कितने मस्ती में रहते हैं ये नन्हें बच्चे..किसी बात की कोई फिक्र ही नहीं...मजा आ जाता है इनको देखकर
ये सिर्फ एक चीज में ही व्यस्त रहते हैं कि कैसे हमेशा खुश रहना है?
जैसे जैसे ये बड़े होने लगते हैं...इनकी सरलता जैसे कहीं खोने लग जाती है आखिर ऐसा क्या मिलता है इनको हमसे ऐसा... जो ये जैसे हैं वैसे नहीं रह पाते?
हमारी यंत्र/मान्यताएँ/ अपनापन-परायापन?
हमने (मॉडर्न सोसाइटी) कभी मानव को महत्वपूर्ण माना ही नहीं| उस नन्हें से बच्चे को हमने पैदा होते ही आया के हाथ सौंप दिया...
चूँकि हम कार्य कर रहे हैं उनकी हरकतों से परेशान होते हैं तो वीडियो गेम या टेलीविजन के सामने बिठा दिया|
थोड़े और बड़े हुए अच्छी शिक्षा के लिए उसे बोर्डिंग में भेज दिया...
हमने कभी यह ध्यान नहीं दिया कि वह नन्हा बच्चा क्या चाहता है?
उसे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची अदि सम्बन्धियों की जरुरत होती है| उनसे वह प्रेम मूल्य सहित सभी मूल्यों की चाहना होती है|
पर हमने उन्हें इन सब से वंचित किया|
हमने उसे अपने कार्यों से यह सन्देश दिया कि महत्वपूर्ण यन्त्र है| महत्वपूर्ण मान्यतायं हैं| महत्वपूर्ण धन है|
अब इस बच्चे से आप यह अपेक्षा नहीं करें कि यह आपके बुढ़ापे में आपको महत्व देगा|
वह भी जिसे महत्वपूर्ण माने हुए है वैसा ही करेगा|
बिमार पड़े तो अस्पताल, बोर हो रहे हो तो टेलीविजन..और आपकी अच्छी परवरिश के लिए "वृद्धा आश्रम"|
इसे माने नहीं जाँचा जाये और अगर इसमें कुछ सच्चाई नजर आती है तो देरी किस बात की..आज से बच्चों को अपना महत्वपूर्ण और कीमती वक्त दीजिए...वह बच्चा और घर के अन्य संबंधी भी आपकी अन्य जरूरतों से ज्यादा महत्वपूर्ण है|
ये सिर्फ एक चीज में ही व्यस्त रहते हैं कि कैसे हमेशा खुश रहना है?
जैसे जैसे ये बड़े होने लगते हैं...इनकी सरलता जैसे कहीं खोने लग जाती है आखिर ऐसा क्या मिलता है इनको हमसे ऐसा... जो ये जैसे हैं वैसे नहीं रह पाते?
हमारी यंत्र/मान्यताएँ/ अपनापन-परायापन?
हमने (मॉडर्न सोसाइटी) कभी मानव को महत्वपूर्ण माना ही नहीं| उस नन्हें से बच्चे को हमने पैदा होते ही आया के हाथ सौंप दिया...
चूँकि हम कार्य कर रहे हैं उनकी हरकतों से परेशान होते हैं तो वीडियो गेम या टेलीविजन के सामने बिठा दिया|
थोड़े और बड़े हुए अच्छी शिक्षा के लिए उसे बोर्डिंग में भेज दिया...
हमने कभी यह ध्यान नहीं दिया कि वह नन्हा बच्चा क्या चाहता है?
उसे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची अदि सम्बन्धियों की जरुरत होती है| उनसे वह प्रेम मूल्य सहित सभी मूल्यों की चाहना होती है|
पर हमने उन्हें इन सब से वंचित किया|
हमने उसे अपने कार्यों से यह सन्देश दिया कि महत्वपूर्ण यन्त्र है| महत्वपूर्ण मान्यतायं हैं| महत्वपूर्ण धन है|
अब इस बच्चे से आप यह अपेक्षा नहीं करें कि यह आपके बुढ़ापे में आपको महत्व देगा|
वह भी जिसे महत्वपूर्ण माने हुए है वैसा ही करेगा|
बिमार पड़े तो अस्पताल, बोर हो रहे हो तो टेलीविजन..और आपकी अच्छी परवरिश के लिए "वृद्धा आश्रम"|
इसे माने नहीं जाँचा जाये और अगर इसमें कुछ सच्चाई नजर आती है तो देरी किस बात की..आज से बच्चों को अपना महत्वपूर्ण और कीमती वक्त दीजिए...वह बच्चा और घर के अन्य संबंधी भी आपकी अन्य जरूरतों से ज्यादा महत्वपूर्ण है|
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