Tuesday, April 2, 2013

मैं कौन हूँ?

एक सवाल मैं कौन हूँ ?
चार ऑप्शन... 

१. शरीर 
२. मस्तिष्क 
३. चैतन्य इकाई 
४. या फिर और कुछ

यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर ही हमारा जीना होता है
मुझे अप्रत्यक्ष रूप से कुछ उत्तर मिले थे जिनमें से एक ने मस्तिष्क की ओर इशारा किया था और एक ने तीसरे नम्बर पर...
चलिए प्रत्येक का विश्लेषण करते हैं

पहले देखते हैं यदि "मैं शरीर हूँ "
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* तो मैं कई कोशिकाओं का एक समूह हूँ और हर दिन लाखों कोशिकाएं मरती है और बनती है अर्थात मैं हर दिन मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ और जन्म ले रहा हूँ और आखिर में एक दिन ये सब कोशिकाएँ जर्जर हो जाएँगी और मैं सम्पूर्ण मृत्यु को प्राप्त होऊंगा.

* तो कोशिकाओं से बने एक कोशिका को देखते हैं इसमें तो एक बड़ा सा कारखाना नज़र आ रहा है और सारी इकाइयाँ एक दूसरे का सहयोग करती नज़र आ रही है बीच में महत्वपूर्ण घटक एक केन्द्रक दिख रहा है अब इसके अंदर भी देखते हैं तो गुणसूत्र नज़र आ रहे हैं गुणसूत्र के अंदर जाते हैं तो पाला पड़ता है एक बहुत ही महत्वपूर्ण परमाणु से उसका नाम है कार्बन... कार्बन को और बड़ा करके देखते हैं तो नज़र आते हैं कई अंश...जिसमें से कुछ केंद्र में ही एक दूसरे से एक अच्छी दूरी बनाये रखते हुए गति में हैं और कुछ अंश इन बीच वाले अंशों के चारों ओर घूम रहे हैं अलग परिवेश में...

* चलिए अब इन अंशों के भी अंदर जाते हैं तो बहुत सारे क्वार्कस् ( Quarks) दिखते हैं और कहा जाता है कि यह शायद कंपन करने वाली तंतुओं के टुकड़ों से बना है आप यह वीडियो भी देख सकते हैं (४ मिनिट १२ सेकेंड से देखना शुरू करिये)

http://www.youtube.com/watch?v=bhofN1xX6u0

** निष्कर्ष- यदि मैं शरीर हूँ तो मेरी उम्र इन कोशिकाओं के जीते तक ही है तो मुझे क्या करना चाहिए?
शरीर के लिए तमाम सुविधाएँ इकठ्ठा करनी चाहिए और इनसे सुखी होने का प्रयास करना चाहिए. तरह -तरह के व्यंजन खाना चाहिए और मौज मस्ती करनी चाहिए रात दिन शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जिंदगी है तो चार दिनों की ....बच्चों के लिए बैंक बैलेंस छोड़ के चले जाते हैं ताकि उनकी जिंदगी भी हमारी तरह सुविधाओं के बीच गुजरे...और बस हमारी कहानी खत्म और इतिहास में दर्ज... अगर उस लायक रहे तो! और फिर बरसों याद किये जायंगें :)

अब देखते हैं यदि "मैं मस्तिष्क हूँ"
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* तो बस मैं अर्थात मस्तिष्क ही सोचता हूँ निर्णय लेता हूँ और मेरे (मस्तिष्क) नष्ट होते ही सब नष्ट अर्थात मृत्यु की प्राप्ति.

* मस्तिष्क भी कई तरह की कोशिकाओं से बना हुआ जो असंख्य परमाणुओं से बना हुआ है तो मैं एक असंख्य परमाणु का गुच्छा हूँ आगे वही कहानी परमाणु, नाभिक, गुणसूत्र, कार्बन परमाणु और फिर कई अंश ...

** निष्कर्ष- यदि मैं मष्तिष्क हूँ तो मुझे अपने मस्तिष्क का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि मैं और अधिक दिन तक जी सकूँ और शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए....

अब देखते हैं यदि "मैं एक चैतन्य इकाई हूँ "
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* तो मैं कभी मर नहीं सकता मैं अमर हूँ , मैं जड़ इकाइयों से कुछ अलग तरह का हूँ मैं यह शरीर नहीं...मस्तिष्क नहीं...

* अगर मैं अमर हूँ यदि मेरी मर्जी है तो ? बार बार जन्म लेकर इस धरती में आता हूँ / रहूँगा

**निष्कर्ष - यदि मैं एक अमर इकाई अर्थात चैतन्य इकाई हूँ तो ना तो मैं स्त्री हूँ ना ही पुरुष क्योकि यह शरीर तो सिर्फ एक माध्यम है अब मुझ पर तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है चूँकि मुझे धरती पर फिर से आना है तो मैंने तो कुछ भी बचाया नहीं...सारे पेड़ काट डाले, जमीन खोद डाली अब मैं खाऊंगा क्या? साँस कैसे लूँगा? इस बेरंगी दुनिया में कैसे जी सकूंगा? तो मुझे तो अभी से ही प्रयास करना होगा.

इस धरती को फिर से हरा भरा बनना होगा मैं हमेशा (निरन्तर) रहने वाली चीज हूँ और हमेशा (निरंतर) खुश रहूँ ऐसा प्रयास करना होगा ताकि मेरा भविष्य... मेरी अगली शरीर यात्रा सुखद हो.... साथ ही मेरे बच्चे और अन्य चैतन्य इकाई भी निरंतर सुख को प्राप्त कर सके इसका प्रयास करना होगा...

इसके अलावा चौथे विकल्प में आपको कुछ सूझता है तो शेअर कीजिये... स्वागत है :)

1 comment:

Roshani said...

मेरा मानना है कि मैं एक चैतन्य इकाई हूँ तो मुझे आप सभी मेरे सम्बन्धी नज़र आते हैं और मुझे अपने इस मान्यता पर पूर्ण विश्वास है पर जब तक जानना पूर्ण नहीं होगा तब तक मैं अधिकार पूर्वक घोषणा नहीं कर सकती.