Thursday, December 3, 2009

श्रृंगार क्यों?....

और कैसी होती है ? विधवाओं की जिन्दगी? .....
सिन्दूर लगाना, मंगल सूत्र पहनना, लाल चूड़ी, लाल बिंदी एक विवाहिता की निशानी है जो यह दर्शाता है कि वह किसी की अर्धांगिनी है।
पुरुषों को शायद ऐसे दिखावे कि जरुरत नहीं, जाने क्यों? ये तो वही जाने।
खैर जाने दीजिये ...
हम सुहागिनों को तो बहुत खुशी होती है यह सब श्रृंगार करते हुए और हम अपने को बेहद सुरक्षित महसूस करती हैं।
जैसे ही एक लड़की की शादी होती है उसमें एक गज़ब सा आत्मविश्वास आ जाता है और साथ ही श्रृंगार उसके व्यक्तित्व में खुबसूरत परिवर्तन ला देता है। दोनों जीवन भर साथ रहने और जीने मरने की कसमें खाते हैं। किसी दुर्घटनावश या किसी भी कारण से पिया इस संसार को अलविदा कह जाता है तो ये दुनिया, समाज उसकी अर्धांगिनी को छोड़ती नहीं...
उसका सम्पूर्ण श्रृंगार होता है तत्पश्चात एक एक करके उसे उतरा जाता है , दिल दहला देने वाला दृश्य होता है ...
जो हर नारी को यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि गुजरना पड़ेगा हमें भी एक दिन ऐसे ही !
अगर विधवा जवान है तो फ़िर से वह असुरक्षित हो जाती है।
मेरा आप सभी से यह सवाल है कि पति के जाने के बाद नारी श्रृंगार क्यों नहीं कर सकती?
आप कहेंगे यह सब तो पति के लिए होता है और जब पति ही नहीं तो यह सब व्यर्थ है।
पर मैं कहती हूँ कि यही श्रृंगार तो है जो उसे याद दिलाता है कि उसके प्यार ने उसे यह दिया था और इसी से उन्हें अपने बेहद करीब पाती है और सुरक्षित महसूस करती है।
एक तो ऐसे ही हमसफ़र खोने का गम... इस संसार में कितनी तनहा हो जाती है वह... कम से कम उसका प्यार ,उसका अधिकार, उसका श्रृंगार तो मत छीनो उससे...

5 comments:

नीरज गोस्वामी said...

रौशनी जी बहुत शाश्वत और सही प्रश्न किया है आपने...पुरुष प्रधान समाज में सारे नियम कायदे उन्हीं के अनुरूप बने हैं जो अब बदलने चाहियें...
नीरज

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत बडा सवाल उठाया है आपने.

लेकिन जवाब, देगा कौन?
हर चींखने वाली आवाज़
इस सवाल पर सिर्फ मौन???

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

संजय भास्‍कर said...

बहुत बडा सवाल उठाया है आपने.

संजय भास्‍कर said...

काबिलेतारीफ बेहतरीन

पंकज वर्मा said...

मौन तो अब भंग हो ही रहा है. हमें एक एक करके उन सारी कुरीतियों का त्याग करना पड़ेगा जो भेदभावपूर्ण हैं.