यह शब्द सुनते ही हमारे मानस पटल पर कई आकृतियाँ जन्म लेने लगती है और कई चित्र हमारे सामने आने जाने लगते हैं.....
हरे भरे लहलहाते , रंग बिरंगे फूलों और फलों से लदे वृक्ष, ऊँचें ऊँचें आकाश को चूमते पर्वत, मस्ती में उड़ते पंछी और जल में गोता लगाती हुई रंग बिरंगी मछलियाँ, समंदर में उठती मदमस्त लहरें, कलकल बहती नदियाँ, झर- झर बहते झरने, झीलोंतालाबों में खिले कमल, तैरते हंस, सूरज के उगने से डूबने तक आकाश की रंग बिरंगी छटा, रात्रि में तारों और जुगनुओं का टिमटिमाना, चंद्रमा की शीतलता, बहती पवन का स्पर्श, फूलों में मंडराती तितलियाँ, घोंसले बनाते पंछी और उन घोंसलों में इंतजार करते नन्हें बच्चे आदि आदि.......
यह कल्पना शीलता कभी समाप्त होने वाली नहीं है :)
मेरा यह सब कहने का तात्पर्य यह है कि सृष्टि की सुन्दरता को महसूस करने की क्षमता सिर्फ मानव में है बाकि सब पशु पक्षी सिर्फ अनुकूलता को पहचानते हैं। हम मनुष्य जैसी समझ या समझने की क्षमता उनमें नहीं होती। वे प्रकृति के नियम- धर्मों का पालन करते हुए जीते हैं।
अस्तित्व में मानव की रचना इस कारण से हुई ताकि वह सृष्टि की सुन्दरता का आस्वादन करते और उसके प्रत्येक इकाई का महत्व समझते हुए आनंदपूर्वक जी सके।
मानव में विकसित मस्तिष्क इस बात का सबूत है कि वह अपनी कल्पनाशीलता और कर्मस्वतन्त्रता का प्रयोग इस अस्तित्व को समझने और समझ के जीने में लगाये।
आज का आधुनिकीकरण का परिणाम देखिये सारी जनसंख्या भ्रमवश शहरों में एकत्रित होती जा रही हैं और चारों ओर बिखरी हुई व्यवस्था......
बगैर समझ के हमने अपनी कल्पनाशीलता और कर्मस्वतन्त्रता का प्रयोग किया जिसके परिणाम दिनों- दिन हमारे सामने आते जा रहे हैं। इससे मानव अस्तित्व के लिए एक बहुत ही बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
अगर हमने समय रहते "समझ कर कार्य" करने को व्यवहार में ना लाया तो सृष्टि की सुन्दरता को महसूस करने वाली एकसुन्दर रचना (मानव जाति) लुप्त हो जाएगी।
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