Sunday, December 8, 2024

किस बात का अहंकार?

 जब हम ध्यान देते हैं तब पाते हैं हमें हर पल चारों अवस्थाओं का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पोषण, संरक्षण मिलता/मिला ही रहता है या प्रयोग उपयोग करते ही रहते हैं जैसे :-

हम दिन भर सांस लेते रहते हैं, समय समय पर पानी पीते रहते हैं, धरती पर चलते हैं (पदार्थ अवस्था से पोषण, संरक्षण) 

हम दिन में 2 या तीन बार भोजन करते हैं, बीमारी के समय औषधियों का सेवन- (प्राण अवस्था, जीव अवस्था से पोषण, संरक्षण)

हम दिन भर वस्त्र पहने रहते हैं जैसे सूती के वस्त्र (प्राण अवस्था से संरक्षण), स्वेटर शाल ( जीव अवस्था से संरक्षण),  बारिश के समय रेनकोट (पदार्थ अवस्था से संरक्षण)

हम परिवार सहित एक घर में रहते हैं , किसी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं किसी कार्यालय ने एक छत के नीचे काम करते हैं (पदार्थ अवस्था का संरक्षण)

हमारे काम काज के लिए मोबाइल, लैपटॉप तथा कृषि जैसे कार्यों के लिए हल, ट्रैक्टर, बैल, रस्सी इत्यादि का प्रयोग ( पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था और जीव अवस्था का उपयोग तथा मानव का सहयोगी रूप में सहयोग)

परिवार में, समाज में हर वक्त मानव से संबंध चाहे निश्चित अपेक्षाओं के हो या संपर्क के (मानव अवस्था का सहयोग, मूल्यों का आदान प्रदान )

व्यापक में तो हम ( पूरा शरीर और जीवन ) हर वक्त डूबे भीगे और घिरे (संपृक्त) रहते हैं,  (व्यापक से पोषण, संरक्षण, ऊर्जा प्राप्त)

एक बात तो रह ही गई ये जो शरीर गिफ्ट मिला है वह भी तो पदार्थ, प्राण, प्राण और जीव अवस्था की ओर से हमें उपहार है। (मानव शरीर की उत्पत्ति किसी न किसी जीव के शरीर से ही हुई है)

और मैं (जीवन) स्वयं? पदार्थ अवस्था में संक्रमण फलस्वरूप मेरा अस्तित्व !!! (विकास)

इन सबके बावजूद भी हममें कृतज्ञता के स्थान पर किस बात का अहंकार रहता है?



(मध्यस्थ दर्शन के विद्यार्थी के हैसियत से प्रस्तुति)

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इस पोस्ट पर एक सुंदर टिप्पणी उपासना मिश्रा दीदी जी से आया है। 

"कृतज्ञता और परस्पर पूरकता का भाव जो स्वयं में व्यवस्था (स्वत्व) के साथ, संबंध और व्यवस्था में व्यवस्थित भागीदारी (स्वतंत्रता) और स्वयं के वैभव (स्वराज्य) के रूप मैं दिखता है। सुंदर व्याख्या दीदी..."

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