता नहीं रहेगी हम निरन्तर सुख/समाधान/समृद्धि पूर्वक जी रहे होंगे| बढ़िया से :)
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इसे माने नहीं स्वयं में जाँचे|

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