Tuesday, June 7, 2016

यह कैसा जीना है?

http://www.hindi.indiasamvad.co.in/states/ten-thousands-cows-died-of-drought-when-will-this-debate-12735
लिंक से प्राप्त समाचार देखकर मन द्रवित हो उठा|
बुंदेलखंड, यू.पी. और मध्यप्रदेश में सूखे के कारण ना जाने कितनी गायों को मृत्यु हो गई|
यह इस बात का प्रमाण है कि हम मनुष्य जाति अभी तक जीना नहीं सीख पाये हैं|
एक तरफ तो हम मंगल ग्रह तक पहुँचने की बात करते हैं और दूसरी तरफ अपने ग्रह पृथ्वी में संतुलन बनाए रखने में असफल सिद्ध हो रहे हैं... यह कैसा जीना है?
न स्वयं में, न ही परिवार में, न ही समाज में, न ही राष्ट्र में, न ही अंतराष्ट्र में ... न ही प्रकृति में ... कहीं भी संतुलन नहीं दिखता|
आखिर इसका कारण क्या है?
कम से कम 3 लाख गायों की मृत्यु हो गई, हम कुछ नहीं कर पाये? अभी तो सूखे से यह हालत है आगे बरसात पड़ी है यह भी कम भयानक मंजर लेकर नहीं आती है... हम सबने इसकी क्या तैयारी कर रखी है?
सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती| और वह करे या न करे यह हम सबकी भी ज़िम्मेदारी है|
सरकार से विनम्र विनती है कि कृपया जंगलों के हरे भरे वृक्षों को विकास के नाम पर ना काटा जाये| क्योकि वृक्ष ही हैं जो बेहद गर्मी और भारी वर्षा के समय जमीन के कटाव को रोक कर हमारी रक्षा करती है| कृपया इनके महत्व को समझा जाए|
ऐसा न हो कि हमें आगे पछताना पड़े| एक झटके में हम वृक्ष नहीं उगा सकते| तो जो हैं कृपया उसे ही बचा के रखें और साथ ही वृक्षा रोपण के कार्यक्रम को भी संजीदगी से अमल में लाएँ|
शहरों के ऐसे डिजाइन तय किए जाए जिसमें अस्तित्व के चारों अवस्थाओं (पदार्थ, प्राण (पेड़- पौधे), जीव और ज्ञान) का ध्यान रखा जाये| साथ ही लोगों को जागरूक बनाया जाए ताकि वे भी समझदारी से, बेहतर तालमेल से
इन सभी अवस्थाओं के साथ सम्मान पूर्वक रहना सीखें|

(चित्र इंडिया संवाद के सौजन्य से, आभार... )

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