जी हाँ आज प्रकृति यही सवाल हर एक मनुष्य से कर रही है....तुम्हारे लिए कौन महत्वपूर्ण है मैं या तुम्हारा स्वार्थ ? इस धरती में रहने वाला हर इन्सान इस प्रकृति से होने वाले अत्याचार के प्रति जिम्मेदार है करने वाला भी और चुप रहने वाला भी। देखिये इस धरती के सबसे बुद्धिमान कहे जाने वाले मनुष्य की करतूत......
इन चित्रों को शब्दों की जरूरत नहीं! प्रकृति अपने दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकती उसे समझने के लिए भावनात्मक हृदय चाहिए .........
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com
जिन चित्रों कोआप ने यहाँ प्रस्तुत किया है ,उनकी अभिव्यक्ति किन्हीं शब्दों की व्यक्त करने की क्षमता से कम नहीं है .प्रकृति के प्रति आदमी के रिश्ते का भयावह स्वरुप सामने आता है आप को इस संवेदना के लिए बधाई.
6 comments:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
people are growing insensitive .
pathetic!
जिन चित्रों कोआप ने यहाँ प्रस्तुत किया है ,उनकी अभिव्यक्ति किन्हीं शब्दों की व्यक्त करने की क्षमता से कम नहीं है .प्रकृति के प्रति आदमी के रिश्ते का भयावह स्वरुप सामने आता है आप को इस संवेदना के लिए बधाई.
रौशनी जी
मनुष्य की करतूतों के और भी काले कारनामे हैं ।
मेहनत से तैयार की गई पोस्ट है , इसलिए बधाई !
दर्द को समझने के लिए भावनात्मक हृदय ही चाहिए , चाहे दर्द किसी का भी हो , कैसा भी हो …
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सच कहा शब्दों की जरूरत नहीं इनकी पीड़ा समझाने को.. मानव अपने बारे में ही सोच रहा है इनके लिए वक़्त कहाँ..
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