Thursday, April 4, 2013

मौत की सजा का एलान

आज इन तीन हत्यारों को मौत की सजा का एलान किया जाता है...
फाँसी का फंदा (सभी प्रकार के), बंदूकें/ राइफल्स और कलम (जजों   और  संपादकों की ) l




फाँसी के फंदे पर यह गंभीर आरोप है कि ये जब से अस्तित्व  में (इसका डिज़ाइन)आया तब से ही यह नाना प्रकार की हत्यायें की हैं और शामिल भी रहा ...कभी इसने बेगुनाह जानवरों को, शिकारियों को पकड़ने में मदद कर अप्रत्यक्ष रूप से अपराध किया तो कभी वीर क्रांतिकारियों की हत्या की और आज तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी  है इसका अपराध अक्षम्य हैं इसका अस्तित्व में रहना ही मानव जाति के लिए खतरनाक है l


बंदूकें/ राइफल्स/पिस्टल पर यह संगीन जुर्म दर्ज किया गया है कि इसने एक ही झटके में कई  बेगुनाह प्राणी या मनुष्य के शरीर को छलनी कर उनकी निर्दयता से हत्या की हैl अस्तित्व में इसकी मौजूदगी प्राणी व मानव जगत के लिए ठीक नहीं हैl



तीसरा सबसे खतरनाक अपराधी है "कलम" 
इस पर सृष्टि को बर्बाद करने की कोशिश का आरोप है इसने आज तक जो भी लिखा उसके कारण ही लोगों में लोभ आया फलस्वरूप धरती बीमार हो गई. हालाँकि इसने कुछ अच्छा भी लिखा पर इसकी तमाम अपराधों के सामने यह बौनी साबित होती है अगर यह अस्तित्व में रहा तो यह शंका है कि यह धरती ही नष्ट ना हो जाये!




क्यों ठीक है ना महोदय जी ? 

किस सोच में पड़ गए?

आप सोच रहे होंगें कि यह तो पागलपन है ...भला इन अपराधों में इनका क्या दोष है असली गुनहगार तो इनका प्रयोगकर्ता है अर्थात मानव, यह तो केवल माध्यम है!

चलिए ठीक है ...मानव ही असली कुसूरवार है तो दोषी मानव को हम फाँसी दे देते हैं या फिर गोली से उनके शरीर को छलनी कर देते हैं  अब देखो यह मृत हो गया..
अब बुराइयाँ खत्म क्योंकि हमने तो स्वयं को शरीर माना हुआ है तो इस शरीर को मौत की सजा देकर इसके शरीर को मिट्टी में मिला देते हैं या जला देते हैं शरीर आखिर मिट्टी और गैस का तो बना हुआ है ना ! मिट्टी में मिल जायेगा...
अब शरीर भी खत्म,बुराई भी खत्म ...

अब ठीक है ना? ओहो...अब किस सोच में डूब गए?   

ठीक तो है पर ...मैं एक उलझन में पड़ गया क्या वाकई में मैं शरीर हूँ? अगर मैं कुछ और हूँ तो?

अच्छा ठीक है...यदि आप स्वयं को शरीर नहीं मानते एक चैतन्य इकाई मानते हैं तब तो आप भी वही मूर्खता कर रहे हैं...
जिस प्रकार फाँसी का फंदा, बंदूकें और कलम का कोई दोष नहीं उसी प्रकार मानव शरीर का भी कोई दोष नहीं ये तो सिर्फ माध्यम  हैं l

तो फिर गुनेहगार कौन है?

ये दोषी (जिनको आपने मान रखा है ) चैतन्य इकाइयाँ हैं जो कभी नहीं मरती, इसका कभी नाश नहीं होता, ये टुकड़ों में भी नहीं बंटती...

अर्थात्?      

अर्थात् हम शरीर को मार कर कभी भी बुराइयों को खत्म नहीं कर सकतेl ये बुरी प्रवृत्ति वाली चैतन्य इकाइयाँ जब मानव शरीर दोबारा धारण करती है और उसे फिर से बुराइयों से भरा वातावरण मिलता है तो फिर से वह वही अपराध दोहराएगी अपने साधन अर्थात शरीर का गलत उपयोग करेगीl

ओह! तब क्या किया जाये?

चूँकि मानव में अच्छी प्रवृत्ति व बुरी प्रवृत्ति रहती है अच्छी प्रवृत्ति तो ठीक है पर यह ज्यादा अच्छा होगा कि इन प्रवृत्तियों के स्थान पर संस्कार स्थापित हो जाये. ऐसा जब तक नहीं होगा तब तक स्थाई हल की संभावना नहींl 

मैं समझा नहीं..

देखो महोदय जी, अपने चारों ओर क्या दिख रहा है?

