LIFE
Friday, March 22, 2024
30 Values (Madhyasth Darshan)
30 मूल्य (मध्यस्थ दर्शन)
Thursday, May 4, 2023
प्रचार तंत्र की भूमिका
जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण हेतु सूचनाओं के प्रसारण में प्रचार तंत्र बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
आज हम किसी भी व्यक्ति को अपराध या गलती के नाम पर पीड़ा देते हैं, जेल में बंद कर देते हैं, तरह तरह की सजा देते हैं जबकि अपराध एक मानसिकता है। और मानसिकता में परिवर्तन ही सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है। (शरीर को कष्ट देने से मानसिकता में परिवर्तन नहीं हो सकता।)
ऐसे परिवर्तन के लिए प्रचार तंत्र के समक्ष यह प्रस्ताव है कि निरंतर जो भी कार्यक्रम आये जैसे किसी विषय पर डिबेट (जब सार्थकता के अर्थ में बातचीत होगी उसे "संवाद"कहा जायेगा) या कोई समस्या हो उस पर संवाद वह "जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान (मध्यस्थ दर्शन)" के प्रकाश में ही आये (समस्या, उसका कारण और उसका निदान पर संवाद)।
जब यह बहुत बड़े स्तर पर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाएगा तो बहुत ही बड़ी संख्या में मानव स्वतः ही मानव चेतना के प्रति जिज्ञासु होंगे। बहुत से अपराध स्वतः ही बंद हो सकते हैं।
देश भर में प्रयोग तो हो ही रहे हैं वे सभी प्रभावशाली ढंग से रखे जाए व यदि किसी व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन हुआ और वह उसे लोगों के सामने साझा करना चाहता है तो ऐसे लोगों को भी उनकी शेयरिंग के लिए आमंत्रित किया जाए उनका अभिनदंन किया जाए तो समाज में हो रहे बदलाव को और भी गति मिल सकती है। ऐसा मेरा मानना है।
और सबसे सुंदर बात होगी कि हम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं करेंगे।
ज्ञान के प्रकाश में या ज्ञान पर चल रहे उदाहरणों से स्वयं में देखेंगे कि हममें क्या कमी है और उसे कैसे पूरा करें।
अभी तो हमें अपराध के नाम पर वही नजर आता है जो मीडिया में दिखाया जाता है उससे भी ज्यादा खतरनाक स्थिति है हमारे सामने।
और अभी तो हमको यही समझ नहीं आता कि सही क्या गलत क्या?
हो सकता है इस प्रयोग से अपराध में स्व नियंत्रण आ जाये? आपके क्या विचार हैं?
जैसे उदाहरण के लिए मैंने एक पोस्ट पर यह एक लाइन का कॉमेंट किया इतने लोगों की स्वीकृति देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई!
तो "शिक्षा" पर लोगों में अच्छी स्वीकृति बन चुकी है या इस पर सोचने तो लगे हैं! यह प्रचार तंत्र का ही कमाल है और सफलता है! इसे प्रचार तंत्र का सदुपयोग ही कहा जायेगा।
आज भले ही समीक्षा हो रही है पर लोग शिक्षा पर तो बात कर रहे हैं यह भी एक बड़ी उपलब्धि है।
Tuesday, April 11, 2023
आरिफ़ और उसका दोस्त सारस
एक महीने बाद आज आरिफ़ भाई जी और उसके दोस्त सारस का कानपुर चिड़ियाघर में आपस में मिलना हुआ। दोनों ही भावुक और खुश थे। सारस को एक बंद बाड़े में रखा गया है उसे दूर से ही देखने की परमिशन है।
Sunday, April 9, 2023
जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना
गठन शील परमाणु का लक्ष्य, ताकत व परिणाम...
गठन पूर्ण परमाणु का लक्ष्य, ताकत का अंतिम परिणाम इस धरती में शेष....
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पहचानने और निर्वाह करने की ताकत देखिये...
● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती व ग्रह गोल.....
● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती और रस रसायन...
