पहले स्वयं ही औरों के प्रति कृतघ्नता/ शिकायत का भाव रखते हुए अपनी पहचान के लिए ऐसी व्यवस्था करता है कि वह तन्हा रह जाये ...फिर स्वयं ही शिकायत करता है कि कोई उसे "सहयोग" नहीं करता|
कैसे कोई करेगा?
आपने तो कोई कृतज्ञता ही व्यक्त नहीं की|
आपने तो कोई सहयोग ही नहीं किया|
जितना सहयोग मिला उसके लिए कभी आभार व्यक्त नहीं किया|
औरों को हमेशा पराया ही समझा| जिसे अपना समझा उस पर अपना अनुशासन चलाया|अपने इशारों पर चलाना चाहा| उसे एक यन्त्र समझा..उसकी भावनाओं की कभी कद्र ही नहीं की| कब तक ऐसे चलता रहेगा|
तन्हा आदमी....
कैसे कोई करेगा?
आपने तो कोई कृतज्ञता ही व्यक्त नहीं की|
आपने तो कोई सहयोग ही नहीं किया|
जितना सहयोग मिला उसके लिए कभी आभार व्यक्त नहीं किया|
औरों को हमेशा पराया ही समझा| जिसे अपना समझा उस पर अपना अनुशासन चलाया|अपने इशारों पर चलाना चाहा| उसे एक यन्त्र समझा..उसकी भावनाओं की कभी कद्र ही नहीं की| कब तक ऐसे चलता रहेगा|
तन्हा आदमी....
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