Wednesday, September 15, 2010

जब प्रभु जी का ये हाल तो इंसानों का क्या?

प्रभु जी को लेकर आये, प्रेम से उन्हें हमने अपने दिलों और जगह -जगह चाहे दुकानों के सामने हो या फिर गली मोहल्लों के मंचों में स्थापित किया....
फिर कुछ नाकेबंदी भी कर दी सुरक्षा के नाम पर।
प्रभु सिर्फ दो ही समय दर्शन देते हैं एक तो प्रात:काल और फिर सन्ध्याकाल में। बाकी समय तो प्रभु जी को आराम करने दिया जाता है वैसे हमने एक स्वान महाराज को प्रभु जी की नींद में खलल डालते भी देखा है।
११ दिनों तक हम पूजा अर्चना करते हैं और प्रभु से अपनी मांगों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट रखते हैं शायद ही कोई उनसे उनका हालचाल पूछता होगा।
बीच -बीच में बच्चों के लिए किसी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है फ़िल्मी गीतों से सजी आर्केस्ट्रा भी महफ़िल को रंगीन बनाती नज़र आती है और बच्चे भी मंच पर सलमान खान के दबंग फिल्म के संगीत के धुनों में थिरकते नज़र आते हैं। कार्यक्रम का शुरूआती दौर तो माशा अल्लाह थोड़ा ठीक ही रहता है आखिर में तो आपको प्रभु के सच्चे भक्त नशे में डूबे जरूर दिख ही जायेंगे।
देखते ही देखते विसर्जन का समय आ जाता है लोग आँखों में आँसू भरकर प्रिय गणपति महाराज जी की विदाई करते हैं। गाजे बाजे के साथ प्रभु जी की शानदार झाँकियाँ निकाली जाती है और यातायात व्यवस्था चरमरा जाती है। अब देखिये विसर्जन के बाद की स्थिति!

क्या आप भी यही चाहते हैं कि आपके प्यारे प्रभु का यह हाल हो? नहीं ना?
फिर आपके पास क्या उपाय है? कहिये.....

4 comments:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

रोशनी जी,
नमस्ते!
ये पहला मौका है जब मैं आपके ब्लॉग पर आया हूँ!
सार्थक हुआ!
बड़ा ही शर्मनाक मंज़र है.
ईश्वर की मूरत मन में बसे काफी है!
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में!
घिनौनी सच्चाई सामने रखने के लिए आभार!
काश दुनिया इससे सबक ले!
सादर,
आशीष

Roshani said...

आशीष जी, सहृदय आभार! आपके इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए.

नीरज गोस्वामी said...

रौशनी जी आपने बहुत सही लिखा है...इस धूम धमाके का कोई औचित्य नहीं रह गया है...ये धार्मिक अनुष्ठान अब बाजारू हो गए हैं...हम अपने आपको तो सुधारते नहीं सिर्फ इश्वर के नाम पर नौटंकी करते हैं...क्या इश्वर इन सब कामों से खुश होते हैं...शायद नहीं...धर्म का ये बिगड़ा रूप शर्मनाक है..धर्म की आड़ में नेता अभिनेता अपने स्वार्थ को सिद्ध करते हैं...ये सब बंद होना चाहिए और धार्मिक अनुष्ठान सादगी से होने चाहियें...
आपका लेख प्रेरक है...साधुवाद.

नीरज

Roshani said...

मूल्यवान टिप्पणियाँ, सार्थक चर्चा...
आभार