Tuesday, April 15, 2014

वातावरण

एक परिवार का उदाहरण लेते हैं २ स्थितियों पर विचार करते हैं..

पहली स्थिति परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर रहते हैं..मानवीयता पूर्ण आचरण में जीते हुए... सभी एक दूसरे के प्रति सम्मान, प्रेम और विश्वास का भाव रखते हुए हर निर्णय में एक दूसरे से सलाह लेते हुए कार्य व्यवहार करते हैं....ऐसे वातावरण में पला बढ़ा बच्चा.... आप कल्पना कर ही सकते हैं कि उसका भविष्य कितना उज्जवल और वह कितना चरित्रवान होगा! कम से कम ८०% अच्छी बातें तो वह सीखेगा ही..

और वहीँ एक दूसरी स्थिति...माता पिता आपस में लड़ते हुए...अपने बुजुर्गों को कोसते हुए..दिखाई देते हैं उस घर का बच्चा...बताइए कितने विश्वास पूर्वक जियेगा..और उसे किस प्रकार का वातावरण मिल रहा है? वह पूरे समय घर के सदस्यों का व्यवहार देख रहा होता है..और हर छोटी छोटी बातें उसे प्रभावित कर रही होती है...और जैसे ही यह बच्चा बड़ा होता है ठीक वैसा ही व्यवहार वह आपसे और बाकियों से करने लगता है...वह दोहरे चरित्र में जीने लगता है...
अब देखिये देश की स्थिति...और ये बच्चा जिसे आपका परिवार के साथ देश का माहौल भी प्रभावित कर रहा होता है...वह हर समय जाँच रहा होता है (इन्टरनेट के साथ टेलीविजन भी माध्यम है बाकी और तो है ही) कि हम सभी देश के नागरिक आपस में कैसे रह रहे हैं? कौन अपना... कौन पराया...यह सभी उसके आचरण में हम नागरिकों को देख कर आने लगता है... हम सभी नागरिक उस नन्हें से बच्चे जिसने इस दुनिया में/इस धरती पर अभी कदम भी नहीं रखा है..और वे सारे बच्चे जो इस दुनिया में/इस धरती पर आ चुके हैं..के माता पिता हैं...
हम अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते...ये बच्चे हमें (हम नागरिकों उर्फ अपने माता-पिता) को लड़ते देख रही है...
ये कैसा वातावरण हम उन्हें दे रहे हैं?
ये कैसी शिक्षा हम उन्हें दे रहे हैं?

हम कैसी पीढ़ी चाहते हैं? 
जो आपस में हमारी तरह लड़ते रहे या आपस में मिलजुल कर रहे? 
जाँचिये इसे और स्वयं ही निर्णय लें कि हमारी आने वाली पीढ़ी (इस देश की ही नहीं वरन इस धरती की क्योंकि धरती हम सभी की है) को कैसा वातावरण दें कि उनके चरित्र का विकास हो..वे निरन्तर सुख, समृद्धि पूर्वक रह सके..और जो स्वयं के प्रति विश्वास, सम्मान का भाव रखते हुए . .एक सुन्दर अखंड समाज की पृष्ठभूमि रख सके जिसमें अभय हो किसी से कोई डर ना हो..
क्या हम नहीं चाहते कि हमारे आने वाली पीढ़ी (इस धरती की) देवता हो..यह धरती स्वर्ग हो?
यदि ऐसा चाहते हैं तो इसकी क्या तैयारी हो रही है? विचार करें...
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"....प्रत्येक संतान को उत्पादन एवं व्यवहार एवं व्यवस्था में भागीदारी करने योग्य बनाने का दायित्व अभिभावकों में भी अनिवार्य रूप से रहता है क्योंकि प्रथम शिक्षा माता-पिता से, द्वितीय परिवार से, तृतीय परिवार के संपर्क सीमा से, चतुर्थ शिक्षण संस्थान से, पंचम वातावरण से..अर्थात प्रचार-प्रकाशन-प्रदर्शन से तथा प्राकृतिक प्रेरणा से भौगोलिक एवं शीत,उष्ण, वर्षमान से प्राप्त होती है|.."
अभ्यास दर्शन (अस्तित्व मूलक मानव केंद्रीत चिंतन) 
प्रणेता- आदरणीय ए.नागराज जी

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