Tuesday, December 15, 2009
क्या करना चाहिए हमें?
Thursday, December 3, 2009
श्रृंगार क्यों?....
जैसे ही एक लड़की की शादी होती है उसमें एक गज़ब सा आत्मविश्वास आ जाता है और साथ ही श्रृंगार उसके व्यक्तित्व में खुबसूरत परिवर्तन ला देता है। दोनों जीवन भर साथ रहने और जीने मरने की कसमें खाते हैं। किसी दुर्घटनावश या किसी भी कारण से पिया इस संसार को अलविदा कह जाता है तो ये दुनिया, समाज उसकी अर्धांगिनी को छोड़ती नहीं...
उसका सम्पूर्ण श्रृंगार होता है तत्पश्चात एक एक करके उसे उतरा जाता है , दिल दहला देने वाला दृश्य होता है ...
जो हर नारी को यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि गुजरना पड़ेगा हमें भी एक दिन ऐसे ही !
अगर विधवा जवान है तो फ़िर से वह असुरक्षित हो जाती है।
मेरा आप सभी से यह सवाल है कि पति के जाने के बाद नारी श्रृंगार क्यों नहीं कर सकती?
आप कहेंगे यह सब तो पति के लिए होता है और जब पति ही नहीं तो यह सब व्यर्थ है।
पर मैं कहती हूँ कि यही श्रृंगार तो है जो उसे याद दिलाता है कि उसके प्यार ने उसे यह दिया था और इसी से उन्हें अपने बेहद करीब पाती है और सुरक्षित महसूस करती है।
एक तो ऐसे ही हमसफ़र खोने का गम... इस संसार में कितनी तनहा हो जाती है वह... कम से कम उसका प्यार ,उसका अधिकार, उसका श्रृंगार तो मत छीनो उससे...
Friday, November 27, 2009
26/11 का क्या रोना भाई? ......
* इससे ज्यादा तो लोग नशे में मरते हैं.....
* इससे ज्यादा तो सर पर छत नहीं और ठण्ड, बारिश और गर्मी से मरते हैं लोग....
* इससे ज्यादा तो साम्प्रदायिकता की आग में जल मरते हैं भाई जो इन नेताओं द्वारा सुलगाया जाता हैं।
* इससे ज्यादा तो कर्ज में मरते हैं किसान ....
* इससे ज्यादा तो भूख में मरते हैं लोग ...
२ रु.के चावल की भी कालाबाजारी होती हैं भाई यहाँ....
* इससे ज्यादा तो नकली दूध और नकली दवा से मरते हैं लोग .....
कौन करता हैं यह?
ये तो हमारे भीतर के लोग हैं जो जल्लाद बन गए हैं
हम इन जल्लादों को क्या सजा दें?
जो बड़े बड़े न्याय की बात करतें हैं .......
Wednesday, November 18, 2009
स्वागत है ....
Wednesday, November 11, 2009
"एक बार फ़िर से ..."
अरुणाचल को अपना बताया जा रहा है
कभी कश्मीर का राग बजाया जा रहा है
क्या यह भी जानने की कोशिश की है कि आम आदमी कैसे जीना चाहता है?
अब वक्त आ चुका है
उठो मानव उठो !
जागो एक बार फ़िर से
इनको एक बार फ़िर से
उठो मानव उठो
जागो एक बार फ़िर से ।
Wednesday, November 4, 2009
"देश बड़ा या सचिन....?"
ओहो..... माफ़ करिए जनाब !ग़लत कह दिया ना ! मुझे तो यह कहाँ चाहिए था कि पहली खुशी सचिन के सत्रह हज़ार रन पूरे होने के ...फ़िर दूसरी ख़ुशी देश के जीतने पर.....
वाह -वाह क्या बात है?...
Sunday, October 11, 2009
मानव जाति नष्ट हो जाए तो दुःख नाहिं......
Friday, October 9, 2009
और वे मुस्कुरा रहे थे ....
आज फ़िर वही ख़बर .....
फ़िर से १८ जवान शहीद हो गए।
मन बहुत दुखी है आज, इतने जीवन नष्ट होते देख ।
और नीचे ही ३ मंत्रियों की तस्वीरें थी जिसमें वे मुस्कुरा रहे थे .........
Monday, October 5, 2009
"एक रुपये किलो में चावल ले लो ......."
माननीय मुख्यमंत्री जी आपकी जनता आपसे एक सवाल पूछना चाहती है की १ रुपये में चावल देकर आप किसका भला कर रहे हैं?
