आज मैंने हिम्मत कर स्लॉटर हाउस की वीडियो देखी एक देखी...दूसरी देखी पर तीसरी देखना असहनीय हो गया...बहुत बहुत ही ज्यादा दुःख हुआ. हम आज कैसे समाज में जी रहे हैं जिस किसी ने भी हमारे अस्तित्व को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया उसका ही अस्तित्व हम खतरे में डाल रहे हैं... जरा सा भी कृतज्ञता का भाव नहीं है हम में?
पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था, जीव अवस्था के बगैर तो हमारी (मानव अवस्था) कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ये सब हमारे आधार हैं, नींव है और हम अपनी ही नींव खोदकर कैसे मजबूत व्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं?
आज हममें संवेदना रह गई है तो बस स्वाद के लिए...कितनी खतरनाक हो गई है यह... आज हम समझ के अभाव में यह भी नहीं जानते कि ५ इन्द्रियों का प्रयोजन क्या है?
स्वाद और बेहिंताह धन दौलत के लिए लालची आदमी आज संवेदनहीन हो चूका है उसे किसी की पीड़ा नहीं दिखती...ना ही धरती को बेधते हुए, ना ही पेड़ को काटते हुए, ना ही जीवों का वध करते हुए और ऐसे अजागृत मानव / भ्रमित मानव /पशु मानव /राक्षस मानव से व्यवहार की उम्मीद बेवकूफी है मेरे दोस्त....
अगर हम भी इनके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगें तो हम भी तो उसी श्रेणी में आ जायंगें...फिर क्या किया जाये?
बस एक ही रास्ता है...लंबा रास्ता है और इसके सिवा और कोई भी रास्ता मुझे तो नहीं दिखता वह यह कि इन्हें समझाया जाये, चारों व्यवस्था का महत्व और उपयोगिता बताया जाये, और मानव क्यों और उसका प्रयोजन क्या है यह बताया जाये.....
समझाने का काम यदि छोटे बच्चों से शुरुआत करें चूँकि वे ही हमारा भविष्य है तो बेहतर होगा, उनमें जल्दी से स्वीकृति बन जाति है... (साथ में बड़ों को भी समझाना है)
पर एक समस्या है..वह यह कि बच्चे पुस्तकों से ज्यादा हमारे आचरण से सीखते हैं इसलिए हर वक्त/ क्षण हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है कि हम बच्चों के सामने कैसे प्रस्तुत हो रहे हैं और साथ ही हमारा जीना कैसे है?
बोलना, बोलने के अनुसार करना, जैसा बोलना वैसा जीना, जैसा चाह रहे हैं वैसा होना अर्थात हमारे बोलने, करने, जीने और होने में एकसूत्रता होनी चाहिए....तभी यह हमारे बच्चों और अन्य मानव के लिए अनुकरणीय होगा.