असंतुलन या अव्यवस्था ही प्रकृति में व मानव शरीर और मन में प्रदूषण है।
यदि प्रकृति में चारों अवस्था में असंतुलन है तो होने वाला परिणाम प्रदूषण है, अव्यवस्था है।
यदि मानव तन में द्रव्य पदार्थों का असन्तुलन है तो उसका परिणाम अस्वस्थ शरीर है।
यदि मानव मन, विचारों में असंतुलन है तो परिणाम मानसिक अस्वस्थता, शारीरिक अस्वस्थता व प्रकृति में असंतुलन है अर्थात अव्यवस्था है।
समाधान-
यदि प्रकृति के चारों अवस्था में, मानव के शरीर में और मानव मन में संतुलन या व्यवस्था देखनी है तो
"स्वयं में व्यवस्था का ज्ञान", "प्रकृति या अस्तित्व में व्यवस्था का ज्ञान" तथा "मानवीयता पूर्ण आचरण का ज्ञान" आवश्यक है।
बगैर इन तीनों ज्ञान के कहीं भी संतुलन/ व्यवस्था संभव नहीं साथ ही
निरंतर व्यवस्था में/से/के लिए भागीदारी संभव नहीं।
(विचार मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से)
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