Friday, August 30, 2013

अन्धकार या उजाला?

क्या चाहिए हमें? 
क्या सहज स्वीकार होता है?
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लघु कथा-

एक घना जंगल था...घना अँधेरा छाया हुआ था उसमें कुछ लोग अँधेरे को कोसते हुए अँधेरे से होने वाले कष्टों का विस्तृत वर्णन, विश्लेषण बारम्बार करते हुए चले जा रहे थे. इन सबमें ही उनका महत्वपूर्ण समय जाया हो रहा था. इससे उनको स्वयं तो मानसिक पीड़ा हो ही रही थी साथ में चलने वाले अन्य लोग भी पीड़ित थे. 
अँधेरे में किसी भी वस्तु से टकराते हुए, तमाम प्रकार की आशंकाओं से पीड़ित, भयभीत व असुरक्षित महसूस कर रहे थे.
तभी एक शख्स को कुछ याद आया उसने अपनी जेब से २ वस्तुएँ निकाली..पहला एक मोमबत्ती और दूसरी माचिस.
इसे जलाते ही उनके चारों तरफ उजाला हो गया. उस उजाले में जब सारी परिस्थितियां स्पष्ट हुई तो वे स्वयं पे हँसे बिना नहीं रह सके. 
और कुछ देर बाद आसमान में उजाला हुआ...सूर्य निकल आया अब अँधेरे का नामोनिशान नहीं था. अब उन्हें अपना लक्ष्य स्पष्ट नजर आ रहा था.
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कुछ लोग अँधेरे से बहुत डरते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि अँधेरा का कोई अस्तित्व ही नहीं है.
कैसे?
इसे इस प्रकार देख सकते हैं... इसके पहले २ प्रश्न..
=> क्या आप कोई ऐसा स्रोत बता सकते हैं जिससे अँधेरा पैदा किया जा सकता है?
नहीं ना? 
=> और क्या आप ऐसा कोई स्रोत बता सकते हैं जिससे उजाला किया जा सकता है?
आप कहेंगें.."हाँ" और आप मुझे बहुत सारे स्रोतों के नाम गिनवा देंगें.
(जैसे दिया, कैंडिल, बल्ब, सूर्य इत्यादि)
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निष्कर्ष:-
तो इससे यह निष्कर्ष निकालता है कि उस स्रोत के अभाव में अन्धकार (आपकी आँखों की रचना के कारण) छा जाता है जबकि अस्तित्व में अंधकार जैसी कोई चीज ही नहीं. इस अन्धकार में भी कई जीव आसानी से देख सकते हैं..
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ठीक इसी प्रकार "समझ" रुपी "उजाले" के अभाव में "दुःख/पीड़ा/आवेश/मान्यताएँ" रुपी "अन्धकार" छा जाता है
और "समझ" रूपी उजाला होते ही सुख, समाधान और समृद्धि प्राप्त हो जाती है.

1 comment:

Dr ajay yadav said...

रौशनी का तात्पर्य ही उजाले से हैं ,इतना खूबसूरत ब्लॉग पढ़कर मैं धन्य हों गया |आभार यूँ ही लिखती रहियें |
“जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ....."