मध्यस्थ दर्शन की रोशनी में एक संक्षिप्त विचार व्यक्त करने का प्रयास
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"मानव अवस्था/ज्ञान अवस्था को प्रमाणित करने में आदरणीय ए नागराज जी का प्रयास"
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एक लोहे का परमाणु व अन्य किसी पदार्थ (ठोस, तरल, विरल/वायु) के परमाणु तभी प्रमाणित होते हैं जब वे सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी कर पाते हैं|यही वजह है कि पदार्थ अवस्था प्रमाणित है|
यही अवस्था बाकी ३ अवस्था (प्राण, जीव, मानव/ज्ञान) का आधार है| सोचिये यदि ये प्रमाणित नहीं होते तो क्या होता?
इसी तरह, प्राण अवस्था भी सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी कर स्वयं को प्रमाणित किया हर साँस लेती कोशिकाएँ इसका उदाहरण है|
जब ये दोनों अवस्था प्रमाणित हुई उसके पश्चात ही जीव अवस्था का प्रादुर्भाव हुआ और वह भी अपने अपने वंश के अनुसार सार्वभौम में भागीदारी कर स्वयं को प्रमाणित किया| इसका प्रमाण ही है जंगल, जमीन समृद्ध हैं| आपने यह कभी नहीं सुना होगा कि हाथियों ने जंगल में भारी तबाही मचाई य फिर शेर, बाघ ने इतने हिरन चीतल का शिकार कर घनघोर अपराध किया| हमें उनके आचरण पर पूरा विश्वास है|
अब मानव अवस्था को देखते हैं तो मात्र एक, दो, तीन, मानवों के मानवीय आचरण या उनके प्रमाणित होने से क्या सम्पूर्ण मानव जाति/ अवस्था स्वयं को प्रमाणित कर पायेगी? जैसा कि बाकी तीनों अवस्था ने किया है?
नहीं ना?
जब तक एक एक मानव (समूची मानव अवस्था) अखंड समाज व सार्वभौम व्यवस्था में अपनी भागीदारी नहीं करेगा तब तक वह प्रमाणित नहीं हो सकती|
अत: यह हर प्रमाणित मानव का दायित्व /जिम्मेदारी बनता है कि वह प्रत्येक मानव को उसके जैसा बनाने का (गुणित होने का/ multiply) प्रयास करें|
और इसी कार्य में ही आदरणीय ए नागराज जी (जिन्हें हम प्रेम से "बाबा जी" कह कर संबोधित करते हैं) लगे हुए हैं| उनकी सही मायने में पूजा करने या उन्हें श्रेष्ठ बताने का अर्थ है कि उनके जैसा बनने का प्रयास..|
जब तक यह स्थिति नहीं आती तब तक यह प्रयास करते जाना है क्योंकि इसके अलावा तो और कोई रास्ता नहीं दिखता निरन्तर सुख पाने का...ऐसा मेरा मानना है जानना शेष है|
जिन भाई बहनों की गति अच्छी है वे अन्य जिज्ञासुओं बंधुओं को सहयोग कर अपने दायित्व निभा ही रहे हैं| क्योंकि इसी तरह हम सब मिलकर ही एक दूसरे का सहयोग कर ही मानव अवस्था को प्रमाणित होने की स्थति में पहुँचा सकते हैं...
हरी हर....