नीला आकाश, पत्थर, पहाड़, नदियाँ ,पेड़ - पौधे, जीव जंतु और मानव...

तो इस आकाश में क्या है? 

हवा...

हवा में क्या है ?

दूर फैले हुए परमाणु जिन्हें हम गैस कहते हैं वायु भी तो गैसों का मिश्रण है l

अच्छा अब पत्थर, पहाड़,  नदियों को देखो..क्या नज़र आया? अच्छी तरह से देखने का प्रयास करो l

ये भी परमाणुओं से बनी हुई है..

और?

आप ही बता दीजिए.. 

देखो क्या ये साँस ले पा रही है?

नहीं!

हाँ तो ये अवस्था कहलाई , पदार्थ अवस्था...ठीक है?

अब देखो इन पेड़- पौधों को, और साथ ही अपने शरीर की कोशिकाओं को भी देखो..क्या ये साँस ले रही हैं?

हाँ.. 

और इसके अलावा क्या ये तुम्हारी बात मानती हैं?

नहीं!

तो ये कहलाई प्राण अवस्था..

अब जीव जानवर को देखो...

ये देखो इस गाय को यह तुम्हारे इशारे को समझ पा रही है तो ये हुआ जीव अवस्था... 

और अंत में बचते हो तुम :)

हा हा हा 

हम अर्थात मानव अवस्था....इसके अलावा तुम्हें और कोई अवस्था नज़र आएगी तो सूचित करना... 

अच्छा तो ये हुई चार अवस्था- पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था, जीव अवस्था और मानव अवस्था...
अब आगे बताइए मानव  में संस्कार स्थापित कैसे किया जाये?

देखो जैसा तुमने अभी कहा अस्तित्व में ४ अवस्थाएं हैं 

पदार्थ अवस्था, परिणाम (अंशों की कुल मात्रा) के अनुसार चलते हैं  अत: यह परिणामानुषंगी हैl

प्राण अवस्था (पेड़-पौधे व सभी प्रकार की साँस लेने वाली सभी कोशिकाएँ), ये बीज के अनुसार चलते हैं अत: यह हुई बीजानुषंगी.

जीव अवस्था, ये वंश के अनुसार चलते हैं अत: ये हुए वंशानुषंगी...

और मानव अवस्था संस्कारों अर्थात समझ के अनुसार चलते हैं अत: मानव हुआ संस्कारानुषंगी...

बात पकड़ में आई ? :)

थोड़ा थोड़ा...अच्छा ये बताओ यदि मानव संस्कारानुषंगी है तो हम उसमें अच्छे संस्कार कैसे डाल सकते हैं ?

संस्कार (समझ) हमेशा अच्छी ही होती है आप प्रवृत्ति को अच्छी या बुरी कह सकते हैंl
संस्कार या समझ मानव में शिक्षा से ही आ सकती है अत: हमें शिक्षा पर ध्यान देने की जरुरत है इसका मतलब यह नहीं कि हमें शिक्षा विद्यालयों में ही मिलती है...
शिक्षा सर्वप्रथम माँ से फिर परिवार के अन्य सदस्यों से, पड़ोसियों से, सम्बन्धियों से फिर समाज से, देश से और अन्तरराष्ट्र से ...

ओह! इसका मतलब तो शुरुआत तो स्वयं से करनी होगी फिर परिवार, समाज, देश व अन्तर्राष्ट्र तक जाना होगा तभी तो हम हमारी आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर वातावरण दे पायेंगें इस सुन्दर वातावरण में उसका सही विकास (चेतना का विकास) होगा l 

बहुत अच्छे :)   

Tuesday, April 2, 2013

मैं कौन हूँ?

एक सवाल मैं कौन हूँ ?
चार ऑप्शन... 

१. शरीर 
२. मस्तिष्क 
३. चैतन्य इकाई 
४. या फिर और कुछ

यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर ही हमारा जीना होता है
मुझे अप्रत्यक्ष रूप से कुछ उत्तर मिले थे जिनमें से एक ने मस्तिष्क की ओर इशारा किया था और एक ने तीसरे नम्बर पर...
चलिए प्रत्येक का विश्लेषण करते हैं

पहले देखते हैं यदि "मैं शरीर हूँ "
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* तो मैं कई कोशिकाओं का एक समूह हूँ और हर दिन लाखों कोशिकाएं मरती है और बनती है अर्थात मैं हर दिन मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ और जन्म ले रहा हूँ और आखिर में एक दिन ये सब कोशिकाएँ जर्जर हो जाएँगी और मैं सम्पूर्ण मृत्यु को प्राप्त होऊंगा.