● पदार्थ अवस्था के अंतर्गत परमाणुओं (गठनशील परमाणु) में निहित अंशों के एक दूसरे को लगातार निरंतर पहचानने, निर्वाह करने व पूरकता की ताकत ये धरती, रस-रसायन और सांस लेती कोशिकाएं (काई से लेकर पेड़ पौधे व जीव और मानव शरीर)।
कैसे सुंदर व्यवस्था को पहचान कर निर्वाह कर रहे हैं। एक एक कोशिकाओं में छोटी सी छोटी इकाई व्यवस्थित, हर जगह व्यवस्था।
● यह गठन शील परमाणु के स्वयं में व्यवस्था की ताकत का परिणाम है।
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जीवन परमाणु की ताकत जीव अवस्था में निरंतर मानने, पहचानने और निर्वाह करने की क्रिया के रूप में दिखाई देती है।
इससे सिद्ध होता है कि इकाइयाँ जिस वस्तु को पहचानती है उसके साथ निर्वाह करती ही है।
● अभी मानव स्वयं को शरीर मानकर उसके अनुरूप ही पहचानना और निर्वाह करता है। सारा कार्य व्यवहार शरीर और शरीर से जुड़ी पहचान को समर्पित।
● जब स्वयं को जानना हो जाये तो मानना, पहचानना और निर्वाह करना स्वयं के लक्ष्य को समर्पित होगी।
स्वयं का लक्ष्य (सुख, शांति, संतोष आंनद)…
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अब जीवन परमाणु की “स्वयं में व्यवस्था” ही “सार्वभौम व्यवस्था” का आधार बनेगी। यही काम इस धरती पर शेष रह गया है।
● स्वयं में व्यवस्था अर्थात "जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना"...
● जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करने की ताकत अर्थात गठनपूर्ण परमाणु का प्रयोजन अभी पूरा नहीं हुआ है।
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● जीवों में जीवन शरीर से संचालित है।
जबकि मानव में शरीर जीवन से संचालित होने की आवश्यकता है।
जीवन (गठनपूर्ण परमाणु) में मन, वृत्ति, चित्त और बुद्धि आत्मा से संचालित होने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में “शरीर मन को समर्पित, मन वृत्ति को समर्पित, वृत्ति चित्त को समर्पित, चित्त बुद्धि को समर्पित व बुद्धि आत्मा को समर्पित” या मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि का आत्मानुगामी होना, या आत्म प्रतिष्ठा (आत्मा संकेतानुसार बुद्धि, चित्त, वृत्ति एवं मन के क्रियाकलाप।)
● और यह काम होगा समझदारी से...
● समझदारी आती है -
स्वयं की व्यवस्था का ज्ञान से ( जीवन ज्ञान),
अस्तित्व की व्यवस्था के ज्ञान से (अस्तित्व ज्ञान) व
मानव की इस सार्वभौम व्यवस्था में 3 नियमों {प्राकृतिक, सामाजिक व बौद्धिक} सहित स्वयं के प्रयोजन के ज्ञान से (मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान)...
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हमको सिस्टम ( सार्वभौम व्यवस्था) के हिसाब से फिट होना है न कि सिस्टम (सार्वभौम व्यवस्था) को हमारे हिसाब से।
● अस्तित्व में सिस्टम (सार्वभौम व्यवस्था) है पाँच आयाम और उसमें भागीदारी...
● जैसे अभी हम एक ही व्यक्ति कई जगह जैसे घर में , खेत मे, बाजार में, मॉल में, ऑफिस में, सोशल मीडिया में, समाज में, इंटरनेट की दुनिया में जैसा कार्य व्यवहार करना होता है वैसा ही करते हैं।
पर अभी तृप्ति नहीं मिली क्योंकि यह सह अस्तित्व के डिजाइन के विपरीत है।
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● व्यवस्था ही पहचान आती है। इकाइयों की पहचान व्यवस्था में भागीदारी ही है।
● जैसे शरीर एक व्यवस्था है उसमें व्यवस्था दिखती है और सारे अंग अव्यवयों की उस व्यवस्था को बनाये रखने में भागीदारी दिखती है।
● अत: ऐसे ही सह अस्तित्व के नियमों, प्रयोजनों/ सार्थकता को जानना, मानना, पहचानना... उसके अनुरूप सार्वभौम व्यवस्था (सिस्टम) को पहचानने तदनुरूप उसमें भागीदारी करना आज की आवश्यकता है।
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सार्वभौम व्यवस्था 5 आयाम (1.शिक्षा-संस्कार, 2.न्याय-सुरक्षा, 3.स्वास्थ्य-संयम, 4.उत्पादन-कार्य, 5.विनिमय-कोष) में भागीदारी...
और यह व्यवस्था समझदारी (3 ज्ञान) से सुत्रित होगी। फलस्वरूप सह-अस्तित्व में “अखंड समाज/ दस सोपानीय व्यवस्था” के रूप में प्रकाशित होगी।
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(मध्यस्थ दर्शन की रोशनी में व्यक्त विचार, प्रस्तुति: रोशनी (विद्यार्थी की हैसियत से))
Tuesday, February 7, 2023
Great Surprise for me!!! At 25th Jeevan Vidya Rashatriya Sammelan Nagpur (5 Feb 2023)
यूँ तो मुझे जीवन विद्या के काम में सबसे ज्यादा खुशी मिलती है क्योंकि साथ साथ समझने की वस्तु मिलती रहती है। Mind Boost Work! अत: जब शरीर इस काम के लिए सहयोग देता है उसका मैं भरपूर फायदा उठाती हूँ।मैंने अन्य भाइयों के सहयोग से ही कई वाङ्ग्मय से कई शब्दों के संदर्भों के संकलन का कार्य किया। और उसे भाइयों ने भी सहर्ष यथोचित सम्मान देकर मध्यस्थ दर्शन के वेबसाइट्स में रखा यह एक बहुत बड़ा सम्मान था।
समय समय पर राष्ट्रीय सम्मेलन में भाई बहन मुझसे संदर्भों के संकलन की डिमांड करते थे और मैं उन्हें उपलब्ध करा देती थी क्योंकि यह मेरा कर्तव्य और ज़िम्मेदारी थी। 25वां राष्ट्रीय सम्मेलन में भी यही हुआ और मैंने वही दोहराया। बस दिमाग में एक ही बात गूँज रही थी कि जो भी आपके पास है उसे लोगों को सहजता से सुलभ हो जाए, केन्द्रीयकरण नहीं करना है, सामान्यीकरण करना है। जिस चीज पर एक बार मेहनत हो चुकी उस पर दोबारा मेहनत नहीं उसके आगे मेहनत की आवश्यकता है। अब लोगों के पास हर चीज उपलब्ध है उनको सिर्फ समझने की आवश्यकता है व उसके अनुसार जीने की आवश्यकता है। और यदि कुछ करना है तो वे मात्र शोध में ध्यान देवें।
तो जैसे ही मुझे सम्मेलन के अंतिम दिन बसंत भैया जी ने बताया मुझे सम्मानित किया जा रहा है मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था! मुझे सम्मान करने का मतलब है कि उनका (बड़े भाइयों का) ही सम्मान क्योंकि मैंने तो कुछ भी किया नहीं था जो कुछ उपलब्ध था उससे ही सामग्री इकट्ठी की थी। खैर थोड़ी बहुत मेहनत की थी और उसके लिए मुझे सम्मान के लिए चुना गया यह मेरे अंदर जोश, खुशी को भर देने जैसा था। और सच में मुझे बहुत ही खुशी हुई जब मेरी छोटी बहन पूनम ने उस सम्मान को ग्रहण किया और मेरे संदेश को वहाँ पढ़कर सुनाया। मैंने तो सोचा ही नहीं था कि बहन जी को पढ़ने का समय मिलेगा भी नहीं...जैसा कि वहाँ वक्त की कमी दिख रही थी। पर फिर भी संदेश भिजवा दिया था। संदेश को पढ़ने को प्रेषित करने के लिए भी पूनम बहन जी का बहुत बहुत धन्यवाद और कृतज्ञता, मेरे परिवारजनों के प्रति भी कृतज्ञता क्योंकि मुझपर कोई किसी प्रकार का दबाव नहीं इसी वजह से तल्लीनता के साथ इस कार्य को मैं कर पायी। आशा है पिताजी जो अब जीवन रूप में हैं या जहाँ कहीं भी हो किसी नए शरीर में उन्हें भी बहुत खुशी हो रही होगी। :)
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सम्मेलन में सभी छोटे- बड़े भाइयों, बहनों और बच्चों को भी उनके उपलब्धियों पर ढेरों ढेरों बधाइयाँ....
-- सम्मेलन में मेरा संदेश- "सर्वप्रथम आप सभी को इतनी सुंदर आयोजन के लिए खूब खूब धन्यवाद और ढेरों बधाइयाँ.... बसंत भैया जी से मुझे सूचना प्राप्त हुई कि मुझे मेरे सहयोग के लिए सम्मानित किया जा रहा है इसके लिए परम श्रद्धेय बाबा जी व आप सभी के प्रति आभार व कृतज्ञता.... और यह मुझे अच्छे से ज्ञात है कि यह सब सहयोग मैं आप लोगों को कर पायी इसकी वजह यथार्थता के स्त्रोत का सहजता से सर्वसुलभ होना और आप सभी का सहयोग। आप सभी बड़े छोटे भाई बहनों के आचरण मे ही मुझे सहजता और हर चीज हर वस्तु को आसानी से सुलभ करवा देना दिखाई दिया वही मैंने भी अपने आचरण मे लाने की कोशिश की...इससे ज्यादा मैंने और कुछ नहीं किया .... पुन: आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद और आभार" -- इस सम्मान को पाने के बाद भी मेरे पैर बिलकुल जमीन पर ही है क्योंकि हमें स्वयं पर कार्य करना है वह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। :) सम्मेलन के सभी वीडियो इस लिंक पर उपलब्ध है। https://youtube.com/playlist?list=PLg-z0QA7ySJXQKBzpBpbw5kyJ4It0AchQ
Monday, May 30, 2022
विकास?
विकास (अपनी मान्यताओंनुसार) के नाम पर अपने फायदे के लिए गाँव उजाड़े गए.....
अपने फायदे के लिए जंगलों को उजाड़े गए व उजाड़े जा रहै हैं....
अपने फ़ायदे के लिए शहर बनाया ताकि उसके कारखानों में ग्रामीण लोगों को काम पर लगाया जाए,
शिक्षा ऐसी रखी गई ताकि सब उन कंपनियों के गुलाम बने....
अब परिणाम देखो किसी को भी ठीक से सभाल नहीं पा रहे हैं।
शहर में एक आदमी बहुत अमीर और खेत बेचकर शहर आकर उनकी नौकरी करने वाला मिडिल क्लास या गरीब!
एक के पास लाखों करोड़ों की नौकरी, एक के पास वह पढ़ाई करके भी बेरोजगारी!
क्या यही समाज की स्थापना करनी थी? क्या यही सबका सपना था?
अभी भी वक्त है जो जहाँ है उनको वहीं ऐसा वातावरण दिया जाए जिससे उनका सम्पूर्ण विकास हो।
किसी को मत उजाड़ो, आज की तारीख में ये शहर, महानगर किसी को नहीं सभाल सकते जबकि गाँव अब भी सारे शहर के लोगों के पेट भरता है।
गाँव में किसी परिवार में सबके लिए काम होता था/है।कोई बेरोजगार नहीं होता।
आदिवासियों का घर उनका जंगल है। उनका रोजगार का वह साधन है उसे संसाधनों के लिए मत उजाड़ो।
हमारे कॉन्क्रीट के शहरों में उनके लिए कुछ भी नहीं सिवाय शोषण के।
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उद्योगों की भी आवश्यकता है लेकिन वह आवश्यकता के हिसाब से उत्पादन होना चाहिए यह नहीं कि अपने उत्पादन को खरीदने के लिए विज्ञापनों के माध्यम से बाध्य किया जाए।
इसके क्या क्या दुष्परिणाम है यह हम सबको विदित है।
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महानगरों की उपलब्धि प्रधानतः महत्वाकांक्षा संबंधी है गाँवों की उपलब्धि प्रधानतः सामान्याकांक्षा है पर अभी का वातावरण जागृति के लिए नहीं है अतः इनका दुरुपयोग ज्यादा है सदुपयोग कम। अभी ये तीन उन्माद(भोगोन्माद, कामोन्माद और लाभोन्माद) को समर्पित है।
अब न तो शहरों को मिटाया जा सकता है ना गाँवों को तो अब सार्थकता कैसे हो?
बस जागृति का वातावारण तैयार हो, धीमा धीमा प्रयास चल ही रहा है लोगों की मानसिकता में परिवर्तन होते ही स्वमेय ही सभी सामान्यकांक्षा (रोटी, कपड़ा, मकान) महत्वाकांक्षा (दूरसंचार, दूरश्रवण, दूरगमन) सम्बंधी वस्तुएं उसके लिए समर्पित हो जाएंगी। चीजें खुद ब खुद संवर जाएगी।
और यह शहरों व गांवों की सुंदरता होगी। और प्रकृति में इसका असर दिखेगा। प्राकृतिक संसाधनों का आवर्तनशीलता का ध्यान रखते हुए सदुपयोग होगा।
और यही वातावरण वास्तविक विकास (जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण) के लिए योगदान होगा।
Sunday, March 22, 2020
कृतज्ञता
व्हाट्सएप पर महिलाओं ने एक धुन शेअर किया था और उसे प्रयोग करने को कहा गया... इस धुन में शंख और मंदिर की घण्टियों की आवाज थी।
बस हम सभी परिवार वालों ने उसे शाम 5 बजे से बजाना शुरू किया, मेरी माता जी ने एक थाल और पिताजी ने शंख बजाना शुरु किया और मैंने ताली।
इन सब ध्वनि और आगे जो भी वातावरण हम सभी सामना करने जा रहे हैं और प्रकृति माँ के प्रति कृतज्ञता का भाव आते ही आँखों से आँसू बहने लगे। सबसे अपने आंसुओं को छुपाते हुए हमने ताली बजाना जारी रखा हुआ था और विचार भीतर में चलने लगे....
मन ही मन प्रकृति माँ से हम मानव जाति के द्वारा किए गए कार्य -व्यवहार से क्षमा माँग रहे थे पर साथ ही माफ नहीं करने को भी कह रहे थे। मानव जाति कैसे और कब सबक ले इन सबसे? कैसे हमें समझ में आ जाए कि हमें प्रकृति के साथ कैसे रहना है तब तक हमें प्रकृति तो ऐसे ही सबक सिखाएगी। और प्रकृति तो नियम अनुसार ही चलती है किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं।
और दूसरी ओर इटली में हो रही घटना और यही अगर भारत में देखने को मिले? सोचकर ही रूह कांप उठी।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि प्रकृति माँ से क्या माँगे, क्या विचार व्यक्त करें।
घर के सामने दो बड़े आमों के पेड़ और कोयल की कूक... दोनों हाथ आपस में जुड़े कृतज्ञता के अलावा कोई भाव नहीं आ रहे थे।
आशा है कि आने वाले मुश्किल घड़ी का हम सब समझदारी और बहादुरी से सामना करें।
आप सभी को मेरा सादर प्रणाम.....
जिन्होंने भी मानवीयता का दामन कठिन स्थिति-परिस्थिति में नहीं छोड़ा उन सभी भाई बहनों के प्रति दिल से कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव....
यही मानवीय दृष्टि आपको उच्च स्तर का बनाती है। विपरीत परिस्थितियों में ही स्वयं की स्थिति का आकलन हो पाता है।
Thursday, March 5, 2020
आवर्तनशील खेती और इसकी आवश्यकता
- पहले भाग में घर में खाने वाले फसल जैसे गेहूँ, दाल, चावल, अनाज आदि लगाया जाता है।
- दूसरे भाग में फल, सब्जी, मसाले व गाय का चारा (नैपियर, जिंजवा, बरसीम घास ) लगाया जाता है।
- तीसरे भाग में जलाऊ लकड़ी, इमारती लकड़ी जैसे बाँस, साल, सागौन आदि लगाया जाता है। सुखी पत्तियाँ खाद बनाने के काम आती है। यह वृक्ष पर्यावरण संतुलन में एक बड़ा योगदान करती है। इसी भाग में ढलान की तरफ एक तलाब होता है जिससे पानी का स्रोत हमेशा बना रहता है।
तीसरे भाग में ही हम गौशाला रख सकते हैं जिससे दूध का उत्पादन होता है तथा गोबर से एक अच्छी उपजाऊ जमीन तैयार करने में मदद मिलती है। इसी भाग में गाय के लिए चारा (बरसीम घास) भी लगाया जाता है।इस खेती का प्रयोजन है, पहला आवश्यकता से अधिक का उत्पादन अर्थात पहले स्वयं की आवश्यकता के लिए तो उत्पादन हो ही जो अधिक हो उसे संबंधियों को वितरित कर दिया जाए।
* संदर्भ:परिभाषा संहिता, संस्करण : 2016, पृष्ठ नंबर:38-39
* अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
* प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी