आज 22/03/2020 को शाम 5 बजे से हम भारत के नागरिक प्रधान मंत्री के आह्वान पर स्वास्थ्य कर्मचारी जो अब कोरोना जैसी भयंकर महामारी का सामना करने जा रहे हैं, के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने हेतु ताली, थाली, घंटी या शंख का प्रयोग कम से कम 5 मिनिट तक करने को कहा गया था।
व्हाट्सएप पर महिलाओं ने एक धुन शेअर किया था और उसे प्रयोग करने को कहा गया... इस धुन में शंख और मंदिर की घण्टियों की आवाज थी।
बस हम सभी परिवार वालों ने उसे शाम 5 बजे से बजाना शुरू किया, मेरी माता जी ने एक थाल और पिताजी ने शंख बजाना शुरु किया और मैंने ताली।
इन सब ध्वनि और आगे जो भी वातावरण हम सभी सामना करने जा रहे हैं और प्रकृति माँ के प्रति कृतज्ञता का भाव आते ही आँखों से आँसू बहने लगे। सबसे अपने आंसुओं को छुपाते हुए हमने ताली बजाना जारी रखा हुआ था और विचार भीतर में चलने लगे....
मन ही मन प्रकृति माँ से हम मानव जाति के द्वारा किए गए कार्य -व्यवहार से क्षमा माँग रहे थे पर साथ ही माफ नहीं करने को भी कह रहे थे। मानव जाति कैसे और कब सबक ले इन सबसे? कैसे हमें समझ में आ जाए कि हमें प्रकृति के साथ कैसे रहना है तब तक हमें प्रकृति तो ऐसे ही सबक सिखाएगी। और प्रकृति तो नियम अनुसार ही चलती है किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं।
और दूसरी ओर इटली में हो रही घटना और यही अगर भारत में देखने को मिले? सोचकर ही रूह कांप उठी।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि प्रकृति माँ से क्या माँगे, क्या विचार व्यक्त करें।
घर के सामने दो बड़े आमों के पेड़ और कोयल की कूक... दोनों हाथ आपस में जुड़े कृतज्ञता के अलावा कोई भाव नहीं आ रहे थे।
आशा है कि आने वाले मुश्किल घड़ी का हम सब समझदारी और बहादुरी से सामना करें।
आप सभी को मेरा सादर प्रणाम.....
जिन्होंने भी मानवीयता का दामन कठिन स्थिति-परिस्थिति में नहीं छोड़ा उन सभी भाई बहनों के प्रति दिल से कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव....
यही मानवीय दृष्टि आपको उच्च स्तर का बनाती है। विपरीत परिस्थितियों में ही स्वयं की स्थिति का आकलन हो पाता है।
व्हाट्सएप पर महिलाओं ने एक धुन शेअर किया था और उसे प्रयोग करने को कहा गया... इस धुन में शंख और मंदिर की घण्टियों की आवाज थी।
बस हम सभी परिवार वालों ने उसे शाम 5 बजे से बजाना शुरू किया, मेरी माता जी ने एक थाल और पिताजी ने शंख बजाना शुरु किया और मैंने ताली।
इन सब ध्वनि और आगे जो भी वातावरण हम सभी सामना करने जा रहे हैं और प्रकृति माँ के प्रति कृतज्ञता का भाव आते ही आँखों से आँसू बहने लगे। सबसे अपने आंसुओं को छुपाते हुए हमने ताली बजाना जारी रखा हुआ था और विचार भीतर में चलने लगे....
मन ही मन प्रकृति माँ से हम मानव जाति के द्वारा किए गए कार्य -व्यवहार से क्षमा माँग रहे थे पर साथ ही माफ नहीं करने को भी कह रहे थे। मानव जाति कैसे और कब सबक ले इन सबसे? कैसे हमें समझ में आ जाए कि हमें प्रकृति के साथ कैसे रहना है तब तक हमें प्रकृति तो ऐसे ही सबक सिखाएगी। और प्रकृति तो नियम अनुसार ही चलती है किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं।
और दूसरी ओर इटली में हो रही घटना और यही अगर भारत में देखने को मिले? सोचकर ही रूह कांप उठी।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि प्रकृति माँ से क्या माँगे, क्या विचार व्यक्त करें।
घर के सामने दो बड़े आमों के पेड़ और कोयल की कूक... दोनों हाथ आपस में जुड़े कृतज्ञता के अलावा कोई भाव नहीं आ रहे थे।
आशा है कि आने वाले मुश्किल घड़ी का हम सब समझदारी और बहादुरी से सामना करें।
आप सभी को मेरा सादर प्रणाम.....
जिन्होंने भी मानवीयता का दामन कठिन स्थिति-परिस्थिति में नहीं छोड़ा उन सभी भाई बहनों के प्रति दिल से कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव....
यही मानवीय दृष्टि आपको उच्च स्तर का बनाती है। विपरीत परिस्थितियों में ही स्वयं की स्थिति का आकलन हो पाता है।
No comments:
Post a Comment