Wednesday, November 11, 2009

"एक बार फ़िर से ..."

राजनीतिज्ञों ने समझ क्या रखा है? चाहे किसी भी देश के हो?
अरुणाचल को अपना बताया जा रहा है
कभी कश्मीर का राग बजाया जा रहा है
क्या यह भी जानने की कोशिश की है कि आम आदमी कैसे जीना चाहता है?
अब वक्त आ चुका है
उठो मानव उठो !
उठो मानव उठो
जागो एक बार फ़िर से

मुट्ठी भर लोगों को चुना है
जानो इनको एक बार फ़िर से

राज नहीं है इनका धरती पर
बता दो इन्हें एक बार फ़िर से

युद्घ नहीं, शान्ति चाहिए
घृणा नहीं,प्रेम चाहिए
विनाश नहीं , विकास चाहिए
इस धरती पर रहने का अधिकार चाहिए


आँखे नहीं खुली तुम्हारी?
मुट्ठी भर मानव

तो इन्हें उठा कर फेंक देना चाहिए
सचेत कर दो मानव
इनको एक बार फ़िर से

उठो मानव उठो
जागो एक बार फ़िर से ।


3 comments:

संजय भास्‍कर said...

उठो मानव उठो
जागो एक बार फ़िर से ।

bahut hi jaandaar

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना
ढेर सारी शुभकामनायें.

SANJAY KUMAR
HARYANA

Roshani said...

Dhanywad Sanjay ji.