Friday, September 13, 2013

टापू और मानव

समंदर के बीच एक छोटा सा टापू था जिसमें मुश्किल से कोई १००-२०० लोग रहते थे.
इस सुन्दर टापू में आराम से खुशी खुशी इनका गुजर बसर चल रहा था..समस्याएँ थी पर इतनी कि वह गौण की जा सकती थी...
इनमें से कुछ लोगों के २ समूह थे जो इतने में खुश नहीं थे. वे कुछ और करने की इच्छा रखे हुए थे.
एक समूह के लोगों ने उस टापू में एक जगह जिज्ञासावश खोदना शुरू किया उन्हें कुछ चमकीले पत्थर मिले उसे अन्य लोगों को दिखाया तो कईयों ने उस एक चमकीले पत्थर के बदले उन्हें बहुत सारी खाने - पीने की वस्तुएँ दी फिर धीरे धीरे वस्तु के बदले कोई कागज जैसा प्रतीक आ गया.
धीरे धीरे लोग उस चमकीले पीले पत्थर को आभूषणों की तरह पहनकर गौरान्वित महसूस करने लगे.
दूसरा भी एक समूह था जो प्रकृति की सुंदरता, उसके अद्भूत तालमेल और मनुष्य कौन और उसका प्रयोजन क्या...इन सब रहस्यों का पता करने निकले, उन्होंने तो पहले इस टापू को देखा फिर एक छोटी सी नाव बनाकर समुद्र सैर के लिए निकल गए...कई मीलों की यात्रा के बाद उनको एक और सुन्दर और प्राकृतिक संसाधनों से भरा समृद्ध टापू मिला और भी टापू उन्होंने देखा जिसमें केवल पत्थर मिट्टी थे...खैर इस यात्रा में वे प्रकृति के रहस्यों से वाकिफ हुए और मानव का प्रयोजन क्यों..यह बात समझ आई.
जब वे वापस अपने टापू पर आये तो ये देखकर दंग रह गए कि यह सुन्दर टापू अब खदानों में तब्दील हो चूका था...पेड़- पौधे और जीव जंतु के लिए शायद ही कोई जगह बची थी...सभी तकलीफ़ में थे...जगह जगह खदानों में पानी भरने लगा था..लोग चमकीले पीले पत्थर के पीछे पागलों जैसे आपस में लड़ने लगे ...लोग भूख से तड़प रहे थे...दूसरे समूह को यह सब देखकर पीड़ा हुई और वे इन सबका कारण भी समझ रहे थे...
अब इन भले और समझदार मानव के समूहों ने अन्य लोगों को समझाने की बेहद कोशिश की.
कुछ लोग समझ के क्रम में आने लगे और वे सब साथ मिलकर इस टापू के लोगों में शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फ़ैलाने का प्रयास किया साथ ही इस टापू को पहले जैसा बनाने का प्रयास भी कर रहे थे.
चूँकि लालची व भ्रमित मानवों का कार्य कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो चला था अब भी वे इस चमकीले पीले पत्थर के मोह में ही थे...समझदार मानव के समूह ने देखा कि अब यहाँ और नहीं रहा जा सकता तो उन्होंने एक बड़ी सी जहाज तैयार की और सभी लोगों को साथ चलने को कहा किन्तु भ्रमितों ने ध्यान नहीं दिया.
समय की कमी को देखते हुए भले मनुष्यों के समूहों ने जितने मुसाफिर जाने को तैयार थे उन सबको साथ लेकर अपनी अगली यात्रा शुरू की और उस सुन्दर टापू पर पहुँच गए और उनके समझदारी पूर्वक कार्य व्यवहार से वह टापू और भी ज्यादा समृद्ध और लोग निरंतर सुखी समृद्ध हो गए..उन्हें किसी बात की पीड़ा नहीं थी क्योंकि ये हर घटना के नियम को जान चुके थे और उसके अनुसार ही उनका मानना, पहचानना और निर्वाह करना हो रहा था. 
और इधर पुराने वाले टापू का दृश्य कुछ इस प्रकार था...
टापू पानी में डूब चूका था..पैर रखने की भी जगह नहीं थी ...वे चमकीले पीले पत्थर को अपने सीने से चिपकाये मृत्यु की गोद में सामने लगे. 
आज भी यदि कोई उस टापू के पास से कोई गुजरता है तो दूर से उनको कुछ चमकीली चीज दिखती है ये उन्हीं मरे हुए लोगों की भटकती आत्मा (जीवन) है जो अब कई सदियों तक इस टापू पर दोबारा मानव शरीर तैयार होने तक का इंतज़ार करते रहेगी...भटकती रहेगी.
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(नोट- यह एक काल्पनिक कहानी है )      

       

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