Monday, February 11, 2013

"आम के तने व बल्लियों को बनाया लीवर, प्रेशर डालकर पेरते हैं तेल!!!"


टोरा-तेल निकालने चितालुर गाँव के ग्रामीणों ने ने निकाली देसी तकनीक :) 
अपनाई सी- सॉ तकनीक.. 
नेचुरल मोइश्चराइज़र है टोरा....
ऐसे जीरो तकनीक का इस्तेमाल करने वाले हमारे प्राकृतिक (natural) अविष्कारों व आविष्कारकों की सुरक्षा आवश्यक है. ये ऐसे आविष्कारक हैं जिनकी किताब और शिक्षक प्रकृति ही होती है.


यह सुन्दर खबर मैंने देखी हरिभूमि ( दक्षिण बस्तर भूमि ) के, रायपुर, शुक्रवार, ८ फ़रवरी २०१३ के अंक में...वैसे तो अखबार नकारात्मक खबरों से भरी हुई होती है मैं नहीं कहती कि सच्चाई को ना कहा जाये पर सकारात्मक पहलुओं को भी प्रमुखता से प्रकाशित करना चाहिए...
यह खबर अजय श्रीवास्तव, जगदलपुर के नाम से प्रकाशित है. आप खुद पढ़ लीजिए :)




आचरण

पदार्थ अवस्था को देखते हैं...आचरण निश्चित (कभी भी लोहे का परमाणु आपसे नहीं कहेगा कि आज तो रविवार है आज मैं अपना लोहे का स्वभाव (संगठन विघटन) नहीं निभाऊंगा थक गया हूँ या फिर आज तो मैं विद्रोह करने के मूड में हूँ. क्या सबूत है? सबूत यह है कि तभी आप अपनी छत पर विश्वास कर पाते हैं. और उसके नीचे रह पाते हैं आपको किसी प्रकार का भय नहीं रहता. 

अब देखते हैं प्राण अवस्था, मतलब कोशिकाओं से बनी संरचना...इसमें पेड़ पौधे से लेकर आपका शरीर भी आता है, इनका भी आचरण निश्चित है...कैसे? आम के बीज से आम ही निकलेगा  और भाई यदि इनका आचरण निश्चित नहीं होता तो आपका इतना बड़ा और व्यवस्थित शरीर नहीं दिखता, सोचो तो अगर आपको यदि आपके शरीर के निर्माण की जिम्मेदारी मिल जाये तो आप क्या कर पायेंगें? इतनी सारी कोशिकाओं को और उनसे बनी संरचनाओं का निर्माण तो आप दुनिया के किसी भी फैक्ट्री में भी नहीं कर सकते.हमको तो बस उस व्यवस्था को समझना है, मानना है, पहचानना है और फिर निर्वाह करना है मतलब हम कैसा कार्य करें कि वह व्यवस्था बनी रहे..बस! इतना ही तो करना है. यहाँ इनका स्वभाव (सारक- मारक) निश्चित है. सारक मारक मतलब कि एक कोशिकाएं या तो दूसरी कोशिका का पोषण करती है या तो उसे मार देती है
जैसे: आप आपके शरीर के लिए आम, अमरुद सारक हुआ पर धतूरा मारक.
और जैसे "O " blood group सभी रक्त समूह के लिए सारक जबकि वहीँ पर बाकि रक्त समूह "O" blood group के लिए मारक.

अब देखते हैं जीव अवस्था को तो यहाँ भी हम पाते हैं कि हर जीव का आचरण निश्चित है, शेर माँस खाता है और गाय घास. जैसे इनका भी स्वभाव देखते हैं "क्रूर- अक्रूर " मतलब शेर अपने बच्चे के लिए तो अक्रूर है पर दूसरे जानवर के लिए क्रूर है.

