एक बच्चा जब अपनी पढ़ाई शुरू करता है माता-पिता के साथ वह भी इंजीनियर, डॉक्टर इत्यादि के सपने देखना शुरू करता है| (इन सब पदों के पीछे स्वयं व अपनों के लिए सुविधा का इंतजाम ही है|)
कुछ entrance exams (प्रवेश परीक्षा) के बाद उसका चयन होता है|
महँगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है, अगर उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं तो माता -पिता कर्ज लेकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं पर यह सभी को ज्ञात है कि ऐसे कॉलेजों का वातावरण कैसा होता है?
नतीजतन बच्चा सिर्फ आसमान में ही उड़ने के ख्वाब देखने लगता है|
उसे काफी प्रयास करने के बाद किसी अच्छे युनिवर्सिटी में एक अध्यापक की नौकरी मिलती है| अपने वह कई साल वहाँ पढ़ाने (तकनिकी ज्ञान) में लगाता है| तभी उसे अचानक पता चलता है कि इस जॉब (सम्मानीय शब्द) को बचाए रखने के लिए उसे पीचडी करना आवश्यक है|
और पीचडी एक ऐसी बला है जो हर किसी के बस की बात नहीं है यदि पढ़ते पढ़ते ही (बगैर किसी ब्रेक के ) कर ली जाए तो ठीक है वर्ना...
मेरे जानकारी में ऐसे एक दो कुछ लोग हैं जो लगभग अपनी मानसिक संतुलन खोने की स्थिति में थे वह तो भावनात्मक सहयोग मिलने से ऐसी स्थति से स्वयं को निकाल पाये|
अगर आप में क्षमता भी है तो भी आगे की प्रक्रिया इतनी जटील है (मार्गदर्शक प्रिय, हित, लाभ दृष्टि के चलते भावनात्मक शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ते) कि ये खून के आँसू रुला डालते हैं|
यदि आप अच्छी खासी रकम जुगाड़ कर सकते हैं इनकी (मार्गदर्शक की) चमचागिरी कर सकते हैं तो आपकी पीचडी थोड़ी आसान हो जायेगी|
खैर आधी उम्र बीतने के बाद जब आपको पता चलता है कि यह डीग्री अत्यंत आवश्यक है तो उस समय हालात होती है "ना घर के ना घाट के"...आप ठगे से महसूस करते हैं|
४५-४६ की उम्र में भी पीचडी की तैयारियों में लगे हुए हैं और इसे पूरा करने के लिए कई बार लोग ऐसे कार्यों को हाथ में लेते हैं जो इनके अहं को ठेस पहुंचाते हैं क्योंकि इसने आसमान से जमीन का सफर करना तो सीखा नहीं है|
अब बताइए इस बच्चे ने जो अब प्रौढ़ हो चूका है ने क्या जिंदगी जिया?
ना कभी खेतों में श्रम किया ना कभी कोई जीवन जीने की कला सीखी, ना ही शादी कर पा रहा है (कुछ खुशकिस्मत हैं जिन्हें उनके हमसफ़र मिल गये|) ना ही माता-पिता को समय दे पा रहा है खुशियाँ तो मीलों दूर...
अब अगर वह निर्णय लेता है कि उसे यह जॉब छोड़ कर कुछ और करना है तो वह क्या करे?
श्रम (प्रकृति के साथ किया गया कार्य) करना सीखा होता उसके महत्व को जाना होता तो समृद्धि के भाव में जीता पर अब वह समृद्धि (जिस शब्द को उसने कभी जाना नहीं उसके लिए तो समृद्धि का अर्थ खूब सारा पैसा है) के लिए शॉर्ट कट तरीके खोजता है जो "स्वयं के प्रति सम्मान और स्वयं में आत्मविश्वास" तो कतई नहीं ला सकता|
अत: मेरी उन माता-पिता से विनम्र प्रार्थना है कि आप अपने बच्चों को जरुर इंजीनिअर, डॉक्टर इत्यादि की शिक्षा दें पर साथ ही उन्हें धरती व मिट्टी से प्रेम करना सिखाएं,श्रम व मानव/ संबंध इसके महत्व को भी समझाएं ताकि वे "स्वयं में आत्मविश्वास और स्वयं के प्रति सम्मान" के भाव में, मूल्यों में जीते हुए अखंड समाज व सार्वभौम व्यवस्था में अपनी भागीदारी कर सके|
इसके लिए आपको "सही समझ" क्या है? यह सूचना प्राप्त करनी आवश्यक है| कृपया ध्यान देवें|
एक बच्चे को "समझदारी" देने की जिम्मेदारी सर्वप्रथम माता-पिता की, फिर परिवार, फिर आस पास के लोग उसके पश्चात आखरी में शिक्षक की होती है ...
अत: स्वयं "समझदार" बनें और अपने बच्चों को यह अच्छा वातावरण घर में देवें|
और जो पीचडी कर रहे हैं उनके सगे-सम्बन्धियों/ मित्रों से निवेदन है कि उन्हें भावनात्मक संबल देवें और उनका हौसला बढ़ाते रहिये ताकि उन्हें अकेलेपन का एहसास ना हो और अपनी इस मंजिल को वे प्राप्त कर सकें|
All the best and good wishes for PhD students :)
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