* तो कोशिकाओं से बने एक कोशिका को देखते हैं इसमें तो एक बड़ा सा कारखाना नज़र आ रहा है और सारी इकाइयाँ एक दूसरे का सहयोग करती नज़र आ रही है बीच में महत्वपूर्ण घटक एक केन्द्रक दिख रहा है अब इसके अंदर भी देखते हैं तो गुणसूत्र नज़र आ रहे हैं गुणसूत्र के अंदर जाते हैं तो पाला पड़ता है एक बहुत ही महत्वपूर्ण परमाणु से उसका नाम है कार्बन... कार्बन को और बड़ा करके देखते हैं तो नज़र आते हैं कई अंश...जिसमें से कुछ केंद्र में ही एक दूसरे से एक अच्छी दूरी बनाये रखते हुए गति में हैं और कुछ अंश इन बीच वाले अंशों के चारों ओर घूम रहे हैं अलग परिवेश में...

* चलिए अब इन अंशों के भी अंदर जाते हैं तो बहुत सारे क्वार्कस् ( Quarks) दिखते हैं और कहा जाता है कि यह शायद कंपन करने वाली तंतुओं के टुकड़ों से बना है आप यह वीडियो भी देख सकते हैं (४ मिनिट १२ सेकेंड से देखना शुरू करिये)

http://www.youtube.com/watch?v=bhofN1xX6u0

** निष्कर्ष- यदि मैं शरीर हूँ तो मेरी उम्र इन कोशिकाओं के जीते तक ही है तो मुझे क्या करना चाहिए?
शरीर के लिए तमाम सुविधाएँ इकठ्ठा करनी चाहिए और इनसे सुखी होने का प्रयास करना चाहिए. तरह -तरह के व्यंजन खाना चाहिए और मौज मस्ती करनी चाहिए रात दिन शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जिंदगी है तो चार दिनों की ....बच्चों के लिए बैंक बैलेंस छोड़ के चले जाते हैं ताकि उनकी जिंदगी भी हमारी तरह सुविधाओं के बीच गुजरे...और बस हमारी कहानी खत्म और इतिहास में दर्ज... अगर उस लायक रहे तो! और फिर बरसों याद किये जायंगें :)

अब देखते हैं यदि "मैं मस्तिष्क हूँ"
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* तो बस मैं अर्थात मस्तिष्क ही सोचता हूँ निर्णय लेता हूँ और मेरे (मस्तिष्क) नष्ट होते ही सब नष्ट अर्थात मृत्यु की प्राप्ति.

* मस्तिष्क भी कई तरह की कोशिकाओं से बना हुआ जो असंख्य परमाणुओं से बना हुआ है तो मैं एक असंख्य परमाणु का गुच्छा हूँ आगे वही कहानी परमाणु, नाभिक, गुणसूत्र, कार्बन परमाणु और फिर कई अंश ...

** निष्कर्ष- यदि मैं मष्तिष्क हूँ तो मुझे अपने मस्तिष्क का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि मैं और अधिक दिन तक जी सकूँ और शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए....

अब देखते हैं यदि "मैं एक चैतन्य इकाई हूँ "
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* तो मैं कभी मर नहीं सकता मैं अमर हूँ , मैं जड़ इकाइयों से कुछ अलग तरह का हूँ मैं यह शरीर नहीं...मस्तिष्क नहीं...

* अगर मैं अमर हूँ यदि मेरी मर्जी है तो ? बार बार जन्म लेकर इस धरती में आता हूँ / रहूँगा

**निष्कर्ष - यदि मैं एक अमर इकाई अर्थात चैतन्य इकाई हूँ तो ना तो मैं स्त्री हूँ ना ही पुरुष क्योकि यह शरीर तो सिर्फ एक माध्यम है अब मुझ पर तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है चूँकि मुझे धरती पर फिर से आना है तो मैंने तो कुछ भी बचाया नहीं...सारे पेड़ काट डाले, जमीन खोद डाली अब मैं खाऊंगा क्या? साँस कैसे लूँगा? इस बेरंगी दुनिया में कैसे जी सकूंगा? तो मुझे तो अभी से ही प्रयास करना होगा.

इस धरती को फिर से हरा भरा बनना होगा मैं हमेशा (निरन्तर) रहने वाली चीज हूँ और हमेशा (निरंतर) खुश रहूँ ऐसा प्रयास करना होगा ताकि मेरा भविष्य... मेरी अगली शरीर यात्रा सुखद हो.... साथ ही मेरे बच्चे और अन्य चैतन्य इकाई भी निरंतर सुख को प्राप्त कर सके इसका प्रयास करना होगा...

इसके अलावा चौथे विकल्प में आपको कुछ सूझता है तो शेअर कीजिये... स्वागत है :)