अब देखते हैं स्वयं को अर्थात मानव जाति को :)
क्या लगता है इनका आचरण निश्चित है ? हाँ... तो आपके लिए कोई उत्तर नहीं और यदि उत्तर नहीं में है तो आप पूछेंगें कैसे आचरण निश्चित नहीं है?
देखते हैं...
क्या आप अपने अपनों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप अपने बच्चों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप अपने सगे सम्बन्धियों, पड़ोसियों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप स्वयं पर विश्वास कर पाते हैं? नहीं ना! कहीं ना कहीं आप चुप हो जायेंगें.
अगर हमारा आचरण निश्चत होता तो हम आज भय में नहीं जीते, आराम में होते, किसी बात का तनाव नहीं होता, हम विश्वास पूर्वक सबंधों में जी पाते, हमारा लक्ष्य तब मानव जाति के साथ सम्पूर्ण अस्तित्व को समझकर जीने में होता अभी तो हमने अपना ज्यादा से ज्यादा समय दूसरों से लड़ने में बिताया और बिता रहे हैं
हम सुखी कब होते हैं? जब मानव मानव के साथ व्यवहार सही हो और शेष प्रकृति के साथ हमारा कार्य आवर्तनशीलता (recycle) को ध्यान में रखते हुए हो.
आज सबसे ज्यादा मानव को मानव से भय है बाकि ३ अवस्थाओं से कोई खतरा नहीं...
तो आज कहाँ सबसे ज्यादा श्रम करने की आवश्यकता है ?
मानव के साथ संबंध सुधारने पर या प्रकृति पर?

Sunday, February 3, 2013

ये ६ चश्मे क्या आपके पास है?


































नमस्ते भाइयों और बहनों...
मेरे पास ६ प्रकार के चश्मे हैं जिनसे अलग प्रकार की दृष्टियों के दर्शन होते हैं मैंने ३ का प्रयोग किया है बाकि ३ के बारे में मात्र अच्छी सूचना प्राप्त है...
तो हम बताते हैं....
पहले चश्मे से जिस दृष्टि का दर्शन होता है उसे कहा - प्रिय दृष्टि 
इस चश्मे को पहनने से हम ५ इन्द्रियों (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ) द्वारा प्राप्त संवेदनाओं से सुखी होने का प्रयास करते हैं. कहीं भी गुलाबजामुन या रसगुल्ले का दर्शन होता है तो स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाते.

दूसरे चश्मे से जिस दृष्टि का दर्शन होता है उसे कहा- हित दृष्टि
इस चश्मे को जब पहना जाता है इसमें पहली दृष्टि भी समाई रहती है पर शरीर के स्वास्थ,सुविधा का भी ध्यान रहता है.

तीसरे प्रकार के चश्मे से जिस दृष्टि का दर्शन होता है उसे कहा - लाभ दृष्टि
इसे धारण करने से तो सिर्फ रुपया पैसा ही दिखाई देता है इसके चक्कर में तो प्रिय और हित दृष्टि दोनों गायब हो जाते हैं.

चौथे चश्मे से दिखाई देने वाली दृष्टि है- न्याय दृष्टि (इसके बारे में मात्र सूचना प्राप्त है और यह सूचना सही है ऐसा आभास होता है)
तो इसे धारण करने पर आप संबंधों में न्याय कर पाते हैं. हम भी सुखी और सामने वाला सम्बन्धी भी सुखी. :)
सम्बन्ध कितने प्रकार के हैं यह तो आपको पता ही होगा.फिर भी जो सूचना मुझे मिली है उसे आपके सामने रख देती हूँ, जाँच लीजिए...
१) पति-पत्नी
२) माता-पिता,पुत्र-पुत्री
३)भाई-बहन
यह ३ सम्बन्ध परिवार स्तर पर...
४) मित्र-मित्र
५)गुरु-शिष्य
६)साथी-सहयोगी
७)व्यवस्था
और बाकि ४ सम्बन्ध समाज स्तर पर...

और पांचवे चश्मे को धारण करने पर जिस दृष्टि के दर्शन होते हैं उसका नाम है - धर्म दृष्टि
इस चश्मे को धारण करते ही "क्यों", "कैसे" का उत्तर मिल जाता है, मानव और प्रकृति को बेहतर समझकर जी पाते हैं...मानव धर्म हमें अच्छे से समझ आता है.

