Saturday, May 29, 2010
"इतिहास के काले पन्ने"
क्या हासिल हुआ तुम्हें (माओवादियों /नक्सलियों ) इतने नागरिकों की जानें लेकर?
दंतेवाड़ा (बस्तर) की एक बस और शुकवार को पश्चिम बंगाल में एक भीषण ट्रेन हादसे को अंजाम देकर तुमने यह साबित कर दिया कि तुम आतंकवादी ही हो और कुछ नहीं, तुम्हारा कोई मकसद नहीं सिर्फ अराजकता और अशांति फ़ैलाने के सिवा।
देश की जनता तुम्हारे इस घिनौने हरकत के लिए कभी नहीं माफ़ करेगी। अपनी माँग मनवाने का यह तरीका सिर्फ सरफिरों का ही हो सकता है।
इतिहास में तुम सिर्फ काले पन्ने के रूप में दर्ज किये जाओगे।
Tuesday, May 25, 2010
"India is a big latrine room!!"
ओह! शायद अपने बच्चों कि प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा रहे होंगे।
कभी शहरों के तालाबों और उनमें नहाते लोगों को देखा है?
अगर हम उसमें नहायें तो क्या होगा? कल्पना कीजिये...
ओहो! माफ़ करिए!
तो हाँ हम उस पर्यटक कि बात कर रहे थे ...
उसने सोचा भारत यदि देखना है तो हवाई जहाज के बजे ट्रेन का सफ़र ठीक रहेगा।
फिर क्या था? निकल पड़े ट्रेन से सवारी करने।
हर स्टेशन आने के पहले असहनीय बदबू ....
उफ़! क्या है यह?
उसने देखा कुछ बच्चे वहीं पटरी के आस पास शौच के लिए बैठे हैं और इधर उधर फैली हुई गंदगी कि अनायास ही उसके मुख से निकल पड़ा ""India is a big latrine room!!"
पहले तो मिट्टी में एक प्रकार के जीव थे जो शौच को उपयोगी खाद में बदल देते थे अब तो खेत में कीटनाशक और यूरिया खाद के कारण वे नष्ट हो रहे हैं। शहर में तो इस प्रकार के एक भी जीव उपस्थित नहीं है।
चलिए ये सब छोड़िये!
कभी सुलभ शौचालय गए हैं ?
इसे उपयोग करने के पैसे लगते हैं अब ये बताइए इस शौचालय की जरुरत सबसे ज्यादा किसे है ?
उनको है जिसके पास खाने, पहनने और ओढ़ने तक का कोई जुगाड़ नहीं है वे इसमें अपना पैसा क्यों लगायेंगे?
तो मेरा निवेदन सत्ता में बैठे लोगों से है कि कृपया आप शहरों और गांवों में बसे गरीबों में जागरूकता फ़ैलाने का प्रयास करें जैसे आप चुनाव के समय करते हैं वैसा प्रचार करिए जनता को जरूर समझ आएगा।
और ऐसी व्यवस्था कीजिये कि "सुलभ शौचालय" उन्हें सरलता से सुलभ हो जाये और वे इनका प्रयोग कर स्वछता बनाये रखने में मदद कर सकें।
ताकि जब कोई पर्यटक हमारे देश में आये तो यह ना कहे "India is big Latrine room"
Tuesday, May 18, 2010
वो सिपाही
Saturday, May 15, 2010
चिकारावाला
चिलचिलाती धूप, गहरा सन्नाटा, कुछ इक्के दुक्के लोग ही विरान सड़कों में नज़र आ रहे थे।
उस सन्नाटे को चिरती एक मधुर ध्वनि मेरे कानों में पड़ी अपने आप ही कदम दहलीज़ पर जा पहुंचे यह मधुर संगीत धीरे धीरे और करीब आती जा रही थी मन में एक गहरी शांति की अनुभूति हो रही थी।
यह था एक चिकारे वाला जो मोहम्मद रफ़ी के एक गीत "सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था , आज भी है और कल भी रहेगा....." की धुन उस चिकारे से निकाल रहा था।
मैं इन भावनाओं को शब्दों में बयान नहीं कर सकती, मैंने उसे रोककर एक चिकारा ख़रीदा और उसे वही धुन फिर से बजाने को कहा जो मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ ....
यह है लोकवाद्य यंत्र चिकारा ....
आप भी सुनिए यह प्यारी धुन उस शांत और सरल चिकारेवाले के चिकारे से।
(विडिओ का साइज़ कम करने से दृश्य गुणवत्ता जरूर प्रभावित हुई है पर धुन पर असर नहीं पड़ा है विडिओ की लम्बाई भी थोड़ी कम रखी गई है नेट की स्पीड कम होने से होने वाले दिक्कतों की वजह से। पर मेरा मकसद आप समझ ही गए होंगे जो मैने कहना चाहा।) :)