करूण वेदना में कर रहे पुकार बापू जी भारत माता से.....
माँ.....
तेरी गोद मुझे पुन: पुकार रही है,
मैं पुन: तेरी सेवा को तत्पर हूँ,
पर कैसे जन्म लूँ दोबारा? ......
यहाँ कोई नहीं चाहता मेरे जैसा पुत्र.....
कहते हैं लोग गाँधी हो जरूर पर मेरे घर में नहीं दुसरे घर में ...
मैंने जो भी सिखाया बच्चों को अब वह सिर्फ व्यवहार की बाते रह गई, आचरण में शामिल करना तो मुर्खता की निशानी बन गई.....
मेरे तीन हथियार और आदर्श अब केवल इतिहास की बातें बन कर रह गई हैं....
तुम ही कहो माँ मैं कैसे जन्म लूँ दोबारा इस धरती पर?
3 comments:
बहुत सशक्त, शुभकामनाएं.
सत्य को दर्शाती एक अच्छी रचना.
बापू को शत शत नमन.
रोशनी जी,
नमस्ते!
सही कहा है आपने. लेकिन, गांधी जी के बारे में लोगों की अज्ञानता ही उनके मूल्यों और आदर्शों की अवहेलना का कारण है. मुझे अच्छे से याद है स्कूल में एक लड़के को 'चिढाने' के लिए उसका नाम गांधी रख दिया गया था!
जब तक मैंने उन्हें नहीं पढ़ा था................ जाने दीजिये!
पर जब मैंने उनकी आत्मकथा पढी, फिर और रचनाएँ जैसे हिंद स्वराज, उनके लेखों के संकलन, एक बायोग्राफी, और फ़िल्म देखी गांधी.... तो मैं सही मायनों में समझ पाया उनके दर्शन को!
मेरी अधिकतर वाहियात रचनायों को प्रकाशित करने वाला ब्लॉग भी बापू की आत्मकथा माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ पर ही बेस्ड है!
आशीष
Post a Comment