Saturday, September 28, 2013

संगीत


एक संगीत सभा का महाआयोजन था..वहाँ एक से बढ़ कर एक वाद्य यन्त्र, गायक और नृत्य में पारंगत महारथी थे .. आयोजन शुरू हुआ..पर यह क्या सब अपनी अपनी धुन में यंत्रों को बजाने लगे, सभी गायक अपने- अपने गीत गाने लगे और नृत्य में पारंगत सभी महारथी अपने अपने पसंदीदा धुनों पर नृत्य करने लगे...
अब आप इसे संगीत कहेंगे या शोर?
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इस धरती में रहने वाले लोगों का भी यही हाल है..ये सभी "सत्य" की परिभाषा अलग अलग माने बैठे हैं. बाकी ३ अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव ) तो उस वास्तविकता/ सत्य के संगीत में रंगे हुए हैं पर जब से मानव अस्तित्व में आया तब से संगीत दिन ब दिन बेसुरा होता जा रहा है...
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जबकि वास्तव में "सत्य" एक ही है उससे निकलने वाली ताल भी एक ही है..यह जैसा है वैसा ही रहेगा ...यह पहले भी था, अब भी है और कल भी ऐसा ही रहेगा..यह "नित्य वर्तमान" है.

हम सभी को इस ताल के अनुसार होना है तभी एक मधुर संगीत का सृजन होगा और इस अस्तित्व द्वारा आयोजित संगीत सभा की कभी ना खत्म होने वाली एक शानदार शुरुआत होगी ....


(चित्र गूगल से..आभार) 

Friday, September 13, 2013

टापू और मानव

समंदर के बीच एक छोटा सा टापू था जिसमें मुश्किल से कोई १००-२०० लोग रहते थे.
इस सुन्दर टापू में आराम से खुशी खुशी इनका गुजर बसर चल रहा था..समस्याएँ थी पर इतनी कि वह गौण की जा सकती थी...
इनमें से कुछ लोगों के २ समूह थे जो इतने में खुश नहीं थे. वे कुछ और करने की इच्छा रखे हुए थे.
एक समूह के लोगों ने उस टापू में एक जगह जिज्ञासावश खोदना शुरू किया उन्हें कुछ चमकीले पत्थर मिले उसे अन्य लोगों को दिखाया तो कईयों ने उस एक चमकीले पत्थर के बदले उन्हें बहुत सारी खाने - पीने की वस्तुएँ दी फिर धीरे धीरे वस्तु के बदले कोई कागज जैसा प्रतीक आ गया.
धीरे धीरे लोग उस चमकीले पीले पत्थर को आभूषणों की तरह पहनकर गौरान्वित महसूस करने लगे.
दूसरा भी एक समूह था जो प्रकृति की सुंदरता, उसके अद्भूत तालमेल और मनुष्य कौन और उसका प्रयोजन क्या...इन सब रहस्यों का पता करने निकले, उन्होंने तो पहले इस टापू को देखा फिर एक छोटी सी नाव बनाकर समुद्र सैर के लिए निकल गए...कई मीलों की यात्रा के बाद उनको एक और सुन्दर और प्राकृतिक संसाधनों से भरा समृद्ध टापू मिला और भी टापू उन्होंने देखा जिसमें केवल पत्थर मिट्टी थे...खैर इस यात्रा में वे प्रकृति के रहस्यों से वाकिफ हुए और मानव का प्रयोजन क्यों..यह बात समझ आई.
जब वे वापस अपने टापू पर आये तो ये देखकर दंग रह गए कि यह सुन्दर टापू अब खदानों में तब्दील हो चूका था...पेड़- पौधे और जीव जंतु के लिए शायद ही कोई जगह बची थी...सभी तकलीफ़ में थे...जगह जगह खदानों में पानी भरने लगा था..लोग चमकीले पीले पत्थर के पीछे पागलों जैसे आपस में लड़ने लगे ...लोग भूख से तड़प रहे थे...दूसरे समूह को यह सब देखकर पीड़ा हुई और वे इन सबका कारण भी समझ रहे थे...
अब इन भले और समझदार मानव के समूहों ने अन्य लोगों को समझाने की बेहद कोशिश की.
कुछ लोग समझ के क्रम में आने लगे और वे सब साथ मिलकर इस टापू के लोगों में शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फ़ैलाने का प्रयास किया साथ ही इस टापू को पहले जैसा बनाने का प्रयास भी कर रहे थे.
चूँकि लालची व भ्रमित मानवों का कार्य कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो चला था अब भी वे इस चमकीले पीले पत्थर के मोह में ही थे...समझदार मानव के समूह ने देखा कि अब यहाँ और नहीं रहा जा सकता तो उन्होंने एक बड़ी सी जहाज तैयार की और सभी लोगों को साथ चलने को कहा किन्तु भ्रमितों ने ध्यान नहीं दिया.
समय की कमी को देखते हुए भले मनुष्यों के समूहों ने जितने मुसाफिर जाने को तैयार थे उन सबको साथ लेकर अपनी अगली यात्रा शुरू की और उस सुन्दर टापू पर पहुँच गए और उनके समझदारी पूर्वक कार्य व्यवहार से वह टापू और भी ज्यादा समृद्ध और लोग निरंतर सुखी समृद्ध हो गए..उन्हें किसी बात की पीड़ा नहीं थी क्योंकि ये हर घटना के नियम को जान चुके थे और उसके अनुसार ही उनका मानना, पहचानना और निर्वाह करना हो रहा था. 
और इधर पुराने वाले टापू का दृश्य कुछ इस प्रकार था...
टापू पानी में डूब चूका था..पैर रखने की भी जगह नहीं थी ...वे चमकीले पीले पत्थर को अपने सीने से चिपकाये मृत्यु की गोद में सामने लगे. 
आज भी यदि कोई उस टापू के पास से कोई गुजरता है तो दूर से उनको कुछ चमकीली चीज दिखती है ये उन्हीं मरे हुए लोगों की भटकती आत्मा (जीवन) है जो अब कई सदियों तक इस टापू पर दोबारा मानव शरीर तैयार होने तक का इंतज़ार करते रहेगी...भटकती रहेगी.
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(नोट- यह एक काल्पनिक कहानी है )      

       

Thursday, September 12, 2013

नए भूमि अधिग्रहण कानून का क्या होगा फायदा?

इस शीर्षक से मैंने यह लेख पढ़ा...

केंद्र सरकार का नया भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा से पास हो गया है और अब राज्य सभा से भी मुहर लगने के बाद यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।

नया कानून किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता।

लेकिन यदि रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार उनकी भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा।

इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा।

लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं।

इसमें 13 संशोधन स्थायी समिति और 13 संशोधन शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति और दो संशोधन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की संस्तुति पर किए गए हैं।

कानून में न सिर्फ जमीन के उचित मुआवजे का प्रावधान किया गया है बल्कि भू स्वामियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी व्यवस्था की गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।

इसके बाद जमीन का जबरन अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकेगा। प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।

फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है।

नए कानून के लागू होने से बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई है।

इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।

पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।

बिल में संशोधन सुझाया था कि जमीन डेवलपर्स को लीज पर देने का भी प्रावधान किया जाए, ताकि जमीन के मालिक किसान ही रहें और इससे उन्हें सालाना आय भी हो, यह संशोधन मंजूर कर लिया गया।

दूसरे संशोधन में कहा गया कि लोकसभा में सितंबर 2011 में बिल पेश किए जाने के बाद से अधिग्रहीत की गई भूमि के मूल मालिकों को 50 फीसदी मुआवजा देने का प्रावधान हो, सरकार 40 फीसदी पर राजी हो गई।

लिंक- http://www.amarujala.com/news/samachar/national/urgency-clause-controversial-land-acquisition-rehabilitation-resettlement-bill/


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कुछ बिंदुओं पर ध्यान गया..

"यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।" 
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जैसा कि हम सबको विदित है कि ब्रिटिशों की दृष्टि क्या थी?

"ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।"
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शहरी इलाकों का तो ठीक है..चलेगा पर किसानों को भूमि अधिग्रहण के बाद ४ गुना जो दाम मिलेगा..इससे वे अगर दोबारा कृषि योग्य उतनी ही भूमि खरीद पाते हैं तो ठीक है पर यदि ऐसा नहीं करते तो वह इन पैसों के खत्म होने के बाद इनकी क्या स्थिति होगी?
क्या इनको पूंजीपतियों का गुलाम बनना पड़ेगा?

" प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।"
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अब इन प्राइवेट कंपनियों की दृष्टि का भी हम सभी को पता है. 

"इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।"
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क्या यह सही है? श्रम ही तो मेरी पूँजी है प्रकृति के साथ कार्य करके ही तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता तो भीख हुई और भीख मुझे स्वीकार नहीं.

" पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।"
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शहर वालों की बात छोड़ दी जाये...तो देखते हैं ग्रामीण क्षेत्रों के प्रभावितों को 150 वर्ग मीटर में मकान दिया जा रहा है...क्या यह पर्याप्त है? 
अगर आपने उनकी कृषि योग्य जमीन अधिग्रहण की है तो उतनी ही कृषि योग्य जमीन दीजिए. ताकि उसे अपनी जीविका के लिए किसी पूँजी पतियों के आगे हाथ ना फ़ैलाने पड़े.

इंग्लैंड में यह स्थिति है कि वहाँ बड़े बड़े लैंड लॉर्ड हैं वे ही कृषि का कार्य करते हैं या तो मल्टीनेशनल कम्पनी करती हैं...और मध्यम वर्गीय परिवार नौकरी पर ही निर्भर है...उनके लिए जमीन खरीदना एक सपने की तरह है और खेती तो वे सोच भी नहीं सकते...(सूचना अनुसार) भारत में भी हम क्या वही स्थिती बनाने जा रहे हैं? इन किसानों से अगर भूमि धीरे धीरे छीन ली जायेगी तो ये क्या करेंगें?  
तुम्हारी (पूंजीपतियों की) गुलामी?