आज के माहौल को देख कर विचार उठ रहा था कि हमें आवेश तो दिखाई देता है पर शांति, अमन चाहने वाले क्यों नहीं दिखाई देते? अखबारों या टीवी चैनल में देखिये सबसे पहले नकारात्मक या आवेशित खबरें ही दिखाई देती हैं? शांति वाली खबरें हम खुद ही नहीं देखते!
फिर याद आया श्रद्धेय बाबा श्री ए. नागराज जी की बातें जो मैंने रिकॉर्डिंग में सुना था कि वर्तमान शिक्षा में आवेश पैदा करके या चीजों को चीर-फाड़ कर तोड़ -फोड़ कर, परमाणु को आवेशित कर ही अध्ययन किया जाता है। मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया कुछ होता है अभी तक ज्ञात नहीं था।
इसलिए हमारा जो अब तक का पूराना अभ्यास रहा है इसी वजह से हम आवेश को ही पहचानते हैं मध्यस्थ को नहीं जबकि मध्यस्थ वस्तु व मध्यस्थ क्रिया के कारण ही यह सारा अस्तित्व और सौंदर्य दिखाई पड़ता है।
इस अभ्यासानुसार हम चाहे इकाई - जड़ हो या चैतन्य पहले आवेशित करते हैं फिर उसके स्वभाव का अध्ययन करते है जैसा कि हम अभी देख ही रहे हैं!!! जबकि आवेश हमारा स्वभाव गति है ही नहीं!
और जिस वस्तु व क्रिया के कारण वह इकाइयाँ व व्यवस्था बनी रहती है और जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उस पर ध्यान नही दिया जाता।
मध्यस्थ क्रिया या मध्यस्थ वस्तु का ही अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है। कैसे कोई इकाई अपने में बने रहती है। कैसे कोई परंपरा (पदार्थ, प्राण, जीव व ज्ञान) बने हुए हैं या कैसे बने रहेंगे? इसका ही अध्ययन होने की आवश्यकता है।
मध्यस्थ दर्शन से हमने पाया कि मध्यस्थ स्थिति (जागृति) को प्राप्त करना ही लक्ष्य है। सारे आवेश मध्यस्थ स्थिति में आने पर ही नियंत्रित होते है।
सम और विषम गुण बाकी तीन अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव) के लिए महत्वपूर्ण है उपयोगी व पूरकता को प्रमाणित करता है पर भ्रमित मानव में विषम गुण (युद्ध, क्रोध, ईर्ष्या, शिकायत, अहंकार आदि) जो आवेश रूप में व्यक्त होता है कभी भी उपयोगिता और पूरकता (संतुलन) को व्यवस्था में प्रमाणित नहीं कर पाता। इसलिए खुद भी पीड़ित, दुखी रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करता रहता है।
सम और विषम गुण बाकी तीन अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव) के लिए महत्वपूर्ण है उपयोगी व पूरकता को प्रमाणित करता है पर भ्रमित मानव में विषम गुण (युद्ध, क्रोध, ईर्ष्या, शिकायत, अहंकार आदि) जो आवेश रूप में व्यक्त होता है कभी भी उपयोगिता और पूरकता (संतुलन) को व्यवस्था में प्रमाणित नहीं कर पाता। इसलिए खुद भी पीड़ित, दुखी रहता है और दूसरों को भी प्रभावित करता रहता है।
जबकि अनुभव-संपन्न मानव का कार्य-कलाप भी सम-विषम ही होता है, पर वह मध्यस्थ क्रिया (आत्मा) द्वारा नियंत्रित होता है।
अत: मानवीयता मध्यस्थ गुण का ही एक रूप है इसलिए इतिहास मानवीयता का ही होगा व अध्ययन भी इसी का होने की आवश्यकता है। इसके अध्ययन से ही हमारी आने वाली पीढ़ी अपना पूरा ध्यान, कैसे इस मध्यस्थ स्थिति को प्राप्त किया जाए इस पर लगाएगी। व पूर्णता (जागृति) को प्राप्त करेगी।
कल्पना कीजिये कितना सुंदर समय होगा वह! :)
(मध्यस्थ दर्शन से प्रेरित विचार)
मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से
मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से