और छठवें चश्मे की तो बात ही निराली है इस चश्मे से पूरा अस्तित्व ही समझ आ जाता है इस चश्मे से जिस दृष्टि का दर्शन होता है वह है-
सत्य दृष्टि....


तो मैंने ३ का प्रयोग कर लिया है पर निरंतर सुख की प्राप्ति नहीं हुई इसलिए हम बाकि बचे चश्में से दृष्टियों को देखना चाहते हैं पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक आप चौथे दृष्टि को समझ नहीं पायेंगें पांचवें और छठे दृष्टियों का दर्शन नामुमकिन है...बहुत मेहनत है इसमें पर यही तो सच्ची मेहनत है 
देखिये तो शायद आप लोगों के पास भी ये चश्मे होंगें पर हो सकता है आपका ध्यान नहीं, जैसे ही मिले मुझे सूचित जरूर कीजियेगा. 
आप सबकी बहन 
रोशनी 

Saturday, February 2, 2013

संवेदना और लालच


आज मैंने हिम्मत कर स्लॉटर हाउस की वीडियो देखी एक देखी...दूसरी देखी पर तीसरी देखना असहनीय हो गया...बहुत बहुत ही ज्यादा दुःख हुआ. हम आज कैसे समाज में जी रहे हैं जिस किसी ने भी हमारे अस्तित्व को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया उसका ही अस्तित्व हम खतरे में डाल रहे हैं... जरा सा भी कृतज्ञता का भाव नहीं है हम में?
पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था, जीव अवस्था के बगैर तो हमारी (मानव अवस्था) कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ये सब हमारे आधार हैं, नींव है और हम अपनी ही नींव खोदकर  कैसे मजबूत व्यवस्था  की कल्पना कर सकते हैं?
आज हममें संवेदना रह गई है तो बस स्वाद के लिए...कितनी खतरनाक हो गई है यह... आज हम समझ के अभाव में यह भी नहीं जानते कि ५ इन्द्रियों का प्रयोजन क्या है?
स्वाद और बेहिंताह धन दौलत के लिए लालची आदमी आज संवेदनहीन हो चूका है उसे किसी की पीड़ा नहीं दिखती...ना ही धरती को बेधते हुए, ना ही पेड़ को काटते हुए, ना ही जीवों का वध करते हुए और ऐसे अजागृत  मानव / भ्रमित मानव /पशु मानव /राक्षस मानव से व्यवहार की उम्मीद बेवकूफी है मेरे दोस्त....
अगर हम भी इनके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगें तो हम भी तो उसी श्रेणी में आ जायंगें...फिर क्या किया जाये?
बस एक ही रास्ता है...लंबा रास्ता है और इसके सिवा और कोई भी रास्ता मुझे तो नहीं दिखता वह यह कि इन्हें समझाया जाये, चारों व्यवस्था का महत्व और उपयोगिता बताया जाये, और मानव क्यों और उसका प्रयोजन क्या है यह बताया जाये.....
समझाने का काम यदि छोटे बच्चों से शुरुआत करें चूँकि वे ही हमारा भविष्य है तो बेहतर होगा, उनमें जल्दी से स्वीकृति बन जाति है... (साथ में बड़ों को भी समझाना है)
पर एक समस्या है..वह यह कि बच्चे पुस्तकों से ज्यादा हमारे आचरण से सीखते हैं इसलिए हर वक्त/ क्षण हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है कि हम बच्चों के सामने कैसे प्रस्तुत हो रहे हैं और साथ ही हमारा जीना कैसे है?
बोलना, बोलने के अनुसार करना, जैसा बोलना वैसा जीना, जैसा चाह रहे हैं वैसा होना अर्थात हमारे बोलने, करने, जीने और होने में एकसूत्रता होनी चाहिए....तभी यह हमारे बच्चों और अन्य मानव के लिए अनुकरणीय होगा.