Thursday, September 12, 2013

नए भूमि अधिग्रहण कानून का क्या होगा फायदा?

इस शीर्षक से मैंने यह लेख पढ़ा...

केंद्र सरकार का नया भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा से पास हो गया है और अब राज्य सभा से भी मुहर लगने के बाद यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।

नया कानून किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता।

लेकिन यदि रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार उनकी भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा।

इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा।

लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं।

इसमें 13 संशोधन स्थायी समिति और 13 संशोधन शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति और दो संशोधन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की संस्तुति पर किए गए हैं।

कानून में न सिर्फ जमीन के उचित मुआवजे का प्रावधान किया गया है बल्कि भू स्वामियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी व्यवस्था की गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।

इसके बाद जमीन का जबरन अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकेगा। प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।

फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है।

नए कानून के लागू होने से बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई है।

इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।

पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।

बिल में संशोधन सुझाया था कि जमीन डेवलपर्स को लीज पर देने का भी प्रावधान किया जाए, ताकि जमीन के मालिक किसान ही रहें और इससे उन्हें सालाना आय भी हो, यह संशोधन मंजूर कर लिया गया।

दूसरे संशोधन में कहा गया कि लोकसभा में सितंबर 2011 में बिल पेश किए जाने के बाद से अधिग्रहीत की गई भूमि के मूल मालिकों को 50 फीसदी मुआवजा देने का प्रावधान हो, सरकार 40 फीसदी पर राजी हो गई।

लिंक- http://www.amarujala.com/news/samachar/national/urgency-clause-controversial-land-acquisition-rehabilitation-resettlement-bill/


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कुछ बिंदुओं पर ध्यान गया..

"यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।" 
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जैसा कि हम सबको विदित है कि ब्रिटिशों की दृष्टि क्या थी?

"ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।"
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शहरी इलाकों का तो ठीक है..चलेगा पर किसानों को भूमि अधिग्रहण के बाद ४ गुना जो दाम मिलेगा..इससे वे अगर दोबारा कृषि योग्य उतनी ही भूमि खरीद पाते हैं तो ठीक है पर यदि ऐसा नहीं करते तो वह इन पैसों के खत्म होने के बाद इनकी क्या स्थिति होगी?
क्या इनको पूंजीपतियों का गुलाम बनना पड़ेगा?

" प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।"
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अब इन प्राइवेट कंपनियों की दृष्टि का भी हम सभी को पता है. 

"इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।"
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क्या यह सही है? श्रम ही तो मेरी पूँजी है प्रकृति के साथ कार्य करके ही तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता तो भीख हुई और भीख मुझे स्वीकार नहीं.

" पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।"
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शहर वालों की बात छोड़ दी जाये...तो देखते हैं ग्रामीण क्षेत्रों के प्रभावितों को 150 वर्ग मीटर में मकान दिया जा रहा है...क्या यह पर्याप्त है? 
अगर आपने उनकी कृषि योग्य जमीन अधिग्रहण की है तो उतनी ही कृषि योग्य जमीन दीजिए. ताकि उसे अपनी जीविका के लिए किसी पूँजी पतियों के आगे हाथ ना फ़ैलाने पड़े.

इंग्लैंड में यह स्थिति है कि वहाँ बड़े बड़े लैंड लॉर्ड हैं वे ही कृषि का कार्य करते हैं या तो मल्टीनेशनल कम्पनी करती हैं...और मध्यम वर्गीय परिवार नौकरी पर ही निर्भर है...उनके लिए जमीन खरीदना एक सपने की तरह है और खेती तो वे सोच भी नहीं सकते...(सूचना अनुसार) भारत में भी हम क्या वही स्थिती बनाने जा रहे हैं? इन किसानों से अगर भूमि धीरे धीरे छीन ली जायेगी तो ये क्या करेंगें?  
तुम्हारी (पूंजीपतियों की) गुलामी?


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