"विज्ञानी यह बता रहे हैं धरती का तापमान कुछ अंश और बढ़ जाने पर इस धरती पर आदमी रहेगा नहीं| सन् १९५० से पहले यही विज्ञानी बताते रहे कि यह धरती ठंडा हो रहा है| सन् १९५० के बाद बताना शुरू किये यह धरती गर्म हो रहा है| यह सब कैसे हो गया? इसका शोध करने पर पता चला इस धरती पर सब देश मिलाकर २००० से ३००० बार परमाणु परिक्षण किये हैं| ये परिक्षण इस धरती पर ही हुए हैं| इन परीक्षणों से जो ऊष्मा जनित होते हैं उसको नापा जाता है| यह जो ऊष्मा जनित हुआ, वह धरती में ही समाया या कहीं उड़ गया? यह पूछने पर पता चलता है यह ऊष्मा धरती में ही समाया है जिससे धरती का ताप बढ़ गया| धरती को बुखार हो गया है| अब और कितना बढ़ेगा उसकी प्रतीक्षा करने में विज्ञानी लगे हैं| इसके साथ एक और विपदा हुआ प्रदूषण का छा जाना| ईंधन अवशेष से प्रदूषण हुआ| इन दोनों विपदाओं से धरती पर मानव रहेगा या नहीं, इस पर प्रश्न चिन्ह लग गया है|
धरती को मानव ने अपने न रहने योग्य बना दिया| मानव को धरती पर रहने योग्य बनाने के लिए यह अनुसंधान (चेतना विकास मूल्य शिक्षा/जीवन विद्या/मध्यस्थ दर्शन) प्रस्ताव रूप में है|"
स्रोत- संवाद-२ (मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद पर आधारित)
प्रणेता-श्री ए. नागराज
धरती को मानव ने अपने न रहने योग्य बना दिया| मानव को धरती पर रहने योग्य बनाने के लिए यह अनुसंधान (चेतना विकास मूल्य शिक्षा/जीवन विद्या/मध्यस्थ दर्शन) प्रस्ताव रूप में है|"
स्रोत- संवाद-२ (मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद पर आधारित)
प्रणेता-श्री ए. नागराज
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