गरीबों की , किसानों की ,हम मध्यमवर्गीय लोगों की या फ़िर उच्च वर्गों की ?
आपके १ रुपये का चावल का अधिकांश भाग कहाँ जाता है ? यह बात किसी से छुपी नही है।
अब बात रह गयी किसानों और मध्यमवर्गीय परिवारों की जो इन गरीब मजदूरों के ऊपर निर्भर है उनका क्या होगा ?
उन किसानों के खेतों में मेहनत-मजदूरी करके ये मज़दूर दो रोटी कमाते थे।
पर अब आप सब राजनीतिज्ञों की मेहरबानी से वे मेहनत करने से कतराते हैं। ढूँढने पर बड़ी मुश्किल से कुछ मजदूर मिलतें हैं।
आप उनको कब तक एक रूपये किलो में चावल देते रहेंगे जनाब ? आख़िर एक दिन तो आपको सत्ता से जाना पड़ेगा तब इन गरीब मजदूरों का क्या होगा?
जब उन मजदूरों की जगह मशीने ले लेंगी तब तो ये कहीं के भी नही रह जायेंगे। आख़िर मध्यम वर्ग कब तक देखते रहेंगे कोई न कोई समाधान तो ढूँढ ही लेंगे।
और ये एक रूपये में चावल प्राप्त करके १ रुपये कमाने लायक भी नहीं रह जायेंगे।
सिर्फ़ वोट के खातिर तो उनको बरबाद न करें।
Tuesday, September 29, 2009
"NEWS CHANNEL AS A TAPERECORD"
Monday, September 21, 2009
पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिए
अब शायद ही कोई त्यौहार बचा हो जिसमें पीना अच्छा नहीं मानते।
मेरे ख्याल से राखी का त्यौहार ही बचा रह गया है। बाकी तो बस अब मवालियों का रह गया।
यकीं नहीं आता है न आपको? तो गणेश भगवान् या दुर्गा माता जी के विसर्जन में देखिएगा, शराब के नशे में धुत्त होके गुलाल पोत के फिल्मी गाने वह भी बेहुदे डिस्को गाने में थिरकते जाते हैं।
हिन्दुओं के त्यौहारों का यह हाल देखकर बहुत दुःख होता है। जब कोई मुसलमान व अन्य धर्म के लोग उस समय हमारे पास होते हैं तो मारे शर्म के हमारा सर झुक जाता है।
अपने ईश्वर की क्या दुर्गति कर दी इंसान ने!
कितना सही कहा है किसी ने -
"देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान ....
कितना बदल गया इंसान "
Tuesday, September 15, 2009
नक्सली जिन्दगी
क्या इनको यह भी नही मालूम कि इसके पहले भी कुछ जवानों को चारा बनाकर हमारे कई जवानों को इन्होने मारा था।
एक बच्चे का सामान्य ज्ञान भी इनसे ज्यादा होगा। चतुराई में भी इनसे कई कदम आगे होंगे।
अरे सिर्फ़ भोले भाले लोगों को डरा धमाका कर अपना पोलिसि़त झाड़ने से क्या मतलब? अपनी ही सुरक्षा ख़ुद नही कर पाते तो दूसरी की खाक करोगे?
अब चालिए चलते है दूसरी तरफ इन नक्सलियों को देखते है, जब से पैदा हुई हूँ आज तक समझ में नही आया की इनका मकसद क्या हैं? क्या केवल आतंक फैलाना ही हैं?
अपनों को ही मारते हो? कोई तुमसे खुश हैं? आप सभी की जिन्दगी इतनी सस्ती है? किसके लिए गवां रहे हो समझ से परे है भाइयों।
आपस में एक दूसरे को मारने से क्या हासिल हो रहा है? क्या यह समझ में नही आता की आप सब मोहरे हैं खेल तो कोई और खेल रहा है? जो खुश हो रहा होगा चलो जनसँख्या नियंत्रण का यह भी अच्छा उपाय है।
रेल की पटरी, बिजली टावर नष्ट करना है? तो करो। आपका ही पैसा है मुफ्त में आया है दुबारा तुम्हारा ही पैसा लगा के बनवा दिया जाएगा।
कोई फर्क नही पड़ने वाला बंधू इस तरह से कोई दूसरा रास्ता चुनो कुछ करने के लिए।
जीवन इतनी सस्ती नही की ऐसे गवाओं
कुछ ऐसा करो की ख़ुद पर फक्र हो!