Friday, January 24, 2014

हम निरंतर खुश क्यों नहीं?

चलिए इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का एक छोटा सा प्रयास किया जाये|
आखिर हमने अब तक अपनी मर्जी का ही तो सारा कुछ किया..पढ़ाई, व्यवसाय, नौकरी, सारे शौक गहनों, कपड़ों से लेकर गाड़ियाँ, घर, बीवी तक सब कुछ अपनी ही पसंद से चुना फिर भी ये खुशियाँ हमको निरंतर क्यों नहीं मिलती? या फिर कई मीलों दूर नज़र आती है| आखिर क्या कमी रह गई?

मेरा मानना है कि इन सबमें एक महत्वपूर्ण चीज छुट गई और वह है "संबंध"|
इसी संबंध व संबंधी की खुशियों के लिए सारी उर्जा लगा दी पर ना ही संबंधी खुश और ना ही स्वयं जिसने वह उर्जा लगाई|

आज हम सभी किसी ना किसी कार्यक्रम में व्यस्त हैं जैसे सामाजिक सेवा का कार्य, किसी संस्था में, शिविर में, खेती बाड़ी में इत्यादि|
आखिर  हुआ क्या ?
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"कार्यक्रम प्रधान हो गया और "समझ" व "मानव/संबंधी" पीछे छुट गया जो एक मात्र मेरे खुश रहने का आधार है| मेरे सारे कार्य-व्यवहार सिर्फ मानव/ संबंध के लिए ना होकर "सुविधा/कार्यक्रम " के लिए हो गया| मुझे यही वजह लगती है कि हम निरंतर खुश नहीं है| "
आपको क्या लगता है?

(इसे स्वयं में जाँचे, माने नहीं|)

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