Saturday, May 15, 2010

चिकारावाला

चिलचिलाती धूप, गहरा सन्नाटा, कुछ इक्के दुक्के लोग ही विरान सड़कों में नज़र आ रहे थे।
उस सन्नाटे को चिरती एक मधुर ध्वनि मेरे कानों में पड़ी अपने आप ही कदम दहलीज़ पर जा पहुंचे यह मधुर संगीत धीरे धीरे और करीब आती जा रही थी मन में एक गहरी शांति की अनुभूति हो रही थी।
यह था एक चिकारे वाला जो मोहम्मद रफ़ी के एक गीत "सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था , आज भी है और कल भी रहेगा....." की धुन उस चिकारे से निकाल रहा था।
मैं इन भावनाओं को शब्दों में बयान नहीं कर सकती, मैंने उसे रोककर एक चिकारा ख़रीदा और उसे वही धुन फिर से बजाने को कहा जो मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ ....
यह है लोकवाद्य यंत्र चिकारा ....
आप भी सुनिए यह प्यारी धुन उस शांत और सरल चिकारेवाले के चिकारे से।

(विडिओ का साइज़ कम करने से दृश्य गुणवत्ता जरूर प्रभावित हुई है पर धुन पर असर नहीं पड़ा है विडिओ की लम्बाई भी थोड़ी कम रखी गई है नेट की स्पीड कम होने से होने वाले दिक्कतों की वजह से। पर मेरा मकसद आप समझ ही गए होंगे जो मैने कहना चाहा।